दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Saturday, August 18, 2007

ब्रूनो की बेटियां: आलोकधन्वा


आज मुझे लगेगा कि ब्लॊगिंग में समय बरबाद करना सार्थक हुआ अगर यह लंबी कविता आप तक पहुंचेगी. 1991 में पटना के एक कवि सम्मेलन में मैंने कवि आलोकधन्वा को रिकॊर्ड किया था. उन्हें कविता पढ़्ते हुए सुनना एक अनुभव है. थोड़ा धैर्य रखिये और इस खराब ऒडियो प्रस्तुति से दिल लगाइये. नतीजा अच्छा निकलेगा. मैंने कोशिश की है कि क्वालिटी जितनी सुधर सके उतनी सुधार दी जाये. ब्रूनो की बेटियां एक दो तीन आखिरी Copyright@tooteehueebikhreehuee.blogspot.com

4 comments:

Reyaz-ul-haque said...

कमाल है भाई. आपने एक जबरदस्त चीज दी है. आलोक जी को सुनना अपने आप में एक बडी़ उपलब्धि है.

हो सके तो कुछ और कविताएं उनकी, उन्हीं की आवाज़ में दीजिए.

इधर पटना में इस कविता की एक समीक्षा छपी है- असहमति की गुंजाइश उसमें काफ़ी है पर है पढने लायक. आप तक पहुंची?

Udan Tashtari said...

गजब अनुभव रहा आलोक जी को सुनना. कैसे आभार व्यक्त करुँ. बहुत आभार कह देता हूँ बस.

अभय तिवारी said...

शानदार.. सुनकर कविता की भावनात्मक ऊँचाई बढ़ जाती है.. बहुत शुक्रिया..

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया!!