Saturday, January 19, 2008
मोहर्रम, शहादत और दुख का करुण गायन: सुनिये यह एक लाइफ़टाइम एक्सपीरिएंस साबित होगा
मोहर्रम के बारे में मुझे ज़्यादा कुछ मालूम नहीं है. बस यही कि ये हज़रत हसन-हुसेन की शहादत का महाशोक है. बचपन में मुझे साथ के बच्चों की तरह ये बहुत शौक़ था कि मैं भी मुहर्रम के ताज़िये देखूँ लेकिन ये अरमान 17 साल की उमर में इलाहाबाद आकर ही पूरा हुआ. जिन लोगों की भावनाएँ इस घडी से जुडी हैं उनका पूरा सम्मान करते हुए मैं आपके लिये पेश कर रहा हूँ शाकिरा ख़लीली की आवाज़ में इस दुख का कारुणिक साझा. मिथकों के साथ समकालीन संवेदना का ऐसा सामंजस्य मुझे दुर्लभ लगता है. इस बात से अलग एक और बात कि मानवकंठ कितनी जादुई संभावनाएं लिये रहता है.आज की मशीनी कुकिंग से गुज़रते और संगीत के शोर से बजबजाते गाने एक तरफ रखिये और शाकिरा ख़लीली की आवाज़ दूसरी तरफ...अब मुझे लिखिये कि कैसा लगा!
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13 comments:
इरफान जी, निःसंदेह इसे सुनना एक लाइफ-टाइम एक्सपीरियंस ही था.....आपने यह हम सब तक पहुंचाया जिस के लिए आभार। गायकी में इतनी ठहराव , इतनी शिद्धत, इतना सुकून .....बिल्कुल इस मशीनी युग में सुबह सुबह मानसून की पहली बारिश जैसी ही प्रतीत हुई।
इरफान भाई समझ लीजिए कि ज़माने से जिसे सुनने का मन था उसे आपने पूरा कर दिया । मुझे इसकी एम पी 3 फाईल भेज सकेंगे क्या । मुहर्रम को लेकर दिल में अजब अजब जज्बात आते हैं । जो कुछ देखा और समझा है, वो उमड़ने घुमड़ने लगता है ।
आज १८ पहियोंवाली भारी ट्रक हमारी कार की बांयी खिड़की तोड़कर ऐसे गुजरा ,
लगा अब जान गयी ! :-((
...मेरा नाती भी उसी तरफ था,सच मानिए, इसे सुनकर महसूस किया जैसे इबादत, शुक्रिया सभी हो गया !
उपरवाले का रहम था --
आवाज़ नहीं सच्ची पूजा है शाकिरा जी की --
बहुत ही करुण और मार्मिक अभिव्यक्ति..
'तुम्हारी मांग भी उजड़ी, कोख भी उजड़ी'..जैसे शब्द एक साझी संस्कृति का भी हवाला दे रहे है..
शाकिरा खलीली का कुछ परिचय भी दीजिये..
अभय भाई, शाकिरा ख़लीली कोई पेशावर गायिका नहीं थीं. आप जानते हैं कि जितने लोग धंधे में चमक जाते हैं उनसे हज़ार गुना, बल्कि शायद लाख गुना लोग धंधे पर मुस्कराते हुए ख़ुद गाते (और खेल के हवाले से कहें तो, खेलते रहते हैं)रहते हैं.
शाकिरा भी ऐसी ही एक पैशनेट गायिका थीं. महफिलों और घरों से अलग वे अपनी आत्मा की संतुष्टि के लिये गाती रहीं. बताते हैं कि वो एक संभ्रांत परिवार की महिला थीं जिनके सांस्कृतिक तार पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जुडे हुए थे.उनके पति भारतीय प्रशासनिक सेवा में थे. यहाँ थे-थे कह कर मैं कदाचित संशय में हूँ क्योंकि किसी ने उनके मरने की ख़बर पुष्ट नहीं की है. बाद में वे पाकिस्तान चली गयीं और शायद वहीं या इंग्लैंड में अपनी बेटी के साथ रहती हैं/थीं. अगर इस सूचना में सुधीजन कोई तथ्यगत ख़ामी बताएँगे तो हम ख़ुद को ठीक करेंगे क्योंकि किसी को जीतेजी था-थी-थे कहना अपराध है.
मार्मिक । कुछ दिन पहले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पर दूर दर्शन पर एक डौक्यूमेंटरी देखी थी जिसमें वो नौहा गा रहे थे । इतनी करूणा थी कि मन भीग गया । अगर वो सुनने को मिल जाये तो...
वाकई शाकिरा ख़लीली की आवाज़ मे बहुत दर्द है, इनकी आवाज़ सुनाने के लिए धन्यवाद आपका
adbhut evam marmik.
adbhut evam marmik.
this is divine.if u can't connect urself with HIM u just can't sing like this.this is out of world singing.
यह ब्लॉग नहीं बल्कि एक खजाना है। आज इसे घुस कर देखा है। इसकी एक-एक पोस्टें संग्रहणीय हैं। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं इसका रसपान कर पा रहा हूँ। अपने सभी मित्रों को पकड़-पकड़कर इस साइट के गाने सुनवाने का जी चाहता है।
आपका धन्यवाद
- आनंद
आज सुबह शाकिरा ख़लीली के बारे में एक लिंक मिला. http://www.hindu.com/2005/05/21/stories/2005052102480500.htm बेहद डिस्टर्ब करनेवाला. अफ़सोस.
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