दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, September 23, 2007

कविता पाठ कोलतार बिछानेवालों के लिये

स्वागत कॉमरेड कवि
कब सुना सकेंगे हमें अपनी कविताएं

काम ख़त्म होने के बाद चलेगा

काम ख़त्म होने के बाद लोग
थके होते हैं
हड़बड़ी होती है उन्हें अपने घर पहुंचने की

सनीचर कैसा रहेगा

सनीचर को लोग काम निपटाते हैं
धोना-सीना करते हैं
और चिट्ठियां लिखते हैं--घर

इतवार को चलेगा

इतवार को लोग घरों से निकलते हैं
जवान लोग अपनी छोकरियों से मिलने
बुज़ुर्ग स्टेशनों को
अपनी रेलों का इंतज़ार करने के लिये

तो वक़्त नहीं है आपके पास कविता के लिये

वक़्त नहीं है हमारे पास देख ही रहे हो तुम
तो भी निकालेंगे मिलके अपन-तुपन.

वास्को पोपा
यूगोस्लाविया,1922
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अनुवाद: सोमदत्त

1 comment:

Reyaz-ul-haque said...

जबर्दस्त.

और कुछ नहीं भाई, बस यही...