टूटी हुई बिखरी हुई
क्योंकि वो बिखरकर भी बिखरता ही नहीं
दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।
Tuesday, August 21, 2007
मुलाहिज़ा फ़रमाइये...ये एक शेर है
अगर आप रामलीला मंडलियों और थियेटर कंपनियों का एक रंगीन दौर देख चुके हैं तो आपकी यादें ताज़ा कराता ये शेर आपको ज़रूर पसंद आएगा.
रेडियो सिटी
से साभार.
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