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आज शाम जब रामपदारथ ने रामसनेही को एसएमएस किया तो साफ़ था कि ख़बर रामपदारथ तक पहुंच चुकी है. रामसनेही ने एसएमएस दबा लिया. लेकिन एक के बाद दूसरी मिस्ड कॉल्स से साफ़ था कि फ़ोन करना पडेगा. रामसनेही ने पुराने अड्डे के पास अर्चना सिनेमा के सामनेवाली सिगरेट की दुकान से फ़ोन किया, रामपदारथ ने बताया कि चाय का ऑर्डर दिया जा चुका है आ जाओ. दोनों दोस्त वहीं ज़मरूद्पुर की दुकान पर बतियाने लगे जहां उन्होंने बनावटी बातों पर पिछली बार चर्चा की थी.
रामसनेही: बात तो चल ही रही थी लेकिन इस बार गारद ने राहुल को दबोच लिया. फ़ोटो भी है.
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(रामपदारथ फ़ोटो देखता है और कुछ अटपटे सवाल फ़्रेम करने लगता है लेकिन पूछ्ता कुछ और है)
रामपदारथ: लेकिन अभी तक तो आप ब्लॉग की दुनिया में जनतंत्र की बडी बात करते थे. यहां भी हल्का लाठीचारज होता दिख रहा है?
रामसनेही: असल में यहां बडी अच्छी-अच्छी बातें हुआ करती थीं. सब सहमत भी थे. लोग यह देख कर भी खुश थे कि पुराने नक्सली टाइप के लोग अब हैंडपंप आदि लगवाने की बातें करने लगे हैं. ख़ुशी का एक कारण यह भी था कि सरयू तट पर जमा भीड को इन हैंडपंपों से पानी पीपीकर दर्शन आदि की सुविधा रहेगी. फ़ोटो भी है.
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रामपदारथ: यहां तक तो बात समझ में आई, लेकिन ये राहुल को दबोचा क्यों गया?
रामसनेही: कोई बहुत बडा रहस्य नहीं है. आप तो जानते हैं कि इन मिलन केंद्रों पर आम सहमति ये रही है कि समाजवाद आदि की बात करना, लकीर के फ़्कीर बने रहने का दूसरा नाम है. वामपंथियों को पहचानते ही यहां कौआरोर मच जाता है. मतलब यहां के ट्रैफ़िक साइनों में से ये बडा लोकप्रिय है. फ़ोटो देखिये.
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रामपदारथ: तो क्या कुछ लोग लाल किताब लेकर पहुंच गये?
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रामसनेही: नहीं ऐसा तो नहीं कहा जा सकता. और फिर राहुल टाइप के लोग भी क्या करें? अब गीता प्रेस की किताबों से तो अंश पोस्ट करेंगे नहीं. एक कहानी थी-- गुजरात में मुसलमानों की दुर्दशा पर. बस उखड पडे, कह सकते हैं चुंडी खडी हो गयी सबकी. एक का तो फ़ोटो भी है.
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रामपदारथ: वैसे भी मुसलमानों की बात करना तो तुष्टीकरण माना जाता है, ऊपर से कहानी भी मुसलमान जैसे नामवाले लेखक की थी शायद?
रामसनेही: शायद क्या! थी ही. लेकिन इसकी बहुत चरचा नहीं होती कि हिंदी फ़िल्मों के सबसे अच्छे भजन मुसलमानों की टीम ने बनाए हैं? ...उदाहरणस्वरूप.. मोहम्मद रफी- नौशाद- शकील बदायूनी- के.आसिफ़ या महबूब...
रामपदारथ: नहीं ये तो ठीक है लेकिन आप विषयांतर कर रहे हैं.
रामसनेही: चलिये विषय पर ही आता हूं. माना जाता है कि इस तरह के विषयों पर उतनी देर ही बात की जानी चाहिये जितनी देर तक प्वॉइंटर हिलता रहे, मतलब किसी की तरफ रुके नहीं, बल्कि अच्छा तो ये हो कि सब बातें कर लेने के बाद हंसा जाए. गंभीर होने या गंभीर चर्चा का मतलब है कि अब आप राजनीति करने लगे.
रामसनेही:...और राजनीति तो सब गंदी हैं तो कपडे क्यों न साफ़ पहनें...हा..हा..हा.
रामपदारथ: हा..हा..हा..
रामसनेही: चलिये इस हंसी से लगा कि कुछ अच्छी शुरुआत हो रही है.
रामपदरथ: एक तरह से अच्छी शुरुआत तो होगी लेकिन एक और तरह से देखें तो गारद्पंथी कुछ बहुत अच्छे लेखकों की रचनाओं और अनुभवों के प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो जायेंगे जोकि बुरी बात होगी.
रामसनेही: हां ये तो है. अब क्या करेंगे हाफ़ पैंट पहनकर अच्छी रचनाएं हो ही नहीं पातीं.
रामपदारथ: हाफ़ पैंट पहन कर अच्छी बातें सुनने का, पढ्ने का अभ्यास पता नहीं कब शुरू होगा? रामसनेही: अब तो नया एग्रीगेटर बनाने के लिये गोलबंदी भी सुनने में आ रही है. फ़ोटो देखिये.
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रामपदारथ: इसमें आपका हाथ नहीं दिख रहा?
रामसनेही: आपकी पारखी नज़र को मान गये. हमारा हाथ अभी चाय का गिलास थामे हुए है. इससे फ़ुरसत मिलते ही इस शुभकार्य में शामिल होऊंगा.
रामपदारथ:चलिये अब चला जाए...ए लड्का! पैसा कितना हुआ रे!
8 comments:
इरफ़ान भाई
बड़े दुख की बात है कि हमसे आपसे दोस्ती है उसके बावजूद चाय के लिए आपने हमें नहीं बुलाया. जाने दीजिए, कोई बात नहीं. हम बबुआ थे तो शाखा में जाते थे, इमरजेंसी लगी तो समाजवादी हो गए, ज़ोर-जुलुम हुआ तो वामपंथी हो गए, वामपंथ से बात नहीं बनी तो नक्सली हो गए, सब करके थक हार गए तो कहा चलो हम खिलाड़ी नहीं, हर टीम के सपोर्टर हैं, जो लड़ेगा उसके साथ हैं. लेकिन अब लोग कह रहे हैं कि सब आनंद मंगल है, लड़ने की ज़रूरत नहीं है, जो लड़ रहे हैं वो कलह करते हैं, शांतिभंजक हैं. अब बताइए हम क्या करें?
बनल रहा,चँपल रहा ,चिँगुरा दा ,- ओ करेजऊ !
इ जौन चा पारटी रहा उ सिरफ़ खास लोगन के लिए रहा का, हमका तौ बताय भी नहीं न!
आप लोग असली फोटो नकली फोटो में ऐसा फेर कर देते हैं कि दिमाग चक्कर खा जाता है. एक दिन संजय बेगाणी ने बंबई ब्लोगर मीट का फोटो कुछ और दिखाया फिर अजदक्जी कुछ दूसरा फोटो दिखाने लगे, कि नही असली फोटो यह है. यहां आप्ने जितेन्द्र चौधरी का जो फोटो छापे हैं वही जीतू हैं या मोटे-मोटे से, अपना दूसरा फोटो छपते रहते हैं?
आप लोगों को सिर्फ बुरा देखने की आदत हो गई है- मौसम नहीं देखते- अच्छा है। आपको चाय मिली- अच्छा हुआ। हमें रपट मिली अच्छा हुआ।
और बुरे यहॉं से जा रहे हैं--सब अच्छा ही अच्छा हो रहा है।
त भइया, कतना देर ले गिलसवा थामे रहबा? जात हवन सब लोग तोहूं ना चलबा ?
देख ल अब आय गयल समय. खाली दांत चियरले कुच्छो ना होखी?
भाई इधर मेज़ पर पकोडीं रखी है पर हमारा मन निर्मल नही हो पा रहा है और अभी अभी शीशा मे देखे कि हमारा चुंडी का बाल थोडा कम हो गया है..हमारे हाथ मे जो चाय का गिलास है पता नही चला कब का खत्म हो गया ओर हम गिलास थामे सोंच रहे हैं कि इ पंथ वंथ नही होता तो क्या होता सब मनई एक घाट का पानी पीते..किसी से कोई बैर नही रहता.. तो कितना सुख मिलता..लेकिन कया बताएं छोटका के छोट्कन बडका के बड़्हन ई तो परिपाटी रही है.. ई बदलेगा कि नही?... लेकिन इ तो कहना ज़रुरी है कि काम आप अच्छा किये हैं..
अउर ई गारदवालन के कब तक एही तरह से लौंडा नाच करे देहल जाई? जल्दी चाह खतम करीं ए साहेब, कुछ कइल जाव. का?
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