दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, September 23, 2007

इरफ़ान के जन्मदिन पर

भाई चंद्रभूषण ने 13 मई 1994 को मेरे जन्मदिन पर यह कविता मेरे लिये लिखी

आओ आज रात
मारें धरती को एक लात
निकाल बाहर करें
इसे चकराते रहने की नियति से

आओ पकड़ें आज
एक किनारे से आसमान की चादर
लपेट लें उस पर लेटे ईश्वर को
ढकेल दें उसे छत के नीचे
आओ खड़ा करें
इस चुप-चुप दुनिया में
आज इतना भारी विवाद
कि कोई विवाद न रह जाए
आज के बाद.

8 comments:

VIMAL VERMA said...

सही है !!!!

Udan Tashtari said...

बिल्कुल उचित प्रण है.

Yunus Khan said...

वाह क्‍या बात है ।

चंद्रभूषण said...

13 मई को चढ़ाना था न...

इरफ़ान said...

डायरी कल ही हाथ आई. अभी नहीं चढाता तो फिर खो जाती.
पहल में देवी भाई की कहानी पढी?

बोधिसत्व said...

चंदू भाई जल्दी कीजिए। ससुरी अब भी घूमी जा रही है।

चंद्रभूषण said...

पहल इधर देखी नहीं। आज-कल में देख लेंगे।

Anonymous said...

unka kahnaa soorsj hee duniya ke phere kartaa hai

sar-aankhon pe sooraj hee ko ghoomane do, khamosh raho'
- ibne insha{?]
belated H B D