ये गीत है पाकिस्तान की फ़िल्म दुल्हन(1963) का. फ़िल्म में नय्यर सुल्ताना, दर्पण और रानी वग़ैरह हैं. गीत मालूम नहीं किसने लिखा है, संगीत रशीद अत्रे का है.
रशीद अत्रे
ये सब बातें न जाने क्यों मैं लिख गया. मुद्दे की बात ये है कि ये गाना मैंने 1984 में इलाहाबाद के कटरा मार्केट में जब पहली बार सुना तो न तो मुझे ये मालूम था कि ये फ़िल्मी गीत है और फ़िल्म पाकिस्तान की है. और न ही ये मालूम था कि ये आवाज़ नूरजहां की है. फिर इन सब बातों की ज़रूरत भी क्या थी!
मैं किसी दुकान के inaugural function में गया था और वहीं ये गाना बज रहा था. मैं तीन महीनों तक दुकानवाले के चक्कर काटता रहा था और आख़िरकार ये गाना मुझे मिल गया था. तब से इसे संजो कर रखे हुए हूं और आपके सामने पेश करता हूं.
3 comments:
इरफान भाई आजकल छाये हुए हैं आप । ये गीत पहले कभी नहीं सुना था मैंने ।
इत्तेफाक रहा होगा । बहरहाल मज़ा आया ।
इरर्फान भाई,
आदाब ...आप ने एक से एक बढिया गाने सुनवायेँ हैँ ..बहोत बहोत शुक्रिया ..
ऊँचे लोग फिल्म का गाना रफी सा'ब की आवाज़ मेँ जो है वो, मेरा भी फेवरीट है ..
-- लावण्या
प्रिय लावण्यम अंतर्मन,
आप पं नरेंद्र शर्मा की सुपुत्री हैं आपको प्रणाम.
इसी तरह अपने पिता और उनके सहकर्मियों और उनके समय की धड़कनों को यहां लाती रहिये. "मेरी पसंद" अभी जारी है. कई और unpredictable गानों के लिये तैयार रहिये.
धन्यवाद.
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