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चड्ढी पहन के फूल खिला है...से पहले भी गुलज़ार ने बच्चों के लिये लिखकर अपनी इस प्रतिभा का परिचय दिया है. और किसी भी बात के लिये उनकी बुराई की जाये लेकिन इस गाने में उन्होंने तारीफ़ के क़ाबिल ही काम किया है. आर डी बर्मन ने बड़ी ही सरल सी धुन से इसे सजा दिया है. पेश है 1977 की फ़िल्म किताब से यह गाना. इसे और पिछले गाने झूम बराबर झूम को हम FM पर नहीं बजा सकते क्योंकि झूम वाले में शराब की बात है और इसमें प्रोडक्ट प्रमोशन का डर है और ये दोनों ही बातें ब्रॉडकास्टिंग कोड के अनुसार वर्जित हैं.
आवाज़ें शिवांगी और पद्मिनी कोल्हापुरे की हैं.
2 comments:
पहले टुकड़ों में सुना था.. पूरा पहली बार सुना आप की मार्फ़त.. मज़ा आया.. शुक्रिया..
वाक़ई दिल की बात कही आपने ।
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