हैरत है कि आधा दिसंबर बीतने को है और अभी तक स्वनामधन्य विश्लेशकों ने कैसा रहा ब्लॉगजगत का 2007 नाम की पोस्टें लिखनी शुरू नहीं कीं. प्रिंट की तमाम बुराइयों का आईना ब्लॉगजगत इससे कैसे अछूता रह सकता है?
उम्मीद कीजिये कि जल्द ही ऐसी हेडिंग्स आपको लुभाती हुई हिट्स बटोर रही होंगी और उनमें हमारा-आपका नाम नहीं होगा. वैसे भी हमें कल रात से किसी और अनुशंसा प्रशंसा की चाहना भी नहीं रह गयी है.
पिछले हफ्ते एक ब्लॉगर जल्दी -जल्दी कुछ ब्लॉग्स के नाम लेते हुए यह बता बता रहे थे कि छ: - सात ब्लॉग्स को छोड दें तो ब्लॉग की दुनिया में गंध मची हुई है. उन चुनिंदा नामों में उनका भी ब्लॉग था. तो यहाँ भी प्रमाणित करने का रोग कम नहीं है और हम इसकी परवाह क्यों करें. मैंने तो मज़े-मज़े में यह खेल शुरू किया है और वह किसी प्रमाणपत्र का मुँह नहीँ जोहता. इतने थोडे से समय में आपने टूटी हुई बिखरी हुई को जितना स्नेह दिया है उससे लगता है कि कुछ सार्थक लग ही रहा होगा. अगर ब्लॉगवाणी की आज तक की रिपोर्ट पर नज़र डालें तो ब्लॉगवाणी ने यहाँ 5,377 पाठक भेजे हैं और 167 लोगों ने इसे पसंद किया है.
बहरहाल कल रात जो प्यार हम सब के प्यारे कवि वीरेन डंगवाल ने मुझे भेजा है वो हज़ार रस्मी तारीफों पर भारी है. महीने भर पहले उदय प्रकाश जी ने त्रिलोचनजी की पोस्टों पर जो कमेंट भेजा था उससे भी हौसला बँधा था. कमेंट वहाँ देखा जा सकता है.
मन थोडा इठला रहा है और इसी इतराहट में लोकप्रिय कुमाऊंनी गायक गोपाल बाबू गोस्वामी का एक गीत आपको भेज रहा हूं. अशोक पांडे ने बताया कि कोई पचपन साल का जीवन गुज़ार कर जब गोपाल गोस्वामी मरे तब तक वो शोहरत का हर रंग देख चुके थे. बताते हैं कि वे कुमाऊं के पहले सुपरस्टार रहे, यह भी कि आगे-आगे गाते हुए जब वे चलते थे तो हज़ारों लोग पीछे-पीछे गाते हुए चला करते थे. तो ये गीत आपके लिये और घुघूती बासूती नामक ब्लॉगर के लिये भी. नीचे जो नोट और अनुवाद है वो अशोक पांडे का है.
---------
घुघूती कबूतर जैसी एक चिडिया होती है जो बौर आने के साथ ही आम के पेडों पर बैठ कर बहुत उदास तरीके से गुटरगूँ करती है. पहाडी प्रेमिकाएं इसी पाखी के माध्यम से परम्परागत प्रेम का एकालाप किया करती हैं.
बच्चों को सुलाने के लिये भी इस की घुरघुर का प्रयोग माताएं किया करती हैं. बच्चों को पैरों पर बिठा कर घुघूती बासूती कहते हुए झुलाया जाता है. बच्चे थकने के साथ साथ मज़े भी बहुत लेते हैं.
घुघूती न बोल, घुघूती न बोल
आम की डाली में घुघूती न बोल
तेरी घुर्घुर सुन कर मैं उदास हो बैठी
मेरे स्वामी तो वहां बर्फ़ीले लद्दाख में हैं
भीनी भीनी गर्मियों वाला चैत का महीना आ गया
और मुझे अपने पति की बहुत याद आने लगी है
तुझ जैसी मैं भी होती तो उड के जाती
जी भर अपने स्वामी का चेहरा देख आती
उड जा ओ घुघूती लद्दाख चली जा
उन्हें मेरा हाल बता देना
15 comments:
स्नेहदान करने आया था..
बहुत बहुत धन्यवाद इरफ़ान जी । मेरे नाम को याद करने व इसपर लिखे इस गीत को सुनाने के लिए मैं आपकी बहुत आभारी हूँ । कोई मुझे यदि निम्नलिखित गीत सुना पाता तो बहुत खुशी होती ।
घूर घुघूति घूर घूर
घूर घुघूति घूर
मैत की नॉराई आई
मत मेरो दूर
घुघूती बासूती
प्रमोद भाई,
स्नेहदान महादान.
घुघूती जी,
कोशिश जारी है.
गीत सुना, अच्छा लगा। धन्यवाद।
भूल सुधार :
घूर घुघूति घूर घूर
घूर घुघूति घूर
मैत की नॉराई लागी
मैत मेरो दूर ।
घुघूती बासूती
badaa hi meethaa geet...bahut shukriya sunvaaney kaa aur us sey bhi zyaada "ghaguuti" shabd ka arth bataney ka..
इरफान भाई, मैं तो समझा आप घुघूती जी के बारे में कुछ कहने वाले हैं पर यहां तो मामला ही दूसरा निकला. सुंदर गीत सुनाने का शुक्रिया.
लेकिन इस पोस्ट के पहले हिस्से का सबब समझ में नहीं आया. आपको किसी स्वयंभू समीक्षक के बारे में चिंता करने की जरूरत ही क्यों है इरफान भाई? अजी मस्त रहें और हम जैसों को अच्छा-अच्छा पढ़ने और सुनने का मौका देते रहें. लंबे समय से आपका मौन पाठक रहा हूं. आज ना जाने क्यों लिख बैठा.
गीत तो नहीं सुन सका . पर अनुवाद में भी गीत अच्छा लगा .
दोस्त तुम तो छा गए.. लगे रहो.. मेरी शुभकामनाएं..
तो यहाँ भी प्रमाणित करने का रोग कम नहीं है और हम इसकी परवाह क्यों करें. मैंने तो मज़े-मज़े में यह खेल शुरू किया है और वह किसी प्रमाणपत्र का मुँह नहीँ जोहता---
बहुत सही बात कही । सुन्दर पोस्ट।
Although We Hail from Different Land We share one earth and sky and sun Remember friends, the world is one ---- एक तरफ लोक गीत और दूसरी तरफ एकदम नया अन्दाज़ हमारे लिए...बहुत बहुत शुक्रिया...
thanks a lot for this wonderful song
लोक गीतों में जो आत्मा बस्ती है उसका सानी नहीं - सुन्दर गीत और उतना ही अलग सा नाम - घुघूती --- जिस नाम से हमारी घुघूती जी की याद हमेशा जहन में रहती है
जहाँ तक मेरा विचार है, मोहन उप्रेती जी गोपालदा एक ही समय में पहाड के संगीत के प्रचरक रहे. लेकिन जितनी प्रसिद्धी गोपाल गोस्वामी को मिली किसी को नहीं मिली. बहुत सुंदर गीत.
सुंदर नैनवाल
इरफान जी मेरा लिंक देने के लिये शुक्रिया, वैसे मेरा आप पर कोइ ऋण नही है. आपका ब्लोग अच्छा लगा, इसिलिये नियमित पाठ्क हूँ.
घुघूती पर एक लोकगीत भी मेरे ब्लोग पर है,
http://swapandarshi.blogspot.com/2007/11/2.html
Post a Comment