विनोद कुमार शुक्ल की किताब सब कुछ होना बचा रहेगा की पहली कविता है- जो मेरे घर कभी नहीं आयेंगे
आवाज़ है यारों के यार अतुल आर्य की, आपके लिये यह कोई नयी आवाज़ नहीं है. मेरे एक मित्र इसे सुनकर निराश हुए क्योंकि उन्हें शायद लगता था कि लगभग जय हिंद से जो कवि अशोक वाजपेई द्वारा launch किया गया, वो प्रतिबद्ध और ग़रीब परवर कैसे हो सकता है. उफ़्फ़ यहां भी दबे-कुचलों की बातें?
2 comments:
Anonymous
said...
भई वाह. मज़ा आ गया. विनोद जी की कविता सुन कर. नरेश जी ने भी खूब कही. आलोक धन्वा की कविता और.... कुल मिला कर ये कि बहुत सार्थक काम कर रहे हैं आप. आलोक पुतुल alokputul@gmail.com
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भई वाह. मज़ा आ गया. विनोद जी की कविता सुन कर. नरेश जी ने भी खूब कही. आलोक धन्वा की कविता और.... कुल मिला कर ये कि बहुत सार्थक काम कर रहे हैं आप.
आलोक पुतुल alokputul@gmail.com
बहुत गहरी आवाज और उतने ही गहरे भाव. आनन्द आ गया विनोद जी की कविता सुनकर. आपका आभार इस प्रस्तुति के लिये.
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