जब रात हुई
तो कुछ बात हुई
और बात भी कैसी
थोड़ी कंपकंपी थी
और उस जंगली घास
के असंख्य कांटों की बूदों
पर ठहरी ओस जैसी
और जैसे-जैसे हम
उंगलियों से
घास को छूते
गहरा और गाढ़ा शहद हमारे प्यालों में
टपकता जाता
क्या चखकर ही मिठास
जानी जा सकती है?
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इरफ़ान
3 जनवरी 1994
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