दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, September 23, 2007

कांटे और शहद

जब रात हुई
तो कुछ बात हुई
और बात भी कैसी
थोड़ी कंपकंपी थी
और उस जंगली घास
के असंख्य कांटों की बूदों
पर ठहरी ओस जैसी

और जैसे-जैसे हम
उंगलियों से
घास को छूते
गहरा और गाढ़ा शहद हमारे प्यालों में
टपकता जाता

क्या चखकर ही मिठास
जानी जा सकती है?
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इरफ़ान
3 जनवरी 1994

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