चिड़िया नाम की नदी को
अपना असली रूप याद आता है
और एक शाम बस
वह उड़ जाती है
अंटोन नाम का एक आदमी
उसे अपने खेत पर
उड़ते देखता है
और अपनी बंदूक़ से बस
उसे मार गिराता है
चिड़िया नाम की प्राणी
अपनी स्वार्थी करतूत पर देर से पछताती है
(क्योंकि अचानक सूखा तो बस पड़ता ही है)
अंटोन नाम का एक आदमी
(अफ़सोस इसमें कुछ अजब नहीं)
गुनाह में अपनी हिस्सेदारी के बारे में बस बेख़बर है
अंटोन नाम का एक आदमी
(यह जान कर कुछ संतोष होता है)
वहां के हर आदमी की तरह बस
प्यास से मर जाता है.
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ख्रिश्टियान मोर्गेनश्टेर्न
1 comment:
कविता पढ़ी और न्यूट्रल मार गया....
यतेन्द्र और अमर.
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