दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, August 19, 2007

सुनिये विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता


विनोद कुमार शुक्ल की किताब सब कुछ होना बचा रहेगा की पहली कविता है-
जो मेरे घर कभी नहीं आयेंगे








आवाज़ है यारों के यार अतुल आर्य की, आपके लिये यह कोई नयी आवाज़ नहीं है.
मेरे एक मित्र इसे सुनकर निराश हुए क्योंकि उन्हें शायद लगता था कि लगभग जय हिंद से जो कवि अशोक वाजपेई द्वारा launch किया गया, वो प्रतिबद्ध और ग़रीब परवर कैसे हो सकता है. उफ़्फ़ यहां भी दबे-कुचलों की बातें?

2 comments:

Anonymous said...

भई वाह. मज़ा आ गया. विनोद जी की कविता सुन कर. नरेश जी ने भी खूब कही. आलोक धन्वा की कविता और.... कुल मिला कर ये कि बहुत सार्थक काम कर रहे हैं आप.
आलोक पुतुल alokputul@gmail.com

Udan Tashtari said...

बहुत गहरी आवाज और उतने ही गहरे भाव. आनन्द आ गया विनोद जी की कविता सुनकर. आपका आभार इस प्रस्तुति के लिये.