दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, September 16, 2007

तीसरी क़सम और शंकर-शंभू क़व्वाल


मेरी बहुत इच्छा है कि मैं शंकर-शंभू क़व्वाल भाइयों के बारे मे वो सब जानूं जो मिसाल की तौर पर अभिषेक बच्चन या जॉर्ज बुश के बारे मे जानता हूं.इमरान हाशमी कौनसा कुत्ता पालता है,मल्लिका शेहरावत किस ब्रांड के अंडरगार्मेंट्स पहनती है या हिमेश रेशमिया कौन सा साबुन लगाता है...


शंकर-शंभू क़व्वाल भाइयों के बारे में और अधिक जानने का हमारे पास क्या ज़रिया है?
इनके अलावा जिन नामों का ज़िक्र ऊपर किया गया है और जिन क़ाबिल-ए-ज़िक्र लोगों की तमाम हगी-मुती बातें हमें बताई जाती हैं,(उनकी तुलना में)बताने वालो के एजेंडे में शंकर-शंभू कभी शामिल नहीं होंगे.
उम्मीद है कि ऐन इसी वक़्त जब ये लाइनें लिखने के लिये मैं कीबोर्ड खटका रहा हूं उसी वक़्त कोई पीटर मैक्लुहान या कोई सिंडी जॉर्ज अपनी चप्पलें चटकाते हुए भारत की गलियों और लायब्रेरियों की ख़ाक छान रहे हों.
इसमें कोई हैरत नहीं होनी चाहिये कि इस जिस 'छोटी'सी बात के लिये मैं सिर धुन रहा हूं वो छोटीसी बात अमेरिकन और ब्रिटिश डैटासेंटरों मे आसानी से उपलब्ध हो. खैर...

शैलेंन्द्र की फ़िल्म तीसरी क़सम को कल जब मैंने FM पर पेश किया तो एक बार फिर उस गाने गाने को देख सुनकर मज़ा आ गया, जिसकी कल्पना और प्रस्तुति के पीछे शंकर-शंभू की मौजूदगी बरामद होती है.
आप जानते हैं कि शैलेंद्र ने इस फ़िल्म को किस फ़्रेमवर्क में कंसीव किया था. जब कहानी के अलावा संवाद भी खुद रेणुजी ही लिख रहे थे और भरसक कोशिश कर रहे थे कि अपने अनुभवों को फ़िल्मी परदे पर थोड़ी प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत किया जाए तब जनाब राजकपूर उस पूरे डिक्शन और सेंसिबिलिटी का माठा करने में लगे हुए थे. बासु भट्टाचार्य बेचारे क्या करते एक ग्लॉस पैदा करने का दबाव तो उनपर व्यावसायिक ज़रूरतें भी बनाए हुए थीं. सुब्रतो मित्रा ज़रूर उस आउटडोर टेरेन में पसीना पोछते हुए हमारे आंसुओं को पोछने में लगे हुए थे और उन्होंने अपने स्टैंडर्ड का काम कर दिखाया. शंकर-जयकिशन ने बहुत ही मनोयोग से संगीत बनाया और उससे किसी को शिकायत नहीं है.कहते हैं कि उस इलाक़े के एथ्निक म्यूज़िक से बहुत वाक़िफ़ न होने के बावजूद उन्होंने परसनल इंटरेस्ट लेकर ज़रूरी रिसर्च की, और एक ऑर्गेनिक संगीत रचने में(बाद में मशहूर हुए संगीतकार) दत्ताराम और मशहूर गोआनी अरेंजर सेबास्टियन ने एड़ी-चोटी एक कर दी. ध्यान रहे कि ये दोनों शंकर-जयकिशन को असिस्ट कर रहे थे.
गुरु लच्छू महाराज ने एक नौटंकी के लिये अपनी कोरियोग्राफ़िक एक्सपर्टीज़ ऑफ़र करते हुए यह सिद्ध कर दिया कि क्लासिकल डांस उन्हें जीवन से ही मिला था.
फ़िल्म मे नौटंकी के सुपरवाइज़िंग डायरेक्टर शंकर-शंभू थे और जिस तरह की जीवंत स्थितियां उन्होंने अपनी सूझबूझ से पैदा की हैं वो हमेशा कन्विंसिग लगती हैं. उन्होंने लैला-मजनू उर्फ़ मकतब की मोहब्बत ड्रामे का एक टुकड़ा भी इस फ़िल्म में रीक्रियेट किया है जिसे फ़िल्म इतिहास में एक ख़ास जगह मिलनी चाहिये और थीमैटिक फ़िल्मों में आइटम कैसे डालें के पाठ्यक्रम नें इसे शामिल किया जाना चाहिये. हालांकि यह देखने से ताल्लुक़ रखता है लेकिन सुनिये








चलते-चलते: फ़िल्म में सिचुएशन ये है कि एक चंडूख़ाने में कुछ लोग गप्पें मार रहे हैं जिसमें फ़िल्मी दुनिया और नाच-नौटंकी को लेकर कुछ कुतूहल का माहौल है. इसी चंडूख़ाने में इस बातचीत का क्रमभंग करते हुए हीरामन एक लोटा चाय लेने पहुंचता है. रेणुजी ने जिस भाषा को तीसरी क़सम में चलाना चाहा होगा उसका एक नमूना सुनिये.






5 comments:

अनामदास said...

इरफ़ान भाई
बहुत दिनों पहले यूनुस मियाँ को भी लिखा था कि कुछ शंकर-शंभू का अपलोड करिए लेकिन उन्होंने हमारी फ़रमाइश को अनसुना कर दिया, धन्यवाद आपने कुछ तो सुनवाया. यूनुस भाई अगर सुन रहे हैं तो अभी भी देर नहीं हुई है, आपके पास जो भी हो फौरन निकालिए.

Yunus Khan said...

वाह इरफान भाई । आज तो आपको जादू की झप्‍पी देने का मन कर रहा है ।
बहुत सही । कमाल है । दिल गदगद हो गया ।
अनामदास जी मैं शंकर शंभू की आवाज़ में कुछ रचनाएं जल्‍दी ही पेश करता हूं ।
मुंबईया भाषा में कहूं तो तलाश जारी आहे ।
कुछ ना कुछ जरूर मिलेगा ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

इरफ़ान भाई
गज़ब के अनमोल रत्न ..
खोज कर लाते हैँ आप भी !
ढेरोँ शुक्रिया
-- लावण्या

सतीश पंचम said...

pickle player is not working, kindly let me know what other kinds of settings require to listen through pickle player.
तिसरी कसम मैने कई बार देखी है, फिल्म क्या है बस ऐक चलती हुई कविता है, ऐक ऐक सीन लगता है मेहनत से बनाया गया है, ऐक सीन में जब हीरामन सवारी से डरकर कि जाने वो भूत तो नहीं है..बैलगाडी से उतरकर मंदिर की तरफ बढता है तो बैल गोबर कर देता है, उस डर और गोबर करने के सीन को कितनी मेहनत से समायोजित किया गया होगा, समझा जा सकता है...बहरहाल रेणू के बारे मे अच्छी जानकारी दी। जब फिल्म देख रहा था तो शक ही नहीं यकीन भी हो गया था कि चाय की दुकान पर बैठा ये शख्स रेणू ही हैं।

TERE BAGHAIR ZINDAGI DARD BAN KE REH GAYEE said...

namaskar aapke subject ki tareef kya karoon. Lekin aap se shikayat hai ki aapne Teesri Kasam ke baare mein utsukta to jagayee lekin aadha-adhoora chhod chale.Main shankar jaikishan shailendra hasrat ki chaukadi ka prashansak hoon. Maine shankar jaikishan par ek blog diya hai aur kuch wapsites bhi chalayen hain. Kya aap http://shanker-jaikishen.blogspot.com EVAM http://shankarjaikishan.peperonity.com ko visit kar apni amoolya raai dene ka kasht karenge.

Dhanyawaad
aapka
sudarshan pandey