दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Friday, August 31, 2007

पाकिस्तानी ब्लॉगरों से बातचीत


वॉयस ऑफ़ अमेरिका ने पिछले दिनों दुनिया भर में सक्रिय कुछ पाकिस्तानी ब्लॉगरों से बातचीत की.
यहां सुनिये.



यहां मौजूद फ़ोटो महज़ सजावटी है.

Thursday, August 30, 2007

आर.चेतनक्रांति की एक कविता


सुनिये युवा कवि आर.चेतनक्रांति की एक कविता. हालांकि यह उनकी प्रतिनिधि कविता नहीं है लेकिन चूंकि स्वयं उनके ही स्वर में है इसलिये जारी करता हूं.




राजकमल के कर्मचारी, मालिक मकान के बच्चे और समय










यादों के झरोखे से


वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह को सुनिये कुछ गुज़री बातें याद करते हुए.

बातचीत का एक अंश






Wednesday, August 29, 2007

उदय प्रकाश की कविताएं: आख़िरी क़िस्त


एक लेखक दरबदर

मरना










वसंत









व्यवस्था









कुतुबमीनार की ऊंचाई









करीमन और अशरफ़ी









चंकी पांडे मुकर गया है









एक भाषा हुआ करती थी






उदय प्रकाश की कुछ और कविताएं



कल के वादे के मुताबिक़ पेश है उदय प्रकाश की कुछ और कविताए.


अनुकपुर जंक्शन









दिसंबर









खेल









किसका शव









कुछ बन जाते हैं









महापुरुष









पिंजड़ा









रात









तीली









तिब्बत के लामा






Monday, August 27, 2007

सुनिये उदय प्रकाश की कविताएं





उदय प्रकाश 1952 में मध्य प्रदेश के शहडोल ज़िले के सीतापुर गांव में पैदा हुए. वे सायंस ग्रेजुएट हैं और हिंदी साहित्य में पीजी. उन्हें अध्यापन, प्रशासन, पत्रकारिता और जनसंचार माध्यमों में काम करने का लंबा अनुभव है. आजकल वे फ़िल्म निर्माण में व्यस्त हैं.
कविताओं और कहानियो की दुनियां में उन्हें समान प्रतिष्ठा हासिल है.
सुनो कारीगर, अबूतर कबूतर, रात में हारमोनियम आदि उनके काव्य संग्रह हैं और दरियाई घोड़ा, तिरिछ, और अंत में प्रार्थना, पॊल गोमरा का स्कूटर, पीली छतरीवाली लड़की आदि उनके कहानी संग्रह हैं. कविता और कहानी से अलग भी उनकी कई किताबें है. भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर विश्व के अन्य हिस्सों में भी उनकी रचनाएं अनूदित होकर पहुच रही हैं और सराही जा रही हैं.वे अनेक महत्वपूर्ण सम्मानों से भी नवाज़े जा चुके हैं
मुझे उनकी दो कहानियां बहुत पसंद हैं. एक है- तिरिछ और दूसरी है छप्पन तोले का करधन.

पिछले साल की गर्मियों में उदयजी अपने घर पर ही मुझे अपनी बहुत सी कविताएं सुनाने को खुशी-ख़ुशी राज़ी हो गये. आप भी सुनिये.





औरतें








गांधीजी









बिरजित ख़ान









दीदी









दो हाथियों की लड़ाई









दुआ









घर









हम हैं ताना हम हैं बाना









इमारत









जहांपनाह








नोट: अभी कुछ और कविताएं पोस्ट कर ही रहा था कि लाइट चली गई. खेद है.

सूरिनाम में चटनी


क्रिस रामखेलावन का नाम आपने ज़रूर सुना होगा. पांच-छः साल पहले वो दिल्ली में अपना ग्रुप "चटनी" लेकर आए थे और एक जीवंत शाम में हम सब को अपनी गायकी से रूबरू कराया था. मैं उस अनुभव की कुछ बानगी जनसत्ता के रविवारी में तब लिख चुका हूं. मेरा मानना है कि क्रिस रामखेलावन ने उत्तर भारतीय पारंपरिक लोक गायकी को जिस तरह ज़िंदा रखा है उसकी मिसाल ढूंढना मुश्किल है. भारत में सक्रिय लोक गायन संग्राहकों को उनसे सीखना चाहिये. मैंने उनके परफ़ॊर्मेंस के बाद उनसे बातचीत की, पेश है उस बातचीत का एक अंश. अगर आपको यह बातचीत कुछ दिलचस्प लगी और आपकी इच्छा क्रिस का गायन सुनने की हुई तो अपने लिये आदेश चाहूंगा.







Saturday, August 25, 2007

तिलस्म और मालगाड़ी


दिनेश कुमार शुक्ल कवि हैं और प्रशासक भी. उनकी कविताएं अपनी अनोखी छंद योजना और ध्वन्यात्मक प्रभाव के साथ गहरे भाव सृजित करती है. पांच साल पहले उनके घर पर ही उनकी सुधरती स्वास्थ्य स्थितियों के बीच मैने भाई केके पांडेय के साथ स्वयं उनके स्वर में कई कविताएं सुनीं. आप भी इस संग्रह से सुनिये यह कविता.

Friday, August 24, 2007

आशा का गीत : गोरख पाण्डेय की रचना, उनके ही स्वर में

गोरख पांडेय की यह रचना उनके ही स्वर मेँ सुनी जा सकती है - ऑडियो सीडी 'आएंगे अच्छे दिन' मेँ . सुनिये गोरखजी की एक और कविता. यह भी मार्च 2007 में 'आएंगे अच्छे दिन' नाम की ऒडियो बुक में उनकी 16 कविताओं के साथ सुनी जा सकती है. प्राप्त करने के लिये लिखें- gorakhpurfilmfestival@gmail.com पर या फ़ोन करें संजय जोशी को, 09811577426 सोचो तो स्वर इरफ़ान

सुनिये- मेरी कमी होगी...



आज यूंही ब्लॊगलियों में आवारा भटक रहा था। अचानक नज़र पड़ी मेरी कमी होगी... याद आया कि ये गीत तो मेरे पिछले कई शोज़ ्का पसंदीदा गीत है। तो पेश है ये गीत भाई नीरज और आप सभी प्रेमी श्रोताओं को सप्रेम।







Wednesday, August 22, 2007

प्रेजेंटर जी को मेरा प्यार भरा नमश्कार



ये बात पिछले कई बरसों से कही जा रही है कि रेडियो अब एक नयी चमक के साथ वापस आ रहा है. एफ़एम रेडियो के आने के बाद ही इस बात को आधार मिला है जो लगातार पुष्ट हो रही है. इस नई रेडियो प्रोग्रामि‍ग का बुनियादी संकल्प है-रेडियो को इंटरेक्टिव बनाना. कुछ लोग इसकी विशेषता यह भी बताते हैं कि युवा पीढ़ी को संबोधित है. बहरहाल इस नये रेडियो कल्चर और उसकी दशा-दिशा की पड़ताल होती रहेगी, हम तो यहां इस फ़ेनोमेनल बिज़नेस के उस पहलू पर आपकी तवज्जो चाहते हैं जो शायद आपकी नज़रों से ओझल है.
हाल ही में आये प्रायवेट एफ़एम चैनेल्स तो अपने श्रोताओं से फ़ोन, एसएमएम और ई-मेल के ज़रिये ही संपर्क करने को कहते हैं जबकि ऒल इंडिया रेडियो के एफ़एम चैनल्स पर आनेवाले पत्रों की संख्या और विविधता हमें असली हिंदुस्तान में होने का एह्सास दिलाती रहती है. हम अपने प्रोग्राम्स में आमतौर पर कुछ रस्मी चिट्ठिया तो शामिल कर लेते हैं लेकिन इन चिट्ठियों का क्या करें?
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श्री शंकर भगवान जी,
आपका गाना बहूंत अच्छा लगता है. आपके एफम पर हमको गाना बहूंत अच्छा लगता है. हम को गाना को फरमाईस है. एक गाना सपेरा का
एक गाना सावन का
एक गाना झूट बोले कौआ काटे
एक गाना जब मैं होती राजा बरबरसके मकती राजा तेरे बंगले पर जब होती राजा बन के कोयलिया कू कू करती राजा तेरे बंगले पर...
एक गाना और है
आंखों मे काजल डाले हो गई मैं कूरबान.
आपके पास ५ गाना का फरमाईस आपस आना चाहिये.

सरीर मे अलरजी सफेद दाग हो गया है. आप कूछ दावा बता सकते हो हम अब हसपिटल मे देखा रहा है. अभी ठीक नहीं हूआ है. हम दावा खात खात तंग हो गया है.आप कूछ बताएगा आपका मेहर बानी होगी आपका मेहर बानी होगी

मोतीलाल पासवान जी, सागरपूर
दील्ली से
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Dear FM presenter,

Letter पढ़ने वाले ज़ुल्फ़ हटाकर पढ़ना
आपको हमारी कसम, मुस्करा कर पढ़ना

Letter लिखने वालों का नाम है--सोनू, Sikha. हमें आपका प्रोग्राम बेहद पसंद है. हम आपका चैनल 1 Sep सुन रहे हैं.
हमें आपके सभी presenters की आवाज़ व उनके बोलने का तरीका बहुत पसंद है. यह हमारा पहला letter है. आशा है आप इसे ज़रूर शामिल करेंगे. हम इस प्रोग्राम के माध्यम से अपनी प्यारी भाभी (रचना) जिनकी शादी हमारे भाइया(सुनील)से 30 नवंबर को होने जा रही है. हम उन्हें ढेरों बधाइयां देना चाहते हैं.
हम अपनी Ritu दीदी को भी बधाइयां देना चाहते हैं जिन्होंने अभी हाल ही में हमें एक सुंदर भांजा दिया है जिसका नाम राहुल रखा गया है.
हम अपनी भाभी के लिये अभिमान फ़िल्म का गाना तेरी बिंदिया रे... सुनना चाहते है. Please song अवश्य दें.
Thank you
from
100नू , Sikha
बहादुरगढ़, हरियाणा
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ऊं नमः शिवाय
महोदयजी मधुर मिलन मधुर यादें व मुस्कुराहटें,
आपके पूरे स्टाफ को धन्यवाद.प्रस्तुती आप सब का सराहनीये तारीफ के आप सब पात्र हैं. मैं एक आधी उमर की महिला हूं. उमर 48 साल. ज्यादा कुछ ढंग से पत्र लिख ना पाई तो क्षमा करना. पहले पत्र विविध भारती को लिखती थी जवाब नहीं मिलती इसीलिये अब नहीं लिखती. परंतु जिंदगी मेरी अब वीराना-तन्हा मायूसी-उदास होने के कारण तकदीर एफएम को पत्र लिखकर आजमाना चाहती हूं. देखे शायद जवाब मिले. आपके गीतों को सुनके एक सुच्चा-सच्चा मित्र का एहसास होता है. मेरे विराने को आराम देने वालो आप जियो बहुत जियो और दिन हों पचास हजार. आप लोग अंग्रेजी बोलते हो. अंग्रेजी बोलो सीखो परंतु घर में इस्तेमाल न करो. आप का चैनल हम जैसे मीडियम मिड्ल पब्लिक के लिये रहे तो सभी को जीने का एक रास्ता मिलेगा. आपको चाहिये कि नन्हे बच्चों को नसीहतें जैसे कि बड़ों का आदर करो घर कोई आये तो यदि मां बाप घर में नही है तो संदेशा ले और गुरु की आदर आदी. हमारा पुराना संस्कृत और बड़ों का मान रास्ता भटकों को राह दिखाना अतिथि आदि जैसे कि एकलव्य, महात्मा बुद्ध गांधीजी का बचपन, झांसी की रानी का बचपन, दुर्गावती, पद्मिनी, पन्ना दाई, विद्यासागर, टैगोर जैसे जीवनी बच्चों को कहानियों के साथ साथ भक्ती गीत बचपन की शरारतें प्यारे-प्यारे और लोरी भी प्रोग्राम दो. रफीजी, किशोर जी, मुकेश जी, मन्ना डे, लताजी, आशाजी, तलत जी और हेमंत जी यानी १९५२ से १९८० तक के बहारे यानी दर्द खुशियां भी, पर आजकल के हथौड़े मार पैर हाथ काट के झटके नहीं नहीं कहीं तो हमें आराम से रहने दो.
ये पत्र मैं १.३० बजे रात्री को लिखना शुरू की थी तकदीर आजमाने को लिखरही हूं पता नहीं जवाब मिले कि नहीं.
खामोश शमा जलती है, पिघलती है
जो दर्द सीने मेम छुपाए है, कितने सितम छुपाए हैं.

बैठे हैं रहगुजर पे दिल का दिया जलाये
शायद वो दर्द जानें शायद वो लौट आएं

आशा शर्मा
दक्षिणपुरी, दिल्ली
१५-१०-२००१
------------------------------------------------------------------------------------ From Ghanshyam S.Kwatra
09-08-2000
Madam Zoony,
What a presentation and what a हंसी & what not. Just now I paased one hour so happily listening to 7-8 pm wed.
I am a frustrated old man- 66 1/2 years. I am very fond of Songs.Lost my wife May 98 of cancer.Elder son with his wife in USA. Younger son Mandeep 28- a patient of Schizophrenia, a deadly mental illness (partially curable)is admitted in a hospital in Madras since 1st June. I am all alone-Retd from a Pvt Co. and passing my time SOMEHOW listening to FM as long as 1AM.
Your presentation won my heart. Blessed are those parents who gave birth to such a child. Could you include songs of Talat, Mukesh, K.L.Segal, Geeta Dutt, Noorjahan, Shamashad Begum etc?
Thanks
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Dear Qutubminar(Rony),
रो-रो कर पूछा पांव के छालों ने, कितनी दूर
बस्ती बना ली,दिल में कभी बसने वालों ने
Happy New Year 2001
I would like to platonic friendship only please accept me.
Yours
Ajay Kumar

गीत- तुम दिल की धड़कन हो...
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बचपन से अब तक मैंने बहुत दुख सहे. वो दुख कम नहीं था जब पिताजी ने मदरसे में भेजकर मेरे दो साल बरबाद करवा दिये.दो साल बाद जब मैं दोबारा अपने उसी स्कूल मे पढ़ने गया तो ईश्वर से पूछो मेरे दिल का क्या हाल था. मैं जिन छात्रों के साथ पढ़ रहा था, जो मेरे दोस्त थे, वो मुझसे दो साल आगे निकल गये थे, ये दुख भी कम नहीं था. और वो दुख भी कम नहीं था जब मेरा पैर टूट गया था, मेरे पैर के तीन ऒपरेशन्स हुए थे.जब मैं लगभग एक साल तक घर में एक ही जगह पर लेटा रहता था क्यों कि पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था, चल नहीं सकता था.बिस्तर पर बैठकर ही शौच करता था. वो मेरा बचपन था.
कोई मेरा दुश्मन बन गया मुझे दुख नहीं हुआ. किसी दुश्मन से लड़ाई हुई दुख नहीं हुआ. किसी ने धोखा दिया दुख नहीं हुआ. लेकिन जितना दुख मुझे गुंजन दीदी ने दिया है, पिछले तीन सालों में-मैं वह नहीं झेल पाया.ये दुख तो मैने अपने जीवन में कभी महसूस ही नहीं किया. हे ईश्वर! इतने दुख इतने ग़म जो गुंजन दीदी ने मुझे दिये, वो तो मैं झेल ही नहीं पाया. इन दुखों ने तो जीने भी नहीं, मरने भी नहीं दिया. हे ईश्वर अगर तू मुझे ऐसे दुख देता है, तो इन्हें सहन करने की शक्ति भी मुझे दे.
"हमसे मत पूछो कैसे मंदिर टूटा सपनों का
लोगों की बात नहीं है ये क़िस्सा है अपनों का
कोई दुश्मन ठेस लगाए तो मीत जिया बहलाए
मनमीत जो घाव लगाये उन्हें कौन मिटाए??

इमरान
03-12-02
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दो-तीन दिन पहले रिहान ने घर में मांस के कोफ़्ते बनवाए. मैं मांस नहीं खाता हू, तो मैने अपनी मां से कहा कि "मेरे लिये चावल बना देना." चावल बन गये तो शाम को नाज़रीन ने भाई से मेरी चुग़ली करी-"ये(मैं)हमें रोज़े में परेशान कर रहा है.जो चीज़ घर में बनती है उसे नहीं खाता है और अपने लिये दूसरी चीज़ बनवाता है." ये सारा ड्रामा रिहान करवा रहा था. मैने ग़ुस्से में कहा कि "अगर ये चावल मैंने बनवाए हैं, तो तुम मत खाना, तुम क्यों खा रहे हो?" तो नाज़रीन ने कहा "जब हमने बनाए हैं तो क्यों न खाएं?" मैने कहा "तो फिर मेरी चुग़ली क्यों कर रही हो?" इस पर उसने कहा "तू अपनी रोटी ख़ुद बनाकर खाया कर." नाज़रीन से मेरी बोलचाल बंद है क्योंकि वह 27 साल की तो हो गयी है, लेकिन मां-बाप के सामने भी छिछोरापन करती है. इसलिये मैं कुतिया से बोलता नहीं हूं.
मैं अपनी रोटी बनाकर खा सकता हूं, लेकिन सोच रहा हूं कि जब मैं शादी करूंगा, तो रोटी क्यों बनाऊं? गुंजन दीदी याद रखना अगर मैने रोटी बनानी शुरू कर दी, तो क़्सम से शादी नही करूंगा. मुझे जवाब दो, अगर चाहती हो कि मैं अपनी रोटी ख़ुद बनाकर खाऊं, तो मैं अकेला रहूंगा.
वैसे ये सारे काम नाज़रीन से र्रिहान सुअर करवा रहा है. मैं नाज़रीन से बोलचाल नहीं करूंगा. इस रंडी से कह देना कि मुझे बदतमीज़ मत बना, ग़ुस्से में मेरे मुंह से गालियां निकलने लगती हैं.

इमरान
29-11-02
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30 नवंबर को चलते-चलते प्रोग्राम रंजीव जी ने किया था. रंजीव जी मैं उस कार्यक्रम को सुनता नहीं हूं जिसमें ज़्यादा बात करी जाती है.आपने इस कार्यक्रम में दो गानों के बीच सात मिनट बात करी.ये बात अच्छी नहीं है. क्या आपने बात करने का कोर्स कर रखा है? एक घंटे के कार्यक्रम में दस गाने बजने चाहिये.और आप कृपया पाश्चात्य संगीत को बैकग्राउंड म्युज़िक न बनाएं. मुझे ये स्टाइल बहुत बुरी लगती है.
मैं आपका दोपहर वाला कार्यक्रम इसी लिये नहीं सुनता हूं क्यों कि एक तो उसमें बातें ज़्यादा होती हैं और गाने कम बजते हैं दूसरे आपके मेहमानों की बातें मुझे अच्छी नहीं लगती हैं. जीवन, प्यार और शादी- इन तीनों विषयों पर इन लोगों के विचार मेरेविचारों से बिल्कुल विपरीत होते हैं. इनकी बहुत सारी बातें बिलकुल ग़लत होती हैं, इनकी बातों से मै अपना दिमाग़ क्यों ख़राब करूं.
कुछ RJs ऐसे हैं जिन्हें अपनी प्रशंसा करवानी ही अच्छी लगती है. हम आपके कार्यक्रम सुनते हैं इससे बड़ा आपकी प्रशंसा का सुबूत क्या होगा. जो चीज़ मुझे अच्छी नही लगती है मैं उसके बारे में साफ़ लिख देता हूं, चाहे वो किसी को बुरी लगे या अच्छी. लेकिन कहता सच हूं झूट मैं नहीं बोलता हूं.

इमरान
30-11-02
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मेरे प्रिय भतीजे,
सिर्फ़ इतना ही कहूंगा कि जिसकी मुझे तलाश है वो तेरी दुनिया का बंदा नहीं है, अंधेरे में तीर चलाना तुम्हे शोभा नहीं देता है.हकीकत मैं ही बताए देता हूं भतीजे. जो निर्दोषों का क़त्ल करके भागते रहते हैं उनके चेहरे का नकाब उलटना जरूरी हो जाता है.बस इतना समझ लो मुझे न तो तुम्हारी कोई सलाह चाहिये और न ही सहयोग.
भतीजे बुरा न मानना इस मामले से तुम्हारा कोई संबंध नहीं है अतः इस मामले को हमारे ढंग से ही सुलझाने दो, तो बेहतर रहेगा. भतीजे तुम्हारी दुनिया तुम्हे मुबारक.
कोड की जानकारी बाद में दूंगा. +२३२०४४ फ़ोन.
सहयोग देने वाले को पूरा मान दिया जायेगा.
भतीजे बंदा होली, दिवाली नहीं मनाता, चचा के व्यवहार तो 365 दिन चलते हैं. कैसे. इसका जवाब ढूंढो तो जानें. चचा रात क नहीं दिन का बाद्शाह है.अच्छा भतीजे चलता हूं तेरा नज़्ररिया तुझे मुबारक.

तेरा चचा
१२-०३-२००३
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श्री गणेशाय नमः
मुझे आपके सभी कार्यक्रम बहुत ही आच्छा लगता है.
मेरा घड़ी का दुकान है जो मैं काम करते-करते सुनता हूं और जो काम नहीं होता है वो काम भी गाना सुनने के मगन में पूरा हो जाता है. इसलिये मैं कहता हूं कि संगीत में ही जादू है. सभी कार्यकर्ता को मेरा धन्यवाद.

मेसर्स अर्जुन वॊच सेंटर
कसारीडीह, दुर्ग
छत्तीसगढ़
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प्रोग्राम:गाता रहे मेरा दिल
फ़िल्म: शागिर्द
गीत: पराई हूं पराई...
स्वर: लता मंगेशकर
खोया मंडी गंजडुंडवारा से
-अब्दुल सत्तर अंसारी
-एम.कलीम ज़ख़्मी
-वी.पी.गौतम
-मुनव्वर लल्ला
-दानिश अंसारी
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प्रेज़ेंटर साहिबा नमस्कार.कैसी हैं. आप आपको सर्दी कैसी लगती है कैसा लगता है. यह मौसम, क्या करती हैं.आप,क्या पसंद करती हैं. खाने मे आप, इस ठिठुरते मौसम में आपकी प्यारी स्वीट-स्वीट सी होठो से निकलती आवाज इस कार्यकम को महका देती है इस चमन में बहार आ जाती है. एक शेर लिख रहा हूं अपनी प्यारी दोस्त खुशी के लिए,

बुलबुल की ज़िंदगी पेड़ों की डाल पर,
जिंदगी है अनमोल इसे रखना संभालकर.
कितनी हंसी है जिंदगी मगर लाखों हैं इसमे गम भी,
मौत की परवाह किये बिना जीने वाले हैं इस जहां में हम भी.

किला विजयगढ़ से,
श्याम सक्सेना
आर एम सक्सेना
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परजेंटर जी को मेरी प्यार भरी राम राम

मेरा नाम बबलू बाद्शाह है मैं गांव छतर्पुर में रहता हूं और सुपर मार्केट हीरा नगर में ड्राई क्लीनिंग की दुकान करता था. परिवारिक विवाद के कारण मैंने दुकान और घर छोड़ दिया है. और अब मैं घर से अलग रहरहा हूं.मेरी सभी दोस्तों से प्रार्थना है कि अब वो मेरे घर पर टेलीफोन न करें. मैं नहीं चाहता कि मेरे घर वालों मेरे दोस्तों का अपमान करें. मेरी आपसे प्रार्थना है कि मेरा यह संदेस मेरे दोस्तों तक जरूर पहुंचा दें
कृपया मेरा खत पूरा पढ़ें.

नया निकेतन से लिखते हैं
बबलू बाद्शाह
शिवांगी बाद्शाह
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पत्रों में मौजूद व्याकरण और वर्तनी की अशुद्धियों को जस का तस रखा गया है. जगहों और लोगों के नाम बदले गये हैं.
इरफ़ान

Tuesday, August 21, 2007

हटिये,अब हमें नहाने दीजिये

आप अगर इब्बार रब्बी को नहीं जानते तो इसमें आपका कुसूर नहीं है. एक राष्ट्रीय दैनिक से सेवानिवृत्त हुए इब्बार रब्बी कभी आलोचक को खुश रखकर कीर्ति का फल चखने (साभार नगार्जुन) के चक्कर में नहीं रहे हैं. समय और समाज की विद्रूपताओं पर उनकी पैनी नज़र रहती है और जीवन का उत्सव उनसे कभी बचकर नहीं निकलता. हमने जब कविताओं से अपने जीवन में रंग भरने शुरू किये तो उनकी कविताओं ने छूट गये रंगों की कमी पूरी की. बहुत साधारण लगनेवाली स्थितियों और चीज़ों पर लिखी उनकी असाधारण कविताएं हमें अपने काव्य संसार का सम्मान करना सिखाती हैं और एक लंबी लड़ाई के लिये हममे एक अनिवार्य stability की ज़रूरत पैदा करती है.
आइये सुनिये इब्बार रब्बी की दो कविताएं- उनकी ही आवाज़ में




आलू









मेज़ का गीत









ये कविताएं मैंने 2003 में इब्बार रब्बी के घर पर रिकॊर्ड कीं.

मुलाहिज़ा फ़रमाइये...ये एक शेर है


अगर आप रामलीला मंडलियों और थियेटर कंपनियों का एक रंगीन दौर देख चुके हैं तो आपकी यादें ताज़ा कराता ये शेर आपको ज़रूर पसंद आएगा.







रेडियो सिटी से साभार.

Monday, August 20, 2007

बच्चों के बारे में चंद्रकांत देवताले


जब हम कविताओं के पोस्टर बनाते थे तो जो चुनी हुई कुछ कविताएं उनमें ज़रूर रहती थीं उनमें से एक यह कविता भी होती थी.चंद्रकांत देवताले ने जो कविताएं मुझे अपनी बेटी अनुप्रिया के दिल्ली स्थित घर में सुनाईं थी, उनमें यह प्रासंगिक कविता भी थी.आज़ादी की इकसठवीं सालगिरह मनाते हुए आइये सुनें विकास और चमक की बड़बड़ाहट के पीछे की यह दर्दनाक दास्तान क्योंकि कुछ काम अब भी अधूरे पड़े हैं.









चंद्रकांत देवताले की आवाज़ में उनकी बहुचर्चित कविता थोड़े से बच्चे और बाक़ी बच्चे 2002

Sunday, August 19, 2007

गोभी का "फूल" है तो कोट में क्यों न लगाया?


विनोद कुमार शुक्ल जितने अनोखे रचनाकार हैं, उतने दिलचस्प उनके दोस्त हैं.
उन दिनों मैं दीवार में एक खिड़की रहती थी(जिसे कोई ले गया और फिर लौट के ना आया) दोबारा पढ़ रहा था. मुझे ताज्जुब है कि विनोदजी या कहें उनकी तरह की रचनाशीलता के एप्रेसिएशन टूल्स आसानी से क्यों उपलब्ध नहीं हैं. ख़ैर उनके पुराने दोस्त और कवि-चिंतक नरेश सक्सेना से उन्हीं दिनों मुलाक़ात हुई तो मैंने विनोदजी के बारे में पूछ ही लिया. कोई छ: साल पुरानी वो रिकॊर्डिंग आज पूरा दिन छानने के बाद हाथ आ ही गई. जल्दी से दो छोटे-छोटे हिस्से आप तक पहुंचा रहा हूं.















सुनिये विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता


विनोद कुमार शुक्ल की किताब सब कुछ होना बचा रहेगा की पहली कविता है-
जो मेरे घर कभी नहीं आयेंगे








आवाज़ है यारों के यार अतुल आर्य की, आपके लिये यह कोई नयी आवाज़ नहीं है.
मेरे एक मित्र इसे सुनकर निराश हुए क्योंकि उन्हें शायद लगता था कि लगभग जय हिंद से जो कवि अशोक वाजपेई द्वारा launch किया गया, वो प्रतिबद्ध और ग़रीब परवर कैसे हो सकता है. उफ़्फ़ यहां भी दबे-कुचलों की बातें?

अब आप देवकीनंदन पांडे से समाचार सुनिये


मैं उन सौभाग्यशालियों में हूं जिन्होंने देवकीनंदन पांडे के साथ काम किया. ये उनके जीवन के आख़िरी वर्ष थे और एक दिन स्टेट्समैन के बस स्टैंड पर मैंने उन्हें बस का इंतज़ार करते देखा. वो थोड़े असहज दिखाई दे रहे थे क्योंकि शायद जिस बस की राह वो देख रहे थे उसका नंबर पढ़्ने में उन्हें दिक़्क़त हो रही थी. आंखों के ऒपरेशन की बात वो हमें तब बता चुके थे जब हम यानी मैं, मेरे मित्र संजय जोशी और मित्राधिमित्र मेजर संजय चतुर्वेदी उनसे अपने एक कार्यक्रम में समाचार वाचन करने का आग्रह करने उनके पटपड़्गंज स्थित घर पर पहुंचे थे. वो दोपहर हम सब के लिये कभी न भूल पाने वाली अनमोल दोपहर थी. हम समाचारवाचन के पितामह के साथ बैठे थे. कहिये कोई है जो देवकीनंदन पांडे को न जानता हो? "ये आकाशवाणी है, अब आप देवकीनंदन पांडे से समाचार सुनिये" या "ये देवकीनंदन पांडे है, अब आप आकाशवाणी से समाचार सुनिये"---तीन दशकों से अधिक समय तक आकाशवाणी का पर्याय रहे देवकीनंदन पांडे जिस ज़िंदादिली का दूसरा नाम थे, उसकी गूंजें आज भी आकाशवाणी की इस ऐतिहासिक इमारत के गलियारों में मौजूद है. हम भी स्टूडियो के उन्हीं दरवाज़ों को धकेलते हुए अंदर घुसते हैं जिनके हत्थों पर से देवकीनंदन पांडे की मज़बूत हथेलियों के निशान वक़्त की सारी सितमगरी न मिटा सकी है और न मिटा सकेगी. आकाशवाणी की सामनेवाली दीवार से लगी जहां आज कारें ही कारें खड़ी होती है, मैंने आज से दस साल पहले दो बार देवकीनंदन पांडे को गुज़रते देखा है. वो शेरवानी और चौड़े पांयचे का पायजामा पहनते थे. एक क़द्दावर इंसान जिन्होंने रेडियो का क़द भी ऊंचा किया. उस दोपहर हम इतने डिलाइटेड लौटे कि हम भी कुछ है. असल में कसौटी भी यही बताई गयी है कि बड़ा आदमी वही है जिससे मिलकर आप भी बड़ा महसूस करने लगें.
सोचिये कि जिस आदमी ने इतना लंबा समय रेडियो में गुज़ारा हो उसकी आवाज़ का कोई रेफ़रेंस कहीं मौजूद नहीं है. आइये सुनिये कि समाचार पढ़्ने को एक कला और ब्रांड बनानेवाले देवकीनंदन पांडे की न्यूज़ रीडिंग कैसी थी.
इस रिकॊर्डिंग में पहुंचने के लिये उन्होंने हमसे सिर्फ़ गाड़ी मांगी थी और तयशुदा समय से बीस मिनट पहले पहुंच गये थे.



नवंबर,1998 को रिकॊर्ड किया गया.

Saturday, August 18, 2007

ब्रूनो की बेटियां: आलोकधन्वा


आज मुझे लगेगा कि ब्लॊगिंग में समय बरबाद करना सार्थक हुआ अगर यह लंबी कविता आप तक पहुंचेगी. 1991 में पटना के एक कवि सम्मेलन में मैंने कवि आलोकधन्वा को रिकॊर्ड किया था. उन्हें कविता पढ़्ते हुए सुनना एक अनुभव है. थोड़ा धैर्य रखिये और इस खराब ऒडियो प्रस्तुति से दिल लगाइये. नतीजा अच्छा निकलेगा. मैंने कोशिश की है कि क्वालिटी जितनी सुधर सके उतनी सुधार दी जाये. ब्रूनो की बेटियां एक दो तीन आखिरी Copyright@tooteehueebikhreehuee.blogspot.com

Friday, August 17, 2007

अंकुर राय का गाना


अंकुर राय आजकल समकालीन जनमत के कला संपादक हैं. इस पद पर कभी भाई अज़दक और कभी इन पंक्तियों का छापक भी रह चुका है. जब हम लोगों ने इलाहाबाद में अपनी सांस्कृतिक गतिविधियां शुरू कीं तो उनका जन्म नहीं हुआ था. हम लोगों नें उन्हें गोद में खिलाया और हमारे साथ उनकी बड़ी मधुर यादें हैं. बनारस से चित्रकला और एप्लाइड आर्ट में प्रशिक्शित होकर वो आज एक कुशल डिज़ाइनर हैं, सांस्कृतिक कार्यों में तो वो अर्से से इन्वॊल्व रहे हैं, इधर कुछ अंको के बड़े ही आकर्षक कवर उन्होंने बनाए हैं. उनको प्रगति के मार्ग पर लगतार आगे बढ़्ते रहने की शुभकामनाएं और स्नेह.

11 अगस्त 1991 को उन्होंने मेरे कहने पर एक गीत गाया था- वह पूरा गीत यहां पेश कर रहा हूं.







मातृभूमि की व्यथा


फ़ोटो साभार


सारा की इस साल की पढाई में संस्कृत भी शामिल हो गई है. पठति-पठत:-पठंति.....पठामि-पठाव:-पठाम:....रटो और रटते रहो. हमने-आपने भी रटा है और ये लोग भी रट रहे हैं. मेरे जीवन में संस्कृत ने नया क्या जोड़ा अभी तक जान नहीं पाया हूं. आपके जीवन में जुडे किसी नये आयाम पर अगर आप रोशनी डाल सकें तो मेरा अंधेरा छंटे.
हमारे आपके दौर तक देशप्रेम और बलिदान कुछ अर्थ रखते थे. इसी संस्कृत में कुछ श्लोकों का अनुवाद पढ़्ते हुए वह मुझसे पूछ रही है पापा व्यथा क्या है? लाइन है- "मैं अपनी मातृभूमि की व्यथा का वरण करता हूं". जब मैंने अपनी समझ के मुताबिक़ उसे समझाया तो सब सुनने के बाद उसने पीठ मोड़ी और मैंने एक बुदबुदाहट सुनी-"सब कहने की बातें हैं".
अपनी बेटी के मुंह से ऐसे नकार सुनकर अक्सर मेरा मन आहत होता है लेकिन आप ही कहिये कि क्या हम अपने बच्चों को मातृभूमि की व्यथा का वरण करने के संकल्प के आसपास भी पहुंचा सकते हैं?

Wednesday, August 15, 2007

वीरेन डंगवाल की एक और कविता


वीरेन डंगवाल के प्रिय कवि शमशेर बहादुर सिंह को समर्पित उनकी यह कविता.