दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Saturday, August 25, 2007

तिलस्म और मालगाड़ी


दिनेश कुमार शुक्ल कवि हैं और प्रशासक भी. उनकी कविताएं अपनी अनोखी छंद योजना और ध्वन्यात्मक प्रभाव के साथ गहरे भाव सृजित करती है. पांच साल पहले उनके घर पर ही उनकी सुधरती स्वास्थ्य स्थितियों के बीच मैने भाई केके पांडेय के साथ स्वयं उनके स्वर में कई कविताएं सुनीं. आप भी इस संग्रह से सुनिये यह कविता.

6 comments:

Anonymous said...

धन्यवाद ,इरफ़ान भाई।क्या आप 'जनमत' में प्रकाशित राजेन्द्र राजन की कविताएं मुझे भेज सकते हैं? केके भाई को एक बार फोन पर कहा था,कई माह पहले।

Unknown said...

इतनी अच्छी कविता दिनेशजी के आवाज़ में सुनाने का शुक्रिया।

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत अच्छा लगा मालगाड़ी का तिलस्म. यह तिलस्म हमारी जिन्दगी का हवा-पानी-भोजन है. उठना बैठना है. सो पसन्द आना लाजमी है.
दिनेश जी की आवाज में कविता पाठ अच्छा था - याद रहेगा.
आपका ब्लॉग पहली बार देखा और पहली बार में ही जम गया.

Gyan Dutt Pandey said...

अरे नहीं. देवकीनन्दन पाण्डे वाली पोस्ट पर पहले आ चुका हूं!

Anonymous said...

Yes I have heard many times about Dinesh Shukla's poetry but got first chance to listen it.Thanx.Its superb.

Anonymous said...

ट्रेन को लेकर कई कविताएं और गीत लिखे गये हैं. अगर कुछ ऐसी कविताओं की सूची बनाई जाए जिनमें मानव की भावनाएं अपनी सघनता में आई हैं तो यह कविता उनमे ऊपर रहेगी.बधाई पहुंचाइये.
सुनील भारती