मैंने सोचा था कि
एक दिन अच्छा बांसुरीवादक हो जाऊंगा
मैंने आईने में देखा
मेरी टोपी टेढी थी
और जूते का तलवा फट गया था/
'बांसुरी बजाने और टोपी के टेढे होने
बांसुरी बजाने और जूते का तलवा फटा होने में
कोई रिश्ता नहीं होता'
मैंने सोचा
फिर मैं ने चाहा कि सुरों के सहारे
वहां वहां पहुंच जाऊं जहां पहुंचने के सपने
मैं लड़कपन में देखा करता था
मैं ने किताबों के वर्क़ पलट डाले
और उजास घरों की तलाश में जुट गया
'बुद्धिनाथ भाई ! ज़रा नीचे आइये'
साथ थे सिगरेटों के पैकेट्स
कच्ची नींदों में जवान लड़कियों के सपने
और सांठ -गांठ से जीवन चलाने के जोड़ गुणा
रात जैसे बहसों में बीते घंटों की तरह काली
'साले तू भी कैसे कैसे सवाल उछाल देता है? देखता नहीं कि
आखिरी अंडरवियर भी अब साथ छोड़ चला है
बीवी थी/ बेचारी क्या करती?
उसकी भी ज़िंदगी तो कैरम की गोट जैसी रही
उसे कभी नहीं दे पाया पांच शेर शक्कर कि ले
हम सब की ज़िंदगी मीठी बना डाल
शहर में एक गाड़ी थी
छोटे छोटे झुनझुने बंधे थे उसमें
हुक्म था कि गाड़ी चले तो झुनझुने बजने चाहिये
धीरे धीरे नहीं / ज़ोर से कि बच्चे की रोती आवाज़ न सुनाई दे पाये
बस टुन-टुन-टुन-टुन
एक एक कर सारे दोस्त घंटियां बनने चले गये
चारों तरफ़ धुआं था और कमरा बंद था
नौकर कहता था- शाप आजकल आप शिग्रेट बहोत पीने लगे हो
नींद या तो आती नहीं थी या आती तो किसी मैदान के
बीचो बीच मैं अपने को बैठा हुआ पाता
दूर-दूर कुछ बड़े स्तनों वाली - झूलते नितंबों वाली
तथाकथित सुंदर लड़कियां पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े मारकर
मेरी नींद का कच्चा घड़ा फोड़ देतीं
मुझे लगा कि बच्चे पैदा करने की एक सीमा होती है
जब मुझे लगा कि झूठ बोलने की भी एक सीमा होनी चाहिये
वरना यह डर लगातार मौजूद है कि आपके जननांगों में
फफूंदी लग जायेगी और
चेहरों पर अविश्वास की घास उग आयेगी
मैंने नौकर से कहा है कि वह हर घंटे मेरे कमरे से
सिगरेट के टोटे निकाल फेंका करे
वरना ये धुआं ही क्या कम है
जो ये टोटे भी हलक़ में फंसने को मेरा खौफ़ कई गुना करते हैं
(अधूरी, इलाहाबाद, 1 मई,1988)
एक दिन अच्छा बांसुरीवादक हो जाऊंगा
मैंने आईने में देखा
मेरी टोपी टेढी थी
और जूते का तलवा फट गया था/
'बांसुरी बजाने और टोपी के टेढे होने
बांसुरी बजाने और जूते का तलवा फटा होने में
कोई रिश्ता नहीं होता'
मैंने सोचा
फिर मैं ने चाहा कि सुरों के सहारे
वहां वहां पहुंच जाऊं जहां पहुंचने के सपने
मैं लड़कपन में देखा करता था
मैं ने किताबों के वर्क़ पलट डाले
और उजास घरों की तलाश में जुट गया
'बुद्धिनाथ भाई ! ज़रा नीचे आइये'
साथ थे सिगरेटों के पैकेट्स
कच्ची नींदों में जवान लड़कियों के सपने
और सांठ -गांठ से जीवन चलाने के जोड़ गुणा
रात जैसे बहसों में बीते घंटों की तरह काली
'साले तू भी कैसे कैसे सवाल उछाल देता है? देखता नहीं कि
आखिरी अंडरवियर भी अब साथ छोड़ चला है
बीवी थी/ बेचारी क्या करती?
उसकी भी ज़िंदगी तो कैरम की गोट जैसी रही
उसे कभी नहीं दे पाया पांच शेर शक्कर कि ले
हम सब की ज़िंदगी मीठी बना डाल
शहर में एक गाड़ी थी
छोटे छोटे झुनझुने बंधे थे उसमें
हुक्म था कि गाड़ी चले तो झुनझुने बजने चाहिये
धीरे धीरे नहीं / ज़ोर से कि बच्चे की रोती आवाज़ न सुनाई दे पाये
बस टुन-टुन-टुन-टुन
एक एक कर सारे दोस्त घंटियां बनने चले गये
चारों तरफ़ धुआं था और कमरा बंद था
नौकर कहता था- शाप आजकल आप शिग्रेट बहोत पीने लगे हो
नींद या तो आती नहीं थी या आती तो किसी मैदान के
बीचो बीच मैं अपने को बैठा हुआ पाता
दूर-दूर कुछ बड़े स्तनों वाली - झूलते नितंबों वाली
तथाकथित सुंदर लड़कियां पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े मारकर
मेरी नींद का कच्चा घड़ा फोड़ देतीं
मुझे लगा कि बच्चे पैदा करने की एक सीमा होती है
जब मुझे लगा कि झूठ बोलने की भी एक सीमा होनी चाहिये
वरना यह डर लगातार मौजूद है कि आपके जननांगों में
फफूंदी लग जायेगी और
चेहरों पर अविश्वास की घास उग आयेगी
मैंने नौकर से कहा है कि वह हर घंटे मेरे कमरे से
सिगरेट के टोटे निकाल फेंका करे
वरना ये धुआं ही क्या कम है
जो ये टोटे भी हलक़ में फंसने को मेरा खौफ़ कई गुना करते हैं
(अधूरी, इलाहाबाद, 1 मई,1988)
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