दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Tuesday, May 27, 2008

सुनिये कुबेर दत्त की दो कविताएं


दूरदर्शन के कुछ चुनिंदा प्रोड्यूसरों में अपनी मौलिक सूझबूझ, लेखन और गंभीर आवाज़ की वजह से कुबेर दत्त अलग से पहचाने जाते हैं. टेलीविज़न पर कई कार्यक्रमों की देसी आवश्यकताओं के अनुरूप प्रस्तुति ने उन्हें लोकप्रियता की ऊँचाइयों पर रखा है. आप और हम, जन अदालत, पत्रिका, फलक और कई विशेष आयोजनों में उन्होंने समय और उसके प्रश्नों को हमेशा ध्यान में रखा. कवि, कथाकार, पटकथा लेखक, फ़िल्मकार और अब चित्रकार कुबेर दत्त इन दिनों दूरदर्शन के मंडी हाउस में चीफ़ प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं. पेश है कोई आठ साल पहले उनके घर पर रिकॉर्ड की हुई उनकी दो कविताएं "एशिया के नाम" और "समय जुलाहा" उनके ही स्वर में.

एशिया के नाम समय जुलाहा

Wednesday, May 21, 2008

रेडियो रेड और क़िस्सागोई: सुनिये सियारामशरण गुप्त की एक क्लासिकल कहानी


हमारा साहित्य कई कालजयी रचनाओं से भरा पडा है. मानवता की करुण दास्तानें और उनकी निर्दोष अभिव्यक्तियों की बानगियाँ चप्पे-चप्पे पर दर्ज हैं. रेडियो रेड समय-समय पर इन्हीं रचनाओं का महत्व और उत्सव रेखांकित करता रहता है. इसी क्रम में आज पेश है सियारामशरण गुप्त की शॉर्ट स्टोरी काकी. आवाज़ है हमारी सहकर्मी राखी की.


अवधि: लगभग 5 मिनट

Monday, May 19, 2008

हल

सत्रह जून के बलवे के बाद
लेखक संघ के सचिव ने
स्तालिन मार्ग पर पर्चे बंटवाए
जिनमें कहा गया था कि
जनता ने सरकार का विश्वास खो दिया है
और अब दुगने प्रयत्नों से ही
उसे पा सकती है. ऐसी हालत में
क्या सरकार के लिये ज़्यादा आसान नहीं होगा
कि वह इस जनता को भंग कर दे
और दूसरी चुन ले?
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बर्तोल्त ब्रेख़्त

Tuesday, May 13, 2008

आज मेरा जन्मदिन है, बधाइयाँ आमंत्रित की जाती हैं!


बयालीस वर्षों की यात्रा के बाद कल मेरी सूरत ऐसी थी. आज मेरा जन्मदिन है इसलिये बधाइयों के लिये पहले से धन्यवाद आदि आपको देता हूँ. चौदह साल पहले पहलू ने इस मौक़े पर मुझे एक कविता भेंट की थी, उसके बाद किसी भेंट की अपेक्षा नहीं रह गई है.

आज ही मेरे परम मित्र संजय जोशी का भी जन्मदिन है. उनको "मैंने कही और तूने मानी, दोनों परम गयानी" दुहराते हुए बधाई देता हूँ.


फ़ोटो फ़रज़ाना ने खींचा है.

Sunday, May 11, 2008

एक छोटा सा टुकडा


बरसों पहले मैंने एक डॉक्यूमेंट्री देखते हुए उससे संगीत का एक टुकडा रिकॉर्ड कर लिया था. ये मुझे अच्छा लगा था. फिल्म में कुछ मछुआरे अपनी नाव समुंदर की तरफ़ ढकेल रहे थे, पृष्ठभूमि में सूर्य अस्त हो रहा था. फिल्म शायद उडिया भाषा में थी. आपको भी सुनाता हूँ यह छोटा सा टुकडा. अगर आपके पास यह गाना पूरा हो तो बताइये और अगर नहीं हो तो बताइये इसमें गाया क्या जा रहा है?

Thursday, May 8, 2008

नौकरी मिली है तनख्वाह नहीं !


मेरे साथी रेडियो जॉकी रवि उतने ही अच्छे हैं, जितना मैं. यह बात हम एक दूसरे की तारीफ़ करते हुए जान पाए. एफ़एम शोज़ करने के अलावा वो शायद मार्केटिंगवालों को मोटिवेट भी करने का कारोबार करते हैं. मेरी उनसे नज़दीकी की वजह ये भी है की वो उन दुर्लभ लोगों में हैं जो किसी विषय पर ठहर कर बात कर सकते है. आज उनका फ़ोन आया कि उन्होंने पिछले कुछ महीनों से एक ब्लॉग शुरू किया है जिसमें वो फिल्मों और आम ज़िंदगी के बीच आते जाते मुहावरों और चुस्त फिकरों की ख़बर रखेंगे। यहाँ वो न सिर्फ़ इन फिकरों की फेहरिस्त बनाएँगे बल्कि ज़रूरी संदर्भों और अपनी समझ से भी इन पोस्टों को सजाएँगे। मैं अभी एक सरसरी नज़र डालकर आया हूँ आप भी जाइये. ब्लॉग का नाम है-
मेरे दोस्त बीडियों पर उतर आए हैं

Tuesday, May 6, 2008

नसुडी : परमाणू बम

नसुडी एक और परफ़ॉर्मेंस का ट्रान्सक्रिप्शन-

भइया! हम गवइयन के आदत हौ कि पीछे ना कहब,समाज बदे चाहे जौन कुछ बोल जाईं. बोलब त समाज के प्रती बोलब, बिचार के प्रती बोलब.
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पंचौं ठीक हौ, हम बहुत बडा गलती करीला लेकिन एतना सज्जन भइअयन में केहू अपने मेहरारू के मेहर कहेला? लडिका से आके पूछेला कि क रे बच्ची मेहर कहाँ गइल हमार? आई त पूछी ए बच्ची!माई कहाँ गइल तोहार. ई न कहत कि मेहर कहाँ गइल हमार. सोच लीजिये कि ऐसा ही गायक हमें सोच के लोग ली आते हैं, जिसको तमीज नहीं है बोलने का.

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राखी जउन बंधात होई त सुबह में बँधात होई, पूर्णिमा के बँधाई. बारह बजे रात राखी बान्हे के ऊ लिखले हौ चिट्ठी में? केसव लिखत हउवन,गाना मुस्तफा गावत हउवन? ई कबिताई करत हउवन? होस में बेहोसी के बात बात करत हउवा? हम त धीरे से छुवाई ला न हो!! आजकल के गवइयन के होला कीरी, ऊ काटे लगिहै अइसे-अइसे. तब हम्मै लगेलेन खरबोटे!

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जे तमीज का बात करेलेन...जज के मकान में पुलिस का पहरा रहेला? एक खे दरबान रहेला. वहाँ मिलिट्री का कैम्प रहेला जज के ईहाँ? मजाक मत करा! बिरहा हौ, लोकगीत हौ, ओके पढ ला कहाँ तक गलत हौ, कहाँ तक सही हौ.

जज के हाथे में फैसला ना हौ, फैसला कानून हौ. साबूत जब तक नहीं देंगेतब तक अज्ज-जज्ज, कलट्टर, एसपी कुछ करता नहीं है. इंद्रा के मरले हउवैं खालसावाले सब पंजाबी. लेकिन कानून हौ. ई देस जानत हौ कि इंद्रा के इहै गोली-मसीनगन से मारा लेकिन वो कानून के और सबूत के पीछे आजतक जीवित है. तो...कानून होता है. मजाक कर दिये हो कानून से!

आप एहर से धरम डकैती सुनें कि धरम के डकैती कहाँ हौ--


धारा नगरी है मसहूर
जहाँ पर रही हुस्न की हूर
सहूर में रही नाजनी मंडी था जिसका नाम

भइया! धारा नगरी में एक लडकी रहल. ऊ बडी गरीब घर की लडकी रहल लेकिन वो खूबसूरत थी. उसके पीछे लोग पडे थे. लेकिन वो समाज हेरती थी कि "हमार सादी लब से करब जे सामाजिक होई उससे." कि समाज का होला? ई समाज के अथ्र में मुझको लाना है. तो कैसे आएगा? तुमको ठोकर लगेगा तभी आएगा. देखें भइया, होता क्या है- कहलन कि

ए मुसाफिर भटकता है क्यों दर
दोनो आलम का रहबर मदीने में है

त तूहौं मदीने में जा. इहाँ कटहर लेवे अइला ह? तुहऊँ जा मदीने में. जब दूनों चल गइल हँ त तू इहाँ रह के का करबा? ओ ठीयन तोके खाए के मिली, एठीयन का करत है मरदे! जा ओहरियें. तो बाऊजी होता क्या है-


तुम भटकते रहे हो, भटकते रहो
मानो की सक्ती मानो के सीने में है

हमार सक्ती हमरे सीने में है.

न काबा में है न कासी में है
मानो की सक्ती देखो हसीनो में है

त भइया, कौन नहीं मोहा? कौन बडा है हसीनो से? कोई है पीछे? तोहार मेहरारू बुड्ढी हो गइल हो त अगले-बगले देखत होबा कि केकर सौखीन बाय?

माया की सक्ती मानो हसीनो में है

हमने ई कहा कि माया ओहीके कहेलेन कि एक माया माई के छोड के तब से दूसर माया- ई जौन माई कहली ह, कि लडिकईं में माई सब सरीर देखेला औ सयनई में मेहरारू कुल सरीर देखलीन; एकरे बाद कोई देखता नहीं है.

और माया हौ, माई जियत हौ, मेहर आ गइल त ओ माया के छोडके ई माया घेर्रा के लेके चल जाला. तो बात मिलती है. बात एही है, कैसे?-

देख मंडी का सूरत सभी जन सटे
एक पलक सी नजरिया मिलाती नहीं
डाल था गरीब का एकलौता सुनारा
मंडी से जिसका लड गया नैनों का नजारा
एक रोज बोला डाल, मेरी जान बता दो
कैसे तू हो गई फिदा-ए-मुझसे सुना दो
हँसकर के बोली मंडी अमीर तुम न होते
आकर के हर गरीब पर अपनी निगाहें खोते

डाल पूछ रहे हैं मंडी से कि तोहार खर्चा हमसे न चली औ तोहसे हम बियाह न करब. कोई बड घर के लडकन से जाके अपनी सादी करले, काहे कि एतना बढियाँ सुंदर रूप हौ. तोर खर्चा हमसे न चली. मंडी कहलस- सुना हो!तोहसे बियाह हम करब औ कोरट लब से.अमीरन के निगाहे में मोहब्बत ना रहै. हमरौ से सूरत जे के पा जइहैं त हम्मैं ठोकरा दिहैं, ओकरे प निगाह डाल दिहैं. ऐसा बिचार होता है उन लोगों का. त ऊ बिचार से हम्मर सादी न होई. मंडी कहे लगल कि हम तोहरे संग सादी करब. त डाल कहल कि हम मट्टी भरब त तोहैं मिट्टी ढोवै के होई. हम गरीबन के कहाँ पइसा पाई. कुली-काजर के का मिली. ऊ कहा- तू मट्टी भरके उठावा हम सडक पर मट्टी डालब. हमार सब के नौकरी से काम होई लेकिन सादी करब त गरीबे से.
त बाऊजी होत का हौ? एक्खे तरज एम्मे मिलल हौ-

बोहाई परै मेला में सइयाँ न हेराए हो
सार न भेटाए हो बेकार भएल मेलवा में

का कटले हौ? उनके ससुराल वाले आदमी बतावैं कि हम्मै इहे कटलेस ह. कीरा कटलेस हौ कि बिच्छी कटलेस? कि हम कुछ छुवा देहली ह? अइला ह बहनोईवाला करे? जेके छुवा देली, भागल ढोल करताल लेके- ऊ गवइया हम हई. हमार संगे ई पाल्सीबाजी तोहें सभैके ना करेके चाही. आज त हम्मार इज्जत होए के चाही ओनकर त रोज होत ह!

बाऊजी! मेरे सज्जन भइया! अब बात मिलल आगे क...

अरे चेहरे पर थी उदासी हर घडी
भाग के चले हैं दूनो आए हैं जब कासी
चेहरे पर थी उदासी हर घडी

भिया हम गवइयन के आदत हौ कि पीछे ना कहब,समाज बदे चाहे जौन कुछ बोल जाईं. बोलब त समाज के प्रती बोलब, बिचार के प्रती बोलब.

बाऊजी! एक रात के जब रात भेयल तब मंडी किहन पहुँच गयेन बडे लोग रिवाल्वर लटका के. कहत हउवन आज डाल के मार के मंडी के जबरीं उठा लेत हईं. का करिहन साला गरीब-सरीब त हएन. ओन्हे के कहाँ ताकत बा? ओके मारके उलट दे, ओके रख ले.


मंडी कान से सुनत हौ. जब साम के डाल खाए आवत हौ त मुहैं मे जब कौर नावत हौ त कहत ह- सुना हो! आज तू अपने पेट भर, आत्मा भर खा ला. कहेन- बात का हौ बात दे, त कहैं - का तोहैं बताई- फलाने-फलाने चच्चा आयल रहलें,तौन तोहें मारै के कहत रहेन. औ कहलन कि मार के मडई में सुता दा औ एके मंडी के निकाल के मडई जला दा. त आज हमसे तोसे मुलाकात छूट जाए वाला हौ. डाल के मुहैं में से कौर थाली में गिर गएल.


ई गरीबी हौ
औ ई धरम के डकैती हौ

जे कहेला ईहै धरम हौ, ऊहै धरम के डकैती करत हौ?

बाऊजी! डाल कहल कि हम तोसे पहिले कहिली कि हमसे बियाह मत करा, मगर तू मनलू ना, हमरे जीवन के तू खतरा हो गइलिन.

मंडी कहत हौ- तब कत्तौं भाग के चल चला, जौन देस ईमानदार है. कि हमर सब क ओट्ठिन जिंदगी बच जाव और भाग के दूनो आ गइलन कासी में.

इहै कासी हौ और धारा नगरी से दूनो भाग के अइलैं लेकिन इहाँ कबी के भाव ऐसे हैं-

कौन तर्ज बा हो?


आके कासी में बोले हैं दूनो सभी
जिंदगानी हमारा सुधर जाएगा


बाऊजी! सुननेवाले मेरे सज्जन भइया! देखिये धरम की डकैती कैसे होत हौ?

बाऊजी आखरी बजार मसान पर लगेला जहाँ पर मुद्दा खतम हो जाता है. जई दियाँ से दफनाला ओही ठिना से आखरी होला. कबी कहलेन-

और केतना जनी कहलें-

"लगली बजरिया अगमपुर हो, हीरा रत्ने बिकाय"
ओनसे हम पूछीला अगमपुर कहाँ हौ? ई बीचमे गयल रहला ह कतौं? देखले ह अगमपुर? सोना में रतन खरीदे जाता चोरऊ? चोरीकट बात सिखावत हउआ? असली बाजार जहाँ लगेला उहाँ बताय दा.

मंडी का करत हौ? उसी भाव में भइया!


शौक से दोनो रहने लगे
छाती में भरकर हुलास
सुख से जीवन बीत रहा है

आगे का सुनिये इतिहास
अरे संग चले हैं दोनो एक दिन


बाऊजी! कत्तकी पुर्नमासी का पर्ब लग गया. औ उनहने दूनो झउआ फेंकत रहलेन. कउनो काम केहू बताय दे- नौकरी करत रहलेन.

कत्तकी पुर्नमासी क जब नहान लगल त ऊ कहत हौ डाल! आज कउनो परब ह? सभै नहाए जात ह, आज अगर काम न करतीं त हमनी नहाए चलल जात. बडा धरमी पुन्न होला.

मंडी कहै तू नहाय ला, औ डाल कहे तू नहाय ली. दूनो आपस में बात करत हउवन. त मंडी कहत ह-तू नहाय के आके बइठा, जब हम नहा के आइब त तोहार चरन क पूजा करब, हमार तारन-तार हो जाई. एट्ठीन त तू हमार भगवान हउवा.हम दोसरे के केके मानी? डाल नहाए जात ह...तबसे भयल का!


बाऊजी!
मेरी पुतरी रे मेरी पुतरी

अच्छा तोहईं लोग सोचा- हमाए घर कुरउना पडेला, भदोही रोड पडी कमसकम इहाँ से सात कोस. अ तवन भइया कहलन कि बिसेसरगंज में एन बोरा ढोवेलेन. ठीक हौ हम बोरा ढोईला लेकिन डकैती ना न करीत, त का बेजाँय करीला? खट के खा लेवे के न चाही? हम बोरा ढोईला त का बेजाँय करीला? तोहरी बहिन-बिटिया के बुरा निगाह से देखीला, बोरा ढोईला त? का बेजाँय कइली? बोरा ढोईला, तोहैं बोरा ढोए से चिढ हौ? तोहैं कौनो गुस्सा लगत हौ तो कहा अरे यार बोरा मत ढो हमरे इहन बैठ के खो. तोहें तकलीफ होए त ले चलके खियइबा-पियइबा कि बोरा ढोए क मेहना मारत हउआ हम्मै?

बाऊजी! देखल जाय! उहाँ दोनों जब नहात हवैं त भयल का?

अइसन सुंदरी हो अइसन सुंदरी
कइलन उहाँ सब जबरी

बाऊजी! डाल नहात हौ. तब से पंडा लोग पहुँच गइलन लडकी के पास. पंडा लोग पहुँच के कहत हवैं- का बचवा! इहाँ का करत हऊ बइठल?
कहला बाऊजी! हमार पती नहाए गएल हउवन, नहाय के अइहन. त कहलन-"ऊ छतरिया में काहे न चलतू? एट्ठीन बइठ के का करत हऊ? ओ छतरी में चला.ओई ठीयन आपन संकल्प छोडा ले."

कहे ओन्है नहाय के आ जाए दा, हमहू नहाए लेईला तब संघै चलीला, चलके संकल्प छोडाए लेहीला आए के-छतरी में.

तब से एक पंडा अऊर आ गलेन, दुई पंडा,तीन पंडा,चार पंडा...धीरे-धीरे हो गइलन छ: पंडा.चारी ओरी से ओके घेर लेहलेन.

अउर घेर के अब ओके जबरी करत हउवन.

केहू जने ओकर पखुरा धइलन, केहू ओके हाथ धइलन, केहू जने चचुरियावत हउवें, केहू जने ओकर सर समान उठावत हउवें.

ऊ कहलाँ नहाए गयल हउवैं अइसन मत करत जा. तब अउर मेला पूछत हौ कि क हो भइया! ई लडिकिया के तू लोग काहे पेर्रावत हउवा?

कहैं कि एकर माई दू थप्पड मार देलस हौ, ई कोहाँ के गंगाजी में कूदे बदे जात हई, ओही से एके धई के हमने ले जात हई-


अरे केहू धइले चेचुरा, केहू लेहलेस लतरी

कइलें जबरी हो कइलें जबरी

अरे इहे छतरी हो उहै छतरी , तबलें पहुचाय दिहलें कोठरी हो


अच्छा बाऊजी! देखा जाए- ए छतरी से ओ छतरी पहुँचा देहलें. छतरी देखात-देखात ओके कोठरी में सब बंद कर देलन.


एहर जब डाल निकल के पंडा से कहत हौ- गुरूजी(गोड पकड रहा है)... अऊर बिटिया बना के लडकिया के ले गयल हउवन...बाप हवैं. ई धरम कहेला! बिटिया बनाय के, ओ के ले जाय के बंद कै दिहिलन...औ डाल पूछत हौ-"एक्खे लडकी रहल है, मेहरारू अइसन! कवने ओरी गइल गुरू!

कहैं-"हम तुम्हारा मेहरारू अगोर रहे हैं? यहाँ मेहरारू अगोरवाने आए हो?"

पंडा लोग कहत हउवन-"मेहरारू अगोरवाने आए हो?"

कहैं-"नहीं गुरूजी! हम पूछत हईं,हम अगोरवावब ना!"

कहैं-"भाग एहरै गोदौलिया ओरी."
ऊ बेचारा भीजल कपडा पहिर के गोदौलिया के ओरी आप मेहरारू हेरै जात है.
औ तब से ऊ कहाँ पाई? पंडा लोग त दरियैं चोरा लेले हवैं. धरम की चोरी हो गई वहाँ. औ रात होत हौ तो पंडा लोग अंडा-सराब खा के पहुँच गइलें ओकरे पास.

लडकी हाथ जोड के कहत हौ- बिटिया बनवले हवा, बिटिया रहे दा. जिंदगी भर तोहार कपडा कचारब, खाना बनाइब. तोहार बिटिया हई, हमार धरम बिगड गइल ह, अब हमार धरम बिगाडा मत.

लेकिन जब छनल ह...

बाऊजी! नहीं माने लोग और उसके साथ छः-छः रोज का ओसरी पंडा लोग लगा लिये. छः रोज एक पंडा रखै त छः रोज एक पंडा रखै.

लडकी मरने काबिल हो गई, रात दिन रोती थी और उसका प्राणी जो है पागल होकर भीख माँगता है.

ई तेरा धरम कहता है? यही धरम है? इसी को हम लेकर गंगाजी अपने मेहरारू के, बहिनी के लेके चली नहवावै? औ धरम करै? और ऊहाँ के धरमी लोग जे बइठल हैं, ऊ चोरा लें? यही धरम है? तो धरम की डकैती वहाँ हुई.


रोवे मंडी बेचारी मैं क्या करूँ

फूटल मोकद्दर हमारी मैं क्या करूँ.


तब ऊ करे का लगल, कि जब सोचलस हमार जिंदगी ना बची तब एक्खे धोती रोज फारे और जवन खाये बनाये के दें ओके सान के गइया-गोरू के खियाय दे. औ नंघै रहे. जब पंडिज्जी पहुँचैं कहैं "का रे!कपडवा का भयेल?"

"तोहार माई आए रहीन ओनही ले गईन."

लगल गारी फक्कड देवे,उबियाई लेहलस. ओनकर ओसरी होए त जब उबियाई गयलन त कहैं, अरे यार तोहहीं रख लेता त नगद रहा. त छवो लोगन के हिम्मत ना परल. उपद्रव करत धन के बरबादी करे लागल. कहे, ई हमरे पीछे परल हवन त एनके पीछे हमहूँ पडब.

बाऊजी! रोती-रोती जब हैरान हो गईल. तब नंघे रहे लगल तब ओम्मेसे जब सतवाँ पंडा कहे-हम्मे दे दे यार तोहने मत रखा.

तब ओनके ले लेलन. त ओन एक रंडी से कहत हन कि हमरे एक खे लडकी हौ लंबी? त रंडीवा कहत हौ कि हाँ सरकार लेब लेकिन बेना देखे ना लेब.

जब आके ऊ बरतन माँजत हौ ऊ लडकिया, त कहत हवन देखा ऊ हमार बिटिया है अगर जितना दाम देवे के हो तो दा.

तब रंडीवा कहलस कि पंद्रह सौ रुपिया ह.
कहल ले जा पंद्रह सौ रुपिया दा.

एक हजार पाँच सौ में बेच दिये उसको
रोए मंडी बेचारी मैं क्या करूँ

बाऊजी! आ गईल रंडी के कोठे पर. जे ओकरे पास त अइसन गाना गाव कि केहू हमसे हालचाल पूछी कि रंडी तैं काहे भइली त हम ओसे कुल कारन बताइब. त ऊ गावत का ह?


जमाना रे प्यार पा गया
प्यार पा गया सिंगार पा गया


बाऊजी! कोई पूछनेवाला न मिलत हौ कि जमाना रे प्यार पा गया, जमाना रे सिंगार पा गया. लेकिन कोई पूछ्ने वाला नहीं मिल रहा है.

एक रोज एक बाऊसाहब जात रहलैं रंडी के पास. औ जवन ई पगला रहेस, भीख माँगत रहै-बाऊसाहब क धइलस गोड.
कहलस आके दुकाने प खिया द हम्मै कुछो सरकार.

कहलन भाग साला. छू दिया हमारा गोड.

झटक देहलन. पीछे ओरी गिर पडलल,ओकर खोपडा जौन हौ...