कोई छै साल पहले नसुडी यादव की जब मौत हुई तब भी और आज तक मैं उनके प्रति श्रद्धांजलि के दो शब्द न पढ सका न लिख सका. बिरहा प्रेमियों ने आहत मन से इस सच्चाई को स्वीकार किया होगा. बिरहा गायकी की एक बिल्कुल अनूठी शख्सियत की अनुपस्थिति हमेशा महसूस की जायेगी. वो मिर्ज़ापुर की ग़ल्लामंडी पल्लेदारी करते थे और साथी गायकों की अवहेलना और दुष्प्रचार के जवाब में इस तथ्य को पेश करते हुए दूने आत्मसम्मान का अनुभव करते थे.
हालांकि खुद नसुडी जहां भी होंगे, मेरी उपरोक्त पंक्तियां पढ्कर ज़रूर ही चिढ जाएंगे और बेसाख़्ता बोल उठेंगे "सरऊ जीतेजी तोहके नहीं बुझाइल, अब मरले बाद सोहरावत हउवा?"
नसुडी अपनी विशिष्ट शैली और बेबाकी के लिये जितने लोकप्रिय हुए उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है. कहते हैं कि नसुडी के आयोजनों में भारी पुलिस बंदोबस्त और प्रशासनिक मुस्तैदी से काम लिया जाता था. हाल के बरसों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के इलाक़ों में बदलते जातीय समीकरण और दलितों-पिछडों में बढती राज्नीतिक-सामाजिक जागरूकता और नसुडी की लोकप्रियता में संबंध तलाशा जाना चाहिये. हर सामाजिक आंदोलन के गायक होते हैं, शायद नसुडी भी ऐसी ही उथल-पुथल भरी सामाजिक-राजनैतिक परिस्थिति में एक परिघटना की तरह उभरे. ब्राह्मणवाद-विरोध और वर्चस्वशाली जातियों-वर्गों पर तीखे हमले नसुडी के सांस्कृतिक अजेंडा का अभिन्न हिस्सा हैं.
यहां पेश है नसुडी के एक नाइट लॉंग परफ़ोर्मेंस का आंशिक ट्रांस्क्रिप्शन----
मंदिर बनावेवाला आप, महजिद बनावेवाला आप. मुर्ती बनावेवाला आप. चंदा लगा के मुर्ती लेआवेवाला आप. ओम्मे बइठवला तोहहीं. अउर तोहहीं ऊ मुर्ती के नाम रखला कि फलना बाबा. औ पूजा करबा, चढइबो करबा, परसादियो रखबा, फिर चढा-ओढा के अपना खाऊ जाबा. त के तोसे महान बा? सारी सक्ती तोहरे में बा. औ जाए लगबा त दरवाजा बंद कर देबा, कहबा अब तू एही में रहा. अब हम जात हई घरे.
(सह गायक पूछता है): अउर एकाध दिन भुला जाएं, न बंद करें तब ?
नसुडी: तब कुक्कुर मूती बे ! कवन उपाय बा ? दरवाजा खुलल रही त कुक्कुर मूती. त सोचा! जब ऊ कुकुरे से मुतवावत ह मुहें में त तोहार मदद करी ? ओके कहेके चाही--मत मूता रे एही में हम हई. जब ऊ आपन मुंह नाही बचावत हौ, त तोहार मदद करी ऊ ? हम कहीला बइठावे के बइठाय द हर घरे में लेकिन मुर्ति क बात बतावत हई कि मदद करी त मानव करी. ई कहना बा--
तोहसे हौ ना महान कोई अरे दुनिया में
बेहडा पार लागी मानव के सरनियां में
त भइया, संसार में सबसे बडा नाम होला. जेतना बडा नाम भगवान का ओतना बडा नाम घुरहू का. दुन्नो नाम बराबर होला. भगवान कतल करिहें त भगवान के फांसी होई अउर घुरहू कतल करिहें त घुरहू के फांसी होई. वल्दियत से काम चलेवाला नाहीं हौ, कि तू कहला हम राम क लडिका हईं त छमा कई द? ई छमा-वमा वाला बात न रही. जे गलती करी तेकर फांसी होई. 302 के मुल्जिम होई.
आया है सो गया नहीं
राजा रंक फकीर
ना कोई को बिवाय मिले
ना कोई को लगे जंजीर!
त भइया ! आप लोग के आसिर्वाद के हमको भरोसा बा. आप लोग आसिर्वाद दे देइहैं त ई काया अगर रोड पर मर जाई तब्बौ एक गज कफन मिल जाई. अउर कवनो मंदिली में जाके मर जाईं त हम्मे कफन न मिली. औ भगवान-भगवान करी तब्बौ न मिली. तहार सब के संगत रही त हम्मे कुल चीज मिल जाई. एह से हमार मानव से जादा प्रेम रहेला. औ हम्मे भगवान-ओगवान के फेर नाहीं रहत कि हम्में भगवान मिल जइहें त खियइहें. तू मिलबा त खिया देबा, ऊ पट्ठा न खियाई. ऊ त दांत चियरले हौ मंदिर में. ऊ त खुदै हमार खात हौ, ऊ का खियाई ? जे चहिबा ओके तू खियइबा, महानता तोहरे में हौ के ओकरे में?
8 comments:
नसूड़ी के प्रति के बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। उनके गाए बिरहा की चर्चा रहती थी । शूद्र-चेतना के प्रसार में उनका योगदान याद किया जाएगा।
['सोहरावत हउवा' के नीचे क्या यही आलेख होना था?]
देखा.. हम इनका जनबे नहीं करते थे.. अब तू जनवाय देहला त हम जान गैली..
बस वस्तविक कला ही नफ़रतों और विद्वेश को दूर कर सकती है. पढ़े लिखे और बाजार से प्रभावित लोगों से हम सिर्फ़ "मुजरों" कि ही उम्मीद कर सकते हैं.(कम से कम अनुभव तो यही कहते हैं). एक लोक गायक से परिचय कराने के लिये धन्यवाद.
बस वस्तविक कला ही नफ़रतों और विद्वेश को दूर कर सकती है. पढ़े लिखे और बाजार से प्रभावित लोगों से हम सिर्फ़ "मुजरों" कि ही उम्मीद कर सकते हैं.(कम से कम अनुभव तो यही कहते हैं). एक लोक गायक से परिचय कराने के लिये धन्यवाद.
जिय राजा, खुस कै दिहिल.
नसुडी यादव जैसे महान बिरहा गायक और समाज सुधारक एवं निर्भीक ब्यक्ति विरले ही पैदा होते है ।लेकिन यह अति दुःख की बात न केन्द्र सरकार न मुलायम सरकार हि उनके नाम पर कुछ की ।
ब्राम्हणवाद की धज्जिया उडाने वाले नसुडी यादव की बिरहा वास्तविक मे काबिले तारीफ योग्य है । ऐसे वास्तविक तथ्य देने लोग विरले ही पैदा होते है ।
कला और संगीत से प्रेम करने वाला ही इंसान से प्रेम कर सकता है और जो ऐसा कर ले समझिए कि इंसानियत का धर्म बाखूब निभा पाएगा...नसुड़ी यादव को नमन
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