दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Friday, June 1, 2007

आओ धार्मिक बनें !



विवेक यानी रीज़निंग इस बात की पुष्टि करता है कि सब मनुष्य बराबर हैं. विवेकशक्ति का आह्वान करके साधारण जनता बार-बार और, ज़्यादा मज़बूती से इस बात की मांग कर सकती है कि उसे खाने-कमानेवालों के बराबर के राजनीतिक अधिकार मिलें और वो आर्थिक समानता प्राप्त करने की ओर बढ सकती है. इस तरह विवेक (रीज़न) यथास्थितिवादियों के स्वार्थों के प्रतिकूल पड्ता है इसलिये वे इस दुरात्मा दुश्मन यानी विवेक के प्रेत को झाड्फूंक कर हटाने में लगे रहते हैं. वे इसकी जगह धार्मिक आस्था को प्रतिष्ठित करने में लगे दिखते हैं क्योंकि धार्मिक आस्था न्यस्त स्वार्थों और सत्ता का हमेशा समर्थन करती है.
ग़ौर से देखिये-वे यह सिद्ध करने में नहीं लगे हैं कि प्रकृति का विश्वविधान ही असंगत और विवेकहीन है, ताकि सामाजिक विधान की असंगतियों और विवेकहीनता पर से लोगों की नज़र हटी रहे?

2 comments:

Anonymous said...

धर्म पर ही नहीं, विवेक को तो सिद्धांत पर भी वरीयता मिलनी चाहिए . भवानी भाई के शब्दों में विवेक ध्रुवतारा है .

मुनीश ( munish ) said...

i donno y r u so anti religion. i think all religions are beautiful and the problem lies with their interpretors and the ones who try to impose their religious beliefs on others and these people wud have been like this only even if there were no religions. these are the people who try to impose their political , literary and cultural views also and they must be opposed, this tendency of dadagiri must be opposed. so instead of cursing religions lets raise our voice against fanaticism. i see u have posted ur blog to some nice girls. but when will they start reacting and writing hain ji?????????
Munish