दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, June 3, 2007

चिट्ठाकारों का महाधिवेशन: प्रेस विज्ञप्ति

नई दिल्ली.3जून 2007. अगले महीने राजधानी में होने वाला ब्लागरों का महाधिवेशन फिलहाल अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर दिया गया है.ब्लॉगरों को एक संगठित शक्ति में बदलने और सार्थक सामाजिक गतिविधियों में उतारने के लिये यह पहल राज्धानी की एक ग़ैरसरकारी संस्था मायामोहिनी ने की है.मायामोहिनी की एग्ज़ीक्युटिव डायरेक्टर अचानक विदेश दौरे पर चली गयीं इसलिये उनका पक्ष नहीं मिल सका लेकिन आयोजन की तैय्यारी समिति की एक आपातकालीन बैठक आज शाम यहां सम्पन्न हुई.
बैठक मे तैय्यारी समिति के अध्यक्ष स्वामी धकधकानंद की अनुपस्थिति संभावित थी और वही हुआ.उनका कहना था कि बार-बार अपने चिट्ठे पर जिस विशेष शैली का लेखन वे जारी कर रहे हैं उसे एक शैली के बतौर मान्यता मिलना तो दूर लोग उसका सौंदर्यबोधात्मक संज्ञान तक नहीं ले रहे हैं.तैयारी समिति में कई नामी और बेनाम सदस्य हैं लेकिन स्वामी जी पर सबका विश्वास गहरा है.मीटिंग में एक ऎडहॉक कमेटी बना दी गयी है और लगता है जल्द ही संकट पर क़ाबू पा लिया जाएगा.तय किया गया कि है अधिवेशन में "ब्लॉगिंग:समस्याऎ और समाधान" केंद्रीय विषय होगा.इसके अलावा "मेरा चुंतन" जैसे ब्लॉगनामावली को बढावा देने के लिये एक कोर कमेटी बनाई जाएगी.एक दूसरे के प्रति गाली गलौच के रवैय्ये पर चिंता तो व्यक्त की गयी लेकिन माना गया कि इससे स्वाभाविक और बिंदास माहौल बना रहता है. उन लोगों के प्रति उदासीन और अवहेलनात्मक रवैया बनाने पर सर्व सम्मति व्यक्त हुई जो 'यहां भी' अपने बासी और नक्सलाइट टाइप के विचार व्यक्त करते हैं.ब्लॉगलेखन एक नया क्षेत्र है और यद्यपि इसमें मर्यादाएं और नीति सुपरिभाषित नहीं हैं(हडबडी में की भी नहीं जानी चाहिये)फिर भी एक अव्यक्त सहमति इस बात पर है कि ब्लॉग लेखन को गंभीर कार्यवाही नहीं बनाना चाहिये.एक युवा ब्लॉगर इस विषय पर अपने साथ एक परचा भी लाये थे.परचा यहां अविकल प्रस्तुत है--
"लेखन कोई ऐसा कौशल नहीं है जिसके लिये व्यक्ति को जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों का ज्ञान हासिल होना ज़रूरी हो, बल्कि कई बार तो जीवन के किसी भी क्षेत्र में कोई अनुभव न होने पर भी आप लेखक के तौर पर विकसित हो सकते हैं. क्या यह आवश्यक है कि लेखक व्यापक अनुभव का संग्रह करे और सत्य की खोजों में भाग ले? क्या लेखन के लिये बहुत कुछ पचाने, बहुत ज़्यादा जुड्ने,दुख सहने-झेलने की ज़रूरत है? मेरा विचार है कि लिखने के लिये आपको लिखना आना चाहिये बस."

2 comments:

VIMAL VERMA said...

अरे ये तो बताइये ये बहस कौन उठा रहा है? और इसके पीछे उद्देश्य क्या है ?वैसे मेरी राय मे लेखक होने के लिये क, ख,ग ,घ की जानकारी होनी चाहिये और अनुभवजन्य ग्यान का होना नितांत व्यक्तिगत है हां ये ज़रुर है उसे ये तय तो करना होगा कि वह किसको आधार बना कर लिखना चाहता है.. ये दिगर बात है कि लेखन कूड़ा है या कुछ और ये तो पढ्ने वाला ही तय करेगा.क्यो गलत लिख गया क्या?

मुनीश ( munish ) said...

im juss warninng u pls. stay away 4m all this literary blah blah. lets concentrate on gud things of life : like shayri is still okay then sharab may be shabab too, some new places, cinema vagareh .