दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, September 23, 2007

पहिया बदलना

मैं सड़क के किनारे बैठा हूं
ड्राइवर पहिया बदल रहा है

जिस जगह से मैं आ रहा हूं वह मुझे पसंद नहीं
जिस जगह मैं जा रहा हूं वह मुझे पसंद नहीं

फिर क्यों बेसब्री से मैं
उसे पहिया बदलते देख रहा हूं.

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बर्तोल्त ब्रेख़्त

1 comment:

मीनाक्षी said...

सुबह-सुबह चाय का प्याला लेकर चिट्ठे पढ़ने का आनन्द बढ़ता जा रहा है।
"मैं सड़क के किनारे बैठा हूं
ड्राइवर पहिया बदल रहा है"
बार-बार पढ़ने पर विवश सोच रही हूँ कि
जीवन शायद ऐसा ही है कि हम समय का बदलता पहिया
देखते रहते हैं और आगे बढ़ते रहते हैं चाहे-अनचाहे।