सात अक्टूबर को आलोक पुराणिक ने नीचे छपी पोस्ट जारी की थी. इसे देखकर मैंने वादा किया था कि जल्द ही मैं मुश्ताक़ साहब की किसी रचना का पॉडकास्ट यहां पेश करूंगा. तो लीजिये ज़िया मोहिउद्दीन की आवाज़ में सुनिये मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी की एक व्यंग्य रचना.
ज़िया मोहिउद्दीन
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संडे शेयरिंग-सरे शाम कलाकंद यानी मुश्ताक अहमद यूसुफी का हुनर
-आलोक पुराणिक
हिंदी में हास्य-व्यंग्य पढ़ने वालों के यह नाम-मुश्ताक अहमद यूसुफी –बहुत जाना-पहचाना नहीं है। पर रचनाकार की पहचान उसका काम होता है, यूसुफी साहब के कुछ किस्सों, उपन्यासों को अभी एक किताब की शक्ल में लफ्ज प्रकाशन नोएडा ने छापी है-खोया पानी- नाम से। यूसुफी साहब पाकिस्तान में बहुत बड़े बैंकर रहे हैं। तरह-तरह के बैंकों के चेयरमैन टाइप पोस्टों पर रहे हैं। बहुत बड़े अफसर रहे हैं, इसके बावजूद भी बहुत समझदारी की बहुत बातें करते हैं।
उन्हे पाकिस्तान में सितारा-ए-इम्तियाज, और हिलाल-ए-इम्तियाज अवार्ड मिले हैं, जो जानकारों के मुताबिक, भारतीय संदर्भों में साहित्य एकेंडमी अवार्ड और ज्ञानपीठ अवार्ड के समकक्ष हैं।
मेरे जैसे नये व्यंग्यकार को यूसुफी साहब के कदमों में बैठकर बहुत कुछ सीखना है, सीधी मुलाकात तो क्या ही होगी। उनकी किताब बहुत कुछ सिखाती है, अंदाये बयां क्या होता है। कैसे लिखा जाता है, ये सब सीखना हो, तो यह किताब एक टेक्स्ट बुक है।
मैं क्या बोलूं, चंद लाइनें किताब की पेश कर रहा हूं, आप खुद ही देखें-
-विदेश घूमने और देश से दूर रहने का एक लाभ ये देखा कि देश और देशवासियों से प्यार न केवल बढ़ जाता है, बल्कि अहैतुक हो जाता है-
-पाकिस्तान की अफवाहों में सबसे बड़ी खऱाबी ये है कि सच निकलती हैं।
-यूं लंदन बहुत दिलचस्प जगह है और इसके अलावा इसमें कोई खराबी नजर नहीं आती कि गलत जगह पर स्थित है।
-इसे बदनसीबी ही कहना चाहिये कि जिन बड़े और कामयाब लोगों को निकट से देखने का अवसर मिला, उन्हे मनुष्य के रुप में बिल्कुल अधूरा और हल्का पाया।
-अकेला चना भाड़ तो क्या खुद को भी नहीं फोड़ सकता।
-लोग अर्से तक अलीगढ़ को भी गांव समझते रहे, जब तक कि वहां फिल्म नहीं आयी और कार के एक्सीडेंट में पहला आदमी नहीं मरा।
-फरमाया कि शायरों से यतीमखाने और स्कूल के चंदे के लिये अपील जरुर कीजियेगा। उन्हे शेर सुनाने में जरा भी शर्म नही आती, तो आपको इस पुण्यकार्य में काहे की शर्म।
-हमारा ख्याल है कि इक्के का आविष्कार किसी घोड़े ने किया होगा, इसीलिये इसके डिजाइन में इस बात का ध्यान रखा गया है कि घोड़े से अधिक सवारी को परेशानी उठानी पड़े।
-आमिल कालोनी में दस्तगीर साहब ने मादा कुत्ता पाल लिया है। किसी शुभचिंतक ने उन्हे सलाह दी थी कि जिस घर में कुत्ते हों, वहां फरिश्ते, कुत्ते और चोर नहीं आते। उस जालिम ने यह नहीं बताया कि फिर सिर्फ कुत्ते ही आते हैं। अब सारे शहर के बालिग कुत्ते उनकी कोठी का घेराव करे पड़े रहते हैं। शहजादी स्वयं शत्रु से मिली हुई है।
-इधऱ बिशारत अपने विचारों में खो गये। इस एक आरपार झुग्गी में, जिसमें न कमरें हैं ,न पर्दे, न दीवारें, न दरवाजे, जिसमें आवाज, टीस और सोच तक नंगी है, जहां लोग शायद एक दूसरे का सपना भी देख सकते हैं। यहां एक कोने में बूढ़ा बाप दम तोड़ रहा है, दूसरे कोने में बच्चा पैदा हो रहा है और बीच में बेटियां जवान हो रही हैं। भाई मेरे, जहां इतनी रिश्वत ली थी, वहां थोड़ी सी और लेकर पत्नी को अस्पताल में दाखिल कर देते तो क्या हरज था।
-वस्तुत रास्ते नहीं बदलते इंसान बदल जाता है। सड़क कहीं नहीं जाती वो तो वहीं की वहीं रहती है मुसाफिर खुद कहां से कहां पहुंच जाता है। राह कभी गुम नहीं होती राह चलने वाले गुम हो जाते हैं।
-आपकी गरीबी अमेरिका और अरब देशों की देन है। हमारी गरीबी अपनी गरीबी है।
-गाली, गिनती और गंदा लतीफा तो अपनी मादरीजबान में ही मजा देता है।
-मैंने खुद अपनी आंखों और कानों से एक मुशायरे में हजरत अली सरदार जाफरी को दस-बारह बहुत लम्बी नज्में सुनाने के बाद हाथ जोड़कर स्टेज से उतरते देखा। खैर ऐसी वारदात के बाद तो हाथ जोड़ने का कारण हमारी समझ में भी आता है।
-और साहब मूलगंज को देखकर तो कलेजा मुंह को आ गया। ……………….मैंने देखा कि अब तवायफों ने गृहस्थिनों के से शरीफाना लिबास और ढंग अपना लिये हैं। अब उन्हे कौन समझाये कि इसी चीज से तो घबरा कर दुखियारे तुम्हारे पास आते थे।
-मैनेजर को आगाह किया कि तुमने जिस शख्स को लैला का बाप बनाया है उसकी उम्र मजनूं से भी कम है। नकली दाढ़ी की आड़ में वो लैला को जिस नजर से देखा करता है उसे बाप का प्यार हरगिज नहीं कहा जा सकता।
-मां से कहा-बेगम, हम आज लुट गये। आज घर में चूल्हा नहीं जलेगा। सरे शाम ही कलाकंद खा कर सो गये।
-पाकिस्तान में जो लड़के पढ़ाई में फिसड्डी होते हैं, वो फौज में चले जाते हैं और जो फौज के लिए मेडिकली अनफिट होते हैं, वो कालिजों में प्रोफेसर बन जाते हैं।
ऐसी धारदार लाइनें इस किताब में सैकड़ों हैं।
किताब-खोया पानी
लेखक-मुश्ताक अहमद यूसुफी
उर्दू से हिंदी में अनुवाद-तुफैल चतुर्वेदी
प्रकाशक, मुद्रक-
लफ्ज पी -12 नर्मदा मार्ग सेक्टर 11, नोएडा-201301 मोबाइल-09810387857
कीमत-200 रुपये हार्डबाऊंड
पेज -350
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वाह वाह जी है ये तो,
कुछ और हम भी शेयर कर लेंगे जी.
मुश्ताक अहमद यूसुफी तो बड़े रोचक सज्जन प्रतीत होते हैं. आपने उनके बारे में बता कर बड़ा भला काम किया है.
आप ऐसा भला काम हर सण्डे किया करेंगे?
क्या धांसू बाते बताई हैं जनाब ने। ये किताब तो खरीदने लायक है। आपका भी शुक्रिया कि आपने इनके बारे में बताया।
यूसुफ़ी साहब की कई रचनाएं ज़िया मोहिद्दीन अपनी प्रस्तुतियों में शामिल करते हैं. कभी मौक़ा मिला तो टूटी हुई… पर उनमें से कोई रचना पेश करूंगा. हिंदी में ये प्रयोग अभी शुरू भी नहीं हुए हैं जबकि पाकिस्तान में इनका चलन एक ज़माने से है.
“लोग अर्से तक अलीगढ़ को भी गांव समझते रहे, जब तक कि वहां फिल्म नहीं आयी और कार के एक्सीडेंट में पहला आदमी नहीं मरा।”
“गाली, गिनती और गंदा लतीफा तो अपनी मादरीजबान में ही मजा देता है।”
“मैंने खुद अपनी आंखों और कानों से एक मुशायरे में हजरत अली सरदार जाफरी को दस-बारह बहुत लम्बी नज्में सुनाने के बाद हाथ जोड़कर स्टेज से उतरते देखा। खैर ऐसी वारदात के बाद तो हाथ जोड़ने का कारण हमारी समझ में भी आता है।”
जबर्दस्त.
आलोक भाई
मैं तो किताब मुफ्त में ही पढ़ूँगा
हो सके तो प्रबंध करें या युसूफी साहब को कहें कि हमसे बात करें…
सब कुछ बड़ा ही जीवंत है…।
आशीष दें….ज्ञान दें…
आलोक जी ये किताब हम भी पढ़ना चाहेंगे। ऐसा ज्ञान हम सब से बाटँने के लिए शुक्रिया