दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Wednesday, June 13, 2007

धर्म = शून्य


धरम का दिन है- छुट्टी करो. धरम का दिन है -आज कोई काम मत करो! धरम का दिन है- आज तो भगवान ने भी विश्राम किया था !
अर्थात ? धर्म = अकर्मण्यता !
इतना ही क्यों ? जब भगवान भी विश्राम करते हैं तो धर्म भी कहां रहा- उसका चक्र भी तो थमा हुआ है !
अतः धर्म = शून्य !!

5 comments:

Anonymous said...

अतः धर्म = शून्य !!!
बहुत धार्मिक -आध्यात्मिक सा कथन लग रहा है । 'खुद को शून्यवत बना देना ' - टाइप ।

अनुनाद सिंह said...

धर्म वह नहीं है जो मार्क्स ने समझा था।

धर्म ये है:
धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्र:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दसकं धर्म लक्षणम्।।

यदि धर्म = शून्य तो धैर्य, क्षमा, दम, अस्तेय(चोरी न करना), शौच(स्वच्छता), इन्द्रियों पर नियंत्रण, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध - धर्म के इन दस लक्षणों का भी कोई मूल्य नही है।

अनुनाद सिंह said...

kyaa huaa?
meraa comment kyo.n nahee chhaapaa?

kuchh aapattijanak lagaa?
kyaa yahee pragatisheelataa hai?

Divine India said...

धर्म कभी शून्य नहीं हो सकता भारत के संदर्भ में धर्म का मतलब थोड़ा अलग है… यह मज़हब से और Religion से भी भिन्न है धर्म तो उद्देश्य है और विकास का साधन… धर्म अगर शून्य होगा तो क्रिया भी शून्य होगी और यह ऐसा नहीं है… जो कर्ता है वह विश्राम नहीं करता मात्र मानवीय गुण का प्रक्षेपण है जो दिखता है…।

मुनीश ( munish ) said...

ye theek hai boss. doosron ke kandhe pe rakh ke bandook chalao or saath me bhadki hui prtikriyaen muft pao.lekin tum mere bheetar soye dharmik ko nahi jaga paye chunki main jaanta hoon ki tum matr blog ko popular karne ko dharm katax khel rahe ho.