दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, September 23, 2007

त्रासदी का ख़ाका

चिड़िया नाम की नदी को
अपना असली रूप याद आता है
और एक शाम बस
वह उड़ जाती है

अंटोन नाम का एक आदमी
उसे अपने खेत पर
उड़ते देखता है
और अपनी बंदूक़ से बस
उसे मार गिराता है

चिड़िया नाम की प्राणी
अपनी स्वार्थी करतूत पर देर से पछताती है
(क्योंकि अचानक सूखा तो बस पड़ता ही है)

अंटोन नाम का एक आदमी
(अफ़सोस इसमें कुछ अजब नहीं)
गुनाह में अपनी हिस्सेदारी के बारे में बस बेख़बर है

अंटोन नाम का एक आदमी
(यह जान कर कुछ संतोष होता है)
वहां के हर आदमी की तरह बस
प्यास से मर जाता है.
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ख्रिश्टियान मोर्गेनश्टेर्न

1 comment:

Anonymous said...

कविता पढ़ी और न्यूट्रल मार गया....

यतेन्द्र और अमर.