दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Tuesday, September 11, 2007

मेरी पसंद के गीत- आठ

आज मैं इज़हार नहीं कर सकता कि पॉडकास्टिंग ने मुझे जो मौक़ा दिया है उससे मैं आप तक इस भजन को पहुंचा कर कितना खुश हूं.
जब तक मैंने एमएस की ये रचना नहीं सुनी थी तब तक मैं यही समझता था कि भक्ति की रागात्मकता घुरमा छूटने के साथ ही वहीं छूट गयी है. 1991 में अपने मद्रास प्रवास के दौरान भाई आर विद्यासागर के सानिध्य में थोड़ा सा कर्नाटक म्यूज़िक मेरे हिस्से में भी आया यानी कर्नाटक संगीत की दुनिया में मेरी खिड़की खुली.वहीं मुझे एम.एस.सुब्बुलक्ष्मी का यह भजन सुनने को मिला था और मेरे संग्रह में सहेजकर रखा हुआ है.
इस रचना के आनंद के बीच में मैं अपनी मूर्खतापूर्ण संगीत व्याख्याओ को लाकर आपकी गालियों का हिस्सेदार नहीं बनना चाहता इसलिये पेश करता हूं यह भजन.
बस इतना कहने से ख़ुद को नहीं रोक पा रहा हूं कि अगर इस क़िस्म की आराध्यरम्यता मैं स्वयं में विकसित कर पाऊं तो यक़ीन मानिये आज ही नास्तिकता की पटरी से उतर कर आस्तिकों की क़तार में खड़ा हो जाऊं. दिल पर हाथ रखकर कहिये कि माता के जागरणों-जगरातों में जो संगीत होता है, हमारे मंदिरों में कीर्तनों का जो रूप 'अब' जड़ें जमा चुका है और जिस ओउम भूर्भुव: स्व: की "महान" प्रातः श्रवणीय संगीत प्रस्तुति से पूरा हिंदी समाज अपना सीना फुलाए घूमता है, उसे इस रचना को सुनकर शर्मिंदा नहीं होना चाहिये?

3 comments:

Anonymous said...

आपसे सौ प्रतिशत सहमत हूं .

सच्ची और सरस भक्ति में डूबी इस स्वर-लहरी को -- इस पुकार को -- सुन कर कौन आस्तिक नहीं होना चाहेगा . संगीत ईश्वर का दूसरा नाम है . तभी तो उस्ताद बड़े गुलाम अली खां साहब भावविह्वल होकर 'हरि ओम तत्सत' गाते हैं और पुष्टिमार्गी हवेली संगीत के दिग्गज पंडित जसराज 'अल्लाह मेहरबान' गाते हुए रस में डूब-डूब जाते हैं .

इन्हें भी ज़रूर सुनिएगा .

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Swar Lahree mano Bhut bade samundae ke paar tak
le chaltee hai
ya fir,
dheere dheere , per ek ek pag , samhal ker rakhte hue, hume Mount Everset ki choti tak , sub se oopar
tak le ker chalti hai aisa Bhajan hai MS jee ka gaya huaa .......
Meri Aastikta ko aur juada majboot ker gaya ye Bhajan.
Sunvane ka Aabhar !

Reyazul Haque said...

आह आह. बात है.
वाह वाह.