जब हम कविताओं के पोस्टर बनाते थे तो जो चुनी हुई कुछ कविताएं उनमें ज़रूर रहती थीं उनमें से एक यह कविता भी होती थी.चंद्रकांत देवताले ने जो कविताएं मुझे अपनी बेटी अनुप्रिया के दिल्ली स्थित घर में सुनाईं थी, उनमें यह प्रासंगिक कविता भी थी.आज़ादी की इकसठवीं सालगिरह मनाते हुए आइये सुनें विकास और चमक की बड़बड़ाहट के पीछे की यह दर्दनाक दास्तान क्योंकि कुछ काम अब भी अधूरे पड़े हैं.
चंद्रकांत देवताले की आवाज़ में उनकी बहुचर्चित कविता थोड़े से बच्चे और बाक़ी बच्चे 2002
2 comments:
अद्भुत आत्मीय आवाज दादा जी यानी देवताले जी की। इरफान भाई इसके लिए आभार।
शिरीष
अद्भुत आत्मीय आवाज दादा जी यानी देवताले जी की। इरफान भाई इसके लिए आभार।
शिरीष
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