Thursday, November 19, 2009
Wednesday, November 18, 2009
Wednesday, July 1, 2009
Monday, June 29, 2009
Wednesday, June 24, 2009
Tuesday, June 23, 2009
Thursday, June 18, 2009
दानिश इकबाल से बातचीत 1
दानिश इकबाल साहब एआइआर दिल्ली में एक जाना माना नाम हैं । वो उत्तर प्रदेश के उन्नाव में पैदा हुए और आजकल एआइआर के ड्रामा डिवीज़न में काम करते हैं। मैं उन्हें इस बात के लिए जानता हूँ की काम के बीच मुस्कुराया कैसे जाए । आप इस बात के लिए उन्हें जानते हैं कि उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर यह तय किया कि हिंदुस्तान में एफएम ब्रोडकास्टिंग कैसी होनी चाहिए। आइये आपको सुनाते हैं कि मौजूदा समाजी सियासी हाल पर उनके ख़याल क्या हैं । यह एक दो घंटे लम्बी बातचीत का पहला टुकडा है।
Wednesday, June 17, 2009
दानिश साहब कहते हैं !
दानिश इकबाल साहब एआइआर दिल्ली में एक जाना माना नाम हैं । वो उत्तर प्रदेश के उन्नाव में पैदा हुए और आजकल एआइआर के ड्रामा डिवीज़न में काम करते हैं। मैं उन्हें इस बात के लिए जानता हूँ की काम के बीच मुस्कुराया कैसे जाए । आप इस बात के लिए उन्हें जानते हैं कि उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर यह तय किया कि हिंदुस्तान में एफएम ब्रोडकास्टिंग कैसी होनी चाहिए। आइये आपको सुनाते हैं कि मौजूदा समाजी सियासी हालत पर उनके ख़याल क्या हैं । यह एक दो घंटे लम्बी बातचीत का छोटा सा टुकडा है।
Tuesday, June 9, 2009
हबीब साब को श्रद्धांजलि !
हबीब तनवीर की मौत के साथ हिंदुस्तान में नाटकों का एक अध्याय ख़त्म हो गया है. उन्होंने अपनी समझ और सूझ के साथ जो भी किया उसका महत्व इसलिए भी रहेगा क्योंकि अब हालात और भी बदतर होते जा रहे हैं.
हबीब साब ने नया थियेटर नाम का एक ग्रुप बनाया था जिसके सभी कलाकार आम लोग थे. यह ग्रुप छत्तीसगढ़ी बोली में संवाद बोलता था, वहीं का संगीत इस्तेमाल करता था और यह एहसास कराता था की नाटक करना महज़ सीखे हुओ का खेल नहीं है. मुझे संदेह है कि जो लोग इस बात की तारीफ़ करते हैं कि नया थियेटर में स्थानीय बोली इस्तेमाल होती है, वे भी कभी इन नाटकों का मतलब समझ पाए होंगे .कम से कम मैंने जब भी चरनदास चोर या मिट्टी की गाडी या आगरा बाज़ार देखा है, मुझे नाटक के अंत में बस यही लगता रहा कि इसमे हंगामा और शोर ही ज्यादा था. मेरे लिए इस बात को समझना भी मुश्किल है कि लोक कलाकारों को लेकर नाटक करना ही एक ख़ास बात क्यों होनी चाहिए. एक क्षेत्र विशेष की बोली में नाटक करना क्या उस बोली को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाता है ? जिन लोक कलाकारों के साथ हबीब साब ने काम किया उनका क्या हाल है? मेरे लिए हबीब साब के कंट्रीब्यूशन को ठीक से समझना हमेशा ही मुश्किल रहा है.खुद वो बहुत अच्छे एक्टर थे, सजग नागरिक थे, उनकी आवाज़ अद्भुत थी और उनका लिखा एक गीत मैंने उनके ७५वे जन्म दिन पर उनसे ही सुना था जो बहुत दिलचस्प था. फिर भी इस बात के मूल्यांकन की ज़रुरत है कि उनके नया थियेटर के नाटकों ने एक कुतूहल के अलावा भी दर्शकों में कुछ जोड़ा है? खुद छत्तीस गढ़ के सांस्कृतिक जीवन पर उनके नाटकों ने कुछ असर छोडा है?
उम्मीद है कि आनेवाले दिनों में जब हिन्दुस्तानी रंगकर्मी ब्रेख्त से सीख कर अपना रास्ता बनाएंगे तो उसमे चमत्कार से ज़्यादा सरोकार से काम लेंगे. हबीब साब को श्रद्धांजलि.
Wednesday, May 13, 2009
एक बार फिर जन्मदिन मुबारक कहिए न!
Thursday, April 23, 2009
इकबाल बानो : एक अप्रतिम गायिका
इकबाल बानो को न जानना इस समूचे भारतीय उपमहाद्वीप को न जानना है। मैं ने उन्हें १९८९ में जाना था, उनकी इस नज़्म से, जिसे यहाँ पेश कर रहा हूँ। मदर डेरी के पीछे ध्रुव apartment में जिस दीवानगी के साथ अनुभव सिन्हा, राजेश जोशी, नवीन वर्मा और विमल वर्मा सहित कई दोस्त इसे सुन रहे थे और झूम रहे थे वो न भुलाया जानेवाला वाकया है।
iकबाल बानो १९३५ में दिल्ली में पैदा हुई थीं और शास्त्रीय संगीत में निपुण थीं। ठुमरी, दादरा, उर्दू ग़ज़लें और फारसी ग़ज़लें बड़ी रवानी से गाती थीं। उनकी आवाज़ का ठहराव और उनका कन्विक्शन काबिल-ऐ-तारीफ़ और अश-अश कर देने वाला है। मलिका पुखराज और बेगम अख्तर के साथ वो मेरी प्रिया गायिकाओं में थीं। परसों 21 अप्रेल 2009 को वो हमें छोड गईं. उनके जाने के साथ ही फैज़ को गाने की एक संस्था का अंत हो गया। उनकी कमी हमेशा खटकेगी।
फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' की नज़्म "हम देखेंगे..."
अभी अभी भाई अशोक पान्डे के ब्लॉग पर इक़बाल बानो का ज़िक्र देखा. वहीं से साभार इस नज़्म का टेक्स्ट यहाँ जारी कर रहा हून, उन्हें जै बोर्ची कहते हुए.
हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिखा है
जब जुल्म ए सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव तले
जब धरती धड़ धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हिकम के सर ऊपर
जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी
हम देखेंगे
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो नाज़िर भी है मन्ज़र भी
उट्ठेगा अनल - हक़ का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
Sunday, April 19, 2009
क्या कुछ ब्लॉगरों का यह यात्रा अभियान मेल शोवनिस्ट है?
मुनीश से मेरी दोस्ती अब उतनी ही पुरानी हो चुकी है जितनी राम पदारथ से मेरी दुश्मनी. इस शुरुआती लाइन के बाद मैं सीधे मुद्दे पर आता हूँ जिसका सम्बन्ध इन दिनों ज़ोर-ओ-शोर से चल रहे एक यात्रा अभियान से है और जिसका सूत्रपात भाई मुनीश ने किया है. अगर यह अभियान सम्भव हो पाता है, जिसकी संभावना अब बलवती होती दीख रही है, तो ब्लोगरों का एक बड़ा समुदाय यह कह कर इसे लांछित करेगा (और एक हद तक मैं भी उस समुदाय में शामिल पाया जा सकता हूँ ) कि इस योजना को मोटर सायकिल पर प्रस्तावित किया गया है जो kइ भारत जैसे देश में अब भी महिलाओं का प्राथमिक वाहन नहीं है. इस प्रकार चाहे अनचाहे महिला ब्लोग्गेर्स को इस muhim से बाहर रखने की उनकी इच्छा पर उंगली उठाई जानी चाहिए. काफिले में चार पहियों की गाडी अभी ठोस रूप से शामिल नहीं की गई है. क्या इसमे मुनीश की उस dhankee भावना का हाथ है, जिसमे सुनते हैं की वो औरतों को घरेलू काम के लिए ज़्यादा सक्षम पाते हैं?
मित्रो इस ऐतिहासिक यात्रा को बेदाgh बनाने के लिए ज़रूरी है कि इसके ऊपर संभावित lanchhanon को जल्द अज जल्द दूर करने का प्रयास किया जाए.
Photo curtesy http://www.motorcycle-friendly.com
Hindi Writing Tool ke abhaav me likha gaya.
Thursday, April 9, 2009
उट्ठा है तूफान ज़माना बदल रहा
23 साल पहले 25 लोगों ने उदय भाई की अगुआई में एक कैसेट निकाला था. पीछे की कहानी विमल भाई सुनाएँगे. आप मेरी तरफ से ये गीत सुनिए.
Monday, April 6, 2009
सस्ता शेर से कुछ सदस्य हटाए जाएंगे ???
सस्ता शेर को शुरू करने के पीछे इरादा यही था कि इसे ओरल ट्रेडीशन की शोकेसिंग का अड्डा बनाया जाय। मैं ने इसे बनाते ही पहला इनवाईट ठुमरी वाले विमल भाई को भेजा और उन्हों ने फ़ौरन स्वीकार किया और मैं खुश हुआ क्योंकि मेरे ख़याल से वही इसके पहले और आख़िरी कन्ट्रीब्यूटर होने चाहिए थे। जिस रफ़्तार से इस ब्लॉग ने यारों को जाकर पकडा उसमें मुझे कोई नई बात नहीं दिखती । मुनीश ठीक ही कहते हैं कि आज यह ब्लॉग एक अनोखा ब्लॉग बन चुका है । मुनीश या शायद आप भी नहीं जानते होंगे कि बड़ी संख्या में टीपू सुलतान लोग भी इस ब्लॉग पर आने वाली नई पोस्टों के इंतेज़ार में रहते हैं और टीपने के अपने जन्म सिद्ध अधिकार का उपयोग करते हैं और इस या उस उपयोग में इन शेरों को लाते हैं। एक मोबाइल कंपनी का क्रियेटिव राइटर भी यहाँ से कंटेंट उठा कर एस एम एस बनाता है । हम सब उसकी और उस जैसे टीपुओं की खुशी में शामिल हैं क्योंकि सबको खुश रहने का हक़ जो है !
वैसे तो हम भी मौलिकता की चक्की नहीं पीस रहे हैं।
यहाँ मैं मुनीश के ललकारने पर एक ऐलान जारी करने से ख़ुद को नहीं रोक पा रहा हूँ कि सस्ता शेर से वो सभी सदस्य अपनी सदस्यता ख़त्म करवा लें जो कुछ भी सक्रियता नही दिखा रहे हैं. आख़िर नाम लिखा लेने भर से तो धर्म पूरा नहीं होता!
मुनीश और रितेश जी को धन्यवाद भी पहुंचे.
वैसे तो हम भी मौलिकता की चक्की नहीं पीस रहे हैं।
यहाँ मैं मुनीश के ललकारने पर एक ऐलान जारी करने से ख़ुद को नहीं रोक पा रहा हूँ कि सस्ता शेर से वो सभी सदस्य अपनी सदस्यता ख़त्म करवा लें जो कुछ भी सक्रियता नही दिखा रहे हैं. आख़िर नाम लिखा लेने भर से तो धर्म पूरा नहीं होता!
मुनीश और रितेश जी को धन्यवाद भी पहुंचे.
Thursday, January 29, 2009
Tuesday, January 27, 2009
Wednesday, January 21, 2009
Saturday, January 17, 2009
गंदे गाने:एक श्रृंखला: बिना लेहले संसरवा ना मानी...
इस ब्लॉग को पढ़ने के किए अपना ई मेल का पता ramrotiaaloo@gmail.com पर भेजें.
Friday, January 16, 2009
Thursday, January 8, 2009
मोहर्रम, शहादत और दुख का करुण गायन: सुनिये यह एक लाइफ़टाइम एक्सपीरिएंस साबित होगा
मुहर्रम के मौके पर आइये इस पुरानी पोस्ट को दुबारा देखें.
Tuesday, January 6, 2009
Monday, January 5, 2009
Friday, January 2, 2009
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