रोया हूं मैं भी किताब पढकर के
पर अब याद नहीं कौन-सी
शायद वह कोई वृत्तांत था
पात्र जिसके अनेक
बनते थे चारों तरफ से मंडराते हुए आते थे
पढता जाता और रोता जाता था मैं
क्षण भर में सहसा पहचाना
यह पढ्ता कुछ और हूं
रोता कुछ और हूं
दोनों जुड गये हैं पढना किताब का
और रोना मेरे व्यक्ति का
लेकिन मैने जो पढा था
उसे नहीं रोया था
पढने ने तो मुझमें रोने का बल दिया
दुख मैने पाया था बाहर किताब के जीवन से
पढ्ता जाता और रोता जाता था मैं
जो पढ्ता हूं उस पर मैं नही रोता हूं
बाहर किताब के जीवन से पाता हूं
रोने का कारण मैं
पर किताब रोना संभव बनाती है.
रघुवीर सहाय
6 comments:
अच्छा लिखा है । मुझे अंग्रेजी में पढ़ा रूट्स उपन्यास याद आ गया । एलेक्स हैली द्वारा लिखित इस पुस्तक ने बहुत रुलाया था ।
घुघूती बासूती
पढ्ता जाता और रोता जाता था मैं
जो पढ्ता हूं उस पर मैं नही रोता हूं
बाहर किताब के जीवन से पाता हूं
रोने का कारण मैं
पर किताब रोना संभव बनाती है.
- रघुवीर सहाय
आभार इरफान जी इतनी सुन्दर रचना पढाने के लिये..
साहित्य हमारे अंदर की हरियाली को बचाए रखता है . साहित्य अगर हमारे अंतर की करुणा को नहीं जगाता , हमें संवेदनशील नहीं बनाता , हमें बेहतर मनुष्य बनने को प्रेरित नहीं करता तो वह कोरा बुद्धि विलास है .
शुक्रिया यह रचना यहां उपलब्ध करवाने के लिए।
..uff all these loathsome native shairs! sab mar mara liye ro kar . arre ye admi rota tha to koi ehsaan hai kya. jab se aise log india se khatam hone lage hain growth rate of our economy is catching up fast touching 9% per annum today. this country needs only Laughter challenge show today.do u hear me irfu?
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