खुले इलाक़े में एक बरसाती सड़क पर
एक आरामदेह गाड़ी में सफ़र करते हुए
शाम को हमने एक फटेहाल आदमी को
कोर्निश करते हुए गाड़ी में बिठाल लेने का
इशारा करते हुए देखा
कार की छत थी और अंदर भी काफ़ी जगह थी और हम चलते रहे
और मैंने मुझे चिड़चिड़ी आवाज़ में कहते सुना: नहीं हम किसी को अपने साथ नहीं ले सकते
हमने काफ़ी सफ़र तय किया, शायद एक दिन के कूच का
कि अचानक मुझे अपनी उस आवाज़ से
अपने उस बर्ताव से
और इस पूरी दुनिया से धक्का लगा.
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बर्तोल्त ब्रेख़्त
1937
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