Tuesday, June 9, 2009
हबीब साब को श्रद्धांजलि !
हबीब तनवीर की मौत के साथ हिंदुस्तान में नाटकों का एक अध्याय ख़त्म हो गया है. उन्होंने अपनी समझ और सूझ के साथ जो भी किया उसका महत्व इसलिए भी रहेगा क्योंकि अब हालात और भी बदतर होते जा रहे हैं.
हबीब साब ने नया थियेटर नाम का एक ग्रुप बनाया था जिसके सभी कलाकार आम लोग थे. यह ग्रुप छत्तीसगढ़ी बोली में संवाद बोलता था, वहीं का संगीत इस्तेमाल करता था और यह एहसास कराता था की नाटक करना महज़ सीखे हुओ का खेल नहीं है. मुझे संदेह है कि जो लोग इस बात की तारीफ़ करते हैं कि नया थियेटर में स्थानीय बोली इस्तेमाल होती है, वे भी कभी इन नाटकों का मतलब समझ पाए होंगे .कम से कम मैंने जब भी चरनदास चोर या मिट्टी की गाडी या आगरा बाज़ार देखा है, मुझे नाटक के अंत में बस यही लगता रहा कि इसमे हंगामा और शोर ही ज्यादा था. मेरे लिए इस बात को समझना भी मुश्किल है कि लोक कलाकारों को लेकर नाटक करना ही एक ख़ास बात क्यों होनी चाहिए. एक क्षेत्र विशेष की बोली में नाटक करना क्या उस बोली को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाता है ? जिन लोक कलाकारों के साथ हबीब साब ने काम किया उनका क्या हाल है? मेरे लिए हबीब साब के कंट्रीब्यूशन को ठीक से समझना हमेशा ही मुश्किल रहा है.खुद वो बहुत अच्छे एक्टर थे, सजग नागरिक थे, उनकी आवाज़ अद्भुत थी और उनका लिखा एक गीत मैंने उनके ७५वे जन्म दिन पर उनसे ही सुना था जो बहुत दिलचस्प था. फिर भी इस बात के मूल्यांकन की ज़रुरत है कि उनके नया थियेटर के नाटकों ने एक कुतूहल के अलावा भी दर्शकों में कुछ जोड़ा है? खुद छत्तीस गढ़ के सांस्कृतिक जीवन पर उनके नाटकों ने कुछ असर छोडा है?
उम्मीद है कि आनेवाले दिनों में जब हिन्दुस्तानी रंगकर्मी ब्रेख्त से सीख कर अपना रास्ता बनाएंगे तो उसमे चमत्कार से ज़्यादा सरोकार से काम लेंगे. हबीब साब को श्रद्धांजलि.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
my homage to the departed soul.
इरफान भाई बहुत अच्छे लफ्ज़ों से नमन किया हैं। आपके दिल में हबीब साब की एक खास जगह रही हैं।
dear irfan,
bahut badhiya. kya baat hai. yahi enquisitive mind barkaraar rakhana and don't suck into the chamatkar.
I had seen only one act of agra bazzar and mesmerized with local chattisgarahi dialect & costumes and people. but real thing is what is the total outcome.
Ravindra Singh Patwal
छत्तीसगढ के लाल को आखिरी सलाम्।
'मेरे लिए इस बात को समझना भी मुश्किल है कि लोक कलाकारों को लेकर नाटक करना ही एक ख़ास बात क्यों होनी चाहिए.'
इसमें कोई ताज्जुब नहीं है कि बहुत से लोग इस बात को नहीं समझ पाते। इसके अपने कारण हैं। अपने प्रदर्शन से यह साबित हो जाता है कि लोक कलाकार अभिनय, नृत्य, संगीत में किसी भी बड़े संस्थान से प्रशिक्षित अभिनेताओं से इक्कीस ही हैं। उनके नाटकों में जो भी दृश्य इन ग्रामीण लोक अभिनेताओं द्वारा किए जाते वह अपेक्षाकृत अधिक चुस्त, मनोरंजक और प्रभावशाली बन पड़ते हैं। क्योंकि सहजता, विनोदप्रियता, आपसी तालमेल, कल्पनाशीलता, टाइमिंग, रिदम आदि गुण इनके खून में शामिल होते हैं। दूसरी बात यह कि हबीब साहब के नाटकों का कैनवस काफी बड़ा होता है, वह संस्कृत से लेकर शेक्सपीयर के नाटकों तक का मंचन करते हैं। इनमें समाज के अनेक वर्ग, जैसे राजा-प्रजा-व्यापारी-गुलाम आदि का चित्रण एक साथ होता है। इन वर्गों की भाषा और परिवेश में भिन्नता दिखाने के लिए लोक कलाकारों का प्रयोग सटीक होता है।
यदि हम यह सोचने, कि ''हबीब साहब ने छत्तीसगढ़ी या लोक कलाकारों को बढ़ावा देने के लिए काम किया है'' के बजाए ''हबीब साहब ने अपने नाटकों के कथ्य को प्रभावशाली बनाने के लिए छत्तीसगढ़ी कलाकारों और लोकनाट्य के तत्वों का सटीक प्रयोग किया है, और इस प्रक्रिया में इन कलाकारों को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिल गई'' सोचें तो शायद उनके कार्यों को ठीक समझ पाएंगे।
- आनंद
... कुछ हस्तियाँ अमर हो जाती हैं हबीब साहब भी उनमें एक हैं !!!!
Post a Comment