दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Monday, August 27, 2007

सूरिनाम में चटनी


क्रिस रामखेलावन का नाम आपने ज़रूर सुना होगा. पांच-छः साल पहले वो दिल्ली में अपना ग्रुप "चटनी" लेकर आए थे और एक जीवंत शाम में हम सब को अपनी गायकी से रूबरू कराया था. मैं उस अनुभव की कुछ बानगी जनसत्ता के रविवारी में तब लिख चुका हूं. मेरा मानना है कि क्रिस रामखेलावन ने उत्तर भारतीय पारंपरिक लोक गायकी को जिस तरह ज़िंदा रखा है उसकी मिसाल ढूंढना मुश्किल है. भारत में सक्रिय लोक गायन संग्राहकों को उनसे सीखना चाहिये. मैंने उनके परफ़ॊर्मेंस के बाद उनसे बातचीत की, पेश है उस बातचीत का एक अंश. अगर आपको यह बातचीत कुछ दिलचस्प लगी और आपकी इच्छा क्रिस का गायन सुनने की हुई तो अपने लिये आदेश चाहूंगा.







4 comments:

VIMAL VERMA said...

अच्छा है,कुछ और चटनी मिलेगा क्या?

बसंत आर्य said...

एक आयोजन मुम्बई में भी हो जाये जनाब का तो मजा आ जाये

Udan Tashtari said...

तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.

-बसंत भाई की बत पर ध्यान देते दिसम्बर में रखिये हम प्रयास करेंगे पहुंचने का. :)

Anonymous said...

Vishnu Rajgadia has sent

इरफान भाइ० बहुत नेक काम कीया आपने यह मन्च बनाकर०० कोशीश करुन्गा कि हिन्दि मे जबाब दु० तूति हुउइइ बिइख्हरि हुइइ भाशा हि क्यो न सहि