दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Friday, June 15, 2007

दुनिया एक संसार है और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है !


-शादी कर ली? बच्चे कितने हैं??
-और सुनाओ नयी-ताज़ी?
-यार तू तो बहुत बदल गया! आवाज़ बडी मैच्योर लग रही है.
-मिस्टर प्रसून सिन्हा एक इम्पॉर्टेंट मीटिंग में हैं, एनी मेसेज सर ?
-पापा आपका फोन!
-अब ज़िंदगी में कोई मज़ा नहीं रहा यार...बस नौकरी है...दस से पांच का चक्कर है...घर गिरस्ती बीवी-बच्चे बस!
-सॉरी यार आज शाम की गाडी से पूना जा रहा हूं.
-पेंटिंग! अब पेंटिंग कहां?? तुम्हें बताती हूं इनके साथ रहते हुए रंग-ब्रश-कैनवस आज तक नहीं देखे.
-दिस इज़ वॉएस मेल सर्विस फ़ॉर 9818483456.आय एम नॉट इन द टाउन ऎट द मोमेंट, प्लीज़ लीव योर नेम, नंबर ऑर मेसेज अफ़्टर यू हियर द बीप.
Song fade in..
ये वो आवाज़ें हैं जो मुझे पिछले साल देश-भर में फैले दोस्तों को फ़ोन करने पर सुनने को मिलीं.
साहित्यकारों की स्मृतियां रेकॉर्ड करने के लिये यात्राएं जारी थीं और हर महीने छोटे-बडे शहरों या क़स्बों में होने का मौक़ा होता था. अब ऐसे में उन पुराने दोस्तों की याद लाज़िमी थी जो इन शहरों-क़स्बों में आ बसे थे.
बचपन के दोस्त, स्कूल के दिनों के साथी, कॉलेज के सहपाठी और तमाम दूसरे लंगोटिया यार. बचपन की शरारतें, लडकपन की अटपटी बातें, होश-ओ-हवास में खाई गई क़समें, दोस्ती निभाने के वादे और न जाने क्या क्या...अपनी-अपनी ज़मीन पर वक़्त की धूल तले जस का तस दम साधे पडा है. यादों का सिलसिला शुरू होता है और एक हल्का सा स्पर्श पाते ही एक पूरा दौर जवान हो उठता है.
Song fade in
कोई इसे वक़्त का सितम कहता है, कोई कहता है हालात बदल गये; किसी का मानना है क़िस्मत की बात.कोई पैरों में चक्के कहता है, पेट का सवाल. जितने मुंह उतनी बातें. सच क्या है ये तो फ़लसफ़ी ही जानें.शायर कहता है-'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता.' फिर किसी ने फ़रमाया "जो तुम चाहते हो उसे पाने की कोशिश करो,वरना जो तुम्हें मिलेगा उसे तुम पसंद करने लग जाओगे." एक रिक्शे के पीछे लिखा है-'जो मिल जाता है वो दुख है, जो नहीं मिलता वो सुख है.'
Song fade in
आज के सब-इंस्पेक्टर मिस्टर चंद्रमोहन शर्मा बीस साल पहले चुन्नू थे--एक सुरीले बांसुरीवादक. इतवार का दिन, स्कूल की छुट्टी और हम लड्के नदी किनारे एक ख़ामोश छांव में जम जाते थे...इधर-उधर की आवारागर्दी को एक सुरीली लगाम सी लग जाती थी जैसे ही चुन्नू की बांसुरी गा उठ्ती थी.
अब ये अच्छा है या बुरा कैसे कहूं लेकिन मिस्टर चंद्रमोहन शर्मा के शांत घर की दीवार पर टंगी बांसुरी आज धूल का बोझ उठा रही है और चुन्नू की कमर में टंगी सर्विस रिवॉल्वर उसके परिवार का बोझ.
Song fade in
और ये सफर दो जिगरी दोस्तों को ज़िंदगी के एक मोड पर फिर मिलने का मौक़ा देता है.
इन दस-पंद्रह बरसों में गंगा-जमना में न जाने कितना पानी बह गया है.
ये वो दोस्त हैं जिनके लिये एक दूसरे के बग़ैर जीना बडा मुश्किल था.
कॉफ़ी हाउस की मेज़ के दोनों तरफ़ इतिहास की किताब के दो फटे वर्क़. कॉफ़ी ठंडी होने को आई....'और सुनाओ नयी ताज़ी'..फिर एक ख़ामोशी, कभी न ख़त्म होने वाला मौन.
कहा जाता है कि दोस्ती जब बहुत पुरानी हो जाती है तो गुफ़्तगू की चंदाज़रूरत बाक़ी नहीं रह जाती. खामोशी की भी अपनी ज़ुबान होती है.
शायद यही सोच-सोचकर तसल्ली कर ली.
Song fade in
"मैं कब का मर चुका हूं सदाएं मुझे न दो!"
पोस्टकार्ड पर बस इतना ही लिखा था. न नाम न पता.
लिखावट का भी अपना चेहरा होता है, और वो चेहरा धीरे-धीरे यादों की एल्बम के धुंधलके से उभरता है और उभरती हैं तोडी गयीं वो पंक्तियां भी--
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड खजूर,
देखन में छोटो लगे घाव करे गंभूर.
और इस छोटी सी बात ने और भी गंभूर घाव किया-
"मैं कब का मर चुका हूं सदायें मुझे न दो!"
संवाद के नये साधनों का बढता शोर एक तरफ़ है और एक पुराने दोस्त का घोषणा-पत्र एक पोस्टकार्ड पर.
Song fade in
(...जारी रहेगा)

4 comments:

Anonymous said...

You are probably one who cares present as well as the past with same intensity as a matter of fact. Keep it up.

अनामदास said...

अवाक रह गया पढ़कर. कुछ लिखने का मन कर रहा है लेकिन समझ में नहीं आ रहा क्या लिखूँ. इस रचना की सफलता यही है. बहुत दम है साहब.

Sanjeet Tripathi said...

टची!!

Unknown said...

और क्या लिखूं
आपने याद दिला दिए भूले बिसरे कई अफसाने
गली किनारे खड़े दिख रहे है कुछ यार पुराने
कोई एक यार बचे है बाकि जाने कहाँ गए .कुल कहानी लगभग वो ही है जो आपने लिखी है और खूब लिखी है .कई बार माजी के नख्श हंसते है और कई बार इस हद तक सताते है के हजरत ग़ालिब का शेर याद आ जाता है
याद ऐ माजी अजाब हुई जाती है /छीन ले रब कोई हफीजा मेरा