दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Monday, December 31, 2007

साल की पहली पेशकश


जब बहुत शोर हो और कुछ रस्मी-बेमानी शुभकामनाओं और शुभेच्छाओं से मन उकता जाये तो आइये कहें.








फिल्म: स्वामी विवेकानंद (1998), संगीत: सलिल चौधरी, गीत: गुलज़ार

18 comments:

विनीत कुमार said...

sach kaha aapne, kabhi-kabhi bahut adhik subhkaamnao se bhi man uub jaata hai, mobile to aise baj raha hai, jaise ki bacche ko loose motion ho gaya ho

अफ़लातून said...

साल मुबारक । येसुदास साहब का नाम भी दीजिए।

annapurna said...

इरफ़ान जी, ये कोरी शुभकामना नहीं है। हम कामना करते है आपके और आपके परिवार के लिए ये वर्ष मंगलमय हो।

नया साल मुबारक !

सस्नेह
अन्नपूर्णा

Anonymous said...

नया साल आप्को और आप्के परिवार को मुबारक !

सस्नेह
अन्नपूर्णा

मुनीश ( munish ) said...

rasmi , bemaani shubhechchaen apko!

पारुल "पुखराज" said...

गीत मन भाया…आभार्……नव वर्ष मंगलमय हो

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया इस गीत के लिए!
नया साल आपको पहले से और भी बेहतर कुछ दे जाए! नए वर्ष की शुभकामनाएं

mamta said...

बहुत अच्छी जानकारी !
नया साल आपके और आपके परिवार के लिए खूब सारी खुशियाँ लेकर आये।

mamta said...

नया साल आपके और आपके परिवार के लिए खूब सारी खुशियाँ लेकर आये।

इरफ़ान said...

प्रिय ममता, मैंने कौन सी अच्छी जानकारी दी? जानना दिलचस्प होगा.

मीनाक्षी said...

अभी कैसे अपने घर जा सकते हैं... अभी तो कई फर्ज़ अदा करने हैं सो चलिए अभी इसी दुनिया में नए साल में प्रेम की जोत जला कर पुण्य ढूँढें और पाप की गठरी को हल्का करें... शुभकामनाएँ

मुनीश ( munish ) said...

aaj sara din yahi geet goonjta raha man me. hala ki pehle bhi suna hai ye.

ghughutibasuti said...

क्या सुन्दर गीत सुनाया है आपने ! मैंने पहली बार सुना और बहुत अच्छा लग रहा है सुनकर !
नववर्ष की शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

नया साला आरंभ हो ही गया है इराफान जी ..

ऐसे ही संजीदा व उम्दा गीत सुनवाते रहियेगा !!

- लावण्या

pakhi said...

गीतों के नये सफर के साथ नया साल मुबारक!

mamta said...

इरफान जी वो गलती से पहली लाइन लिख गयी थी। उसके लिए क्षमा चाहते है।
इसीलिए दोबारा हमने टिप्पणी की थी।

Anonymous said...

Gostei muito desse post e seu blog é muito interessante, vou passar por aqui sempre =) Depois dá uma passada lá no meu site, que é sobre o CresceNet, espero que goste. O endereço dele é http://www.provedorcrescenet.com . Um abraço.

jagmohan said...

आदरणीय इरफान जी प्रणाम...टूटी हुई बिखरी हुई...के माध्यम से काफी ऐसा कुछ मिलता रहता हैं...जिसकी तलाश अक्सर में किया करता हूं...ख़ास तौर पर अपने उन गुरूजनों का जिनकी क्षत्रछाया में मैने जीवन का संघर्ष जाना,इसके लिए आपका आभारी रहूंगा...।
कई बार सोचता हूं...शायद आप भी उन लोगों में तो नहीं...जिन्होंने मुझे मेरे गुरू जी से अलग होने पर हमेशा के लिए अकेला छोड़ दिया...जबकि उसके कारण कभी मुझ से जाने ही नहीं गए की आख़िर मैने ऐसा क्यों किया...मेरा दुःख न जाने कोई...आज़ाद