भाई चंद्रभूषण ने 13 मई 1994 को मेरे जन्मदिन पर यह कविता मेरे लिये लिखी
आओ आज रात
मारें धरती को एक लात
निकाल बाहर करें
इसे चकराते रहने की नियति से
आओ पकड़ें आज
एक किनारे से आसमान की चादर
लपेट लें उस पर लेटे ईश्वर को
ढकेल दें उसे छत के नीचे
आओ खड़ा करें
इस चुप-चुप दुनिया में
आज इतना भारी विवाद
कि कोई विवाद न रह जाए
आज के बाद.
8 comments:
सही है !!!!
बिल्कुल उचित प्रण है.
वाह क्या बात है ।
13 मई को चढ़ाना था न...
डायरी कल ही हाथ आई. अभी नहीं चढाता तो फिर खो जाती.
पहल में देवी भाई की कहानी पढी?
चंदू भाई जल्दी कीजिए। ससुरी अब भी घूमी जा रही है।
पहल इधर देखी नहीं। आज-कल में देख लेंगे।
unka kahnaa soorsj hee duniya ke phere kartaa hai
sar-aankhon pe sooraj hee ko ghoomane do, khamosh raho'
- ibne insha{?]
belated H B D
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