Thursday, December 27, 2007
भाई गोकुल को उनके पसंदीदा गायक उस्ताद हुसैन बख़्श की गाई एक दिलचस्प ग़ज़ल सप्रेम
गोकुल की बेचैनी मुझसे उस दिन देखी न गयी. एक ग़ज़ल सिंगर के लिये इतनी बेचैनी! कमाल है. मैने तय किया कि किसी भी तरह हो, उनके उस कैसेट को रिट्रीव किया जाय जिससे अब वो निराश हो चुके हैं. तो भाइयो, मैंने कल देर रात तक इसमें हज़ार हिकमतें लगा कर ऐसा तो बना ही दिया कि अब आप भी इसे सुन सकते हैं. अशोक पांडे मानेंगे कि किसी क़द्र ये ग़ज़ल उन ग़ज़लों में से है जिन्हे गाने में थोडी मास्टरी चाहिये. हुसैन बख़्श, कहा जाता है कि उस्ताद फैयाज़ ख़ाँ साहब के शागिर्द हैं और ग़ुलाम अली उनके शागिर्द हैं. काफ़ी और ग़ज़ल के अलावा वो ख़याल के भी मास्टर बताए जाते हैं. मैंने उस दिन देखा कि राधिका को भी हुसैन बख़्श बहुत पसंद हैं.
तो दोनों भाई बहन को और आप भाई-बहनों को यह ग़ज़ल पहुँचती है, साथ ही यूट्यूब पर मिली उनकी गाई आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक भी.
मैं आम तौर पर यूट्यूब के वीडियो यहाँ लगाने से बचता हूँ क्योंकि यह मेरे ऐस्थेटिक्स को सूट नहीं करती, मतलब मेरे टेम्पलेट में वे एक भद्दा रंग भरते हैं. बहरहाल मैं आज यह वीडियो गोकुल और राधिका के लिये जारी करता हूँ.
उन बहारों पे गुलिस्ताँ पे हँसी आई...
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