दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Saturday, January 18, 2014

हम बीस जन

तट छोड़ रहे हैं
नाव में बैठे हम बीस जन

मुहावरों में बीसियों लोग कहे जानेवाले
बीस जन कहे जायेंगे कविता में.

अब तक क्या करते थे ये बीस जन ?
बूढा बरगद बताता है "ये अपने होने का अर्थ तलाश रहे थे"

ये लड़का ध्वनियों के इस विराट जंगल में
अपने स्वर खो रहा है
तुम्हारे शब्दकोश में इसके लिये बदशक्ल
एक श्रेष्ठतम विशेषण रहा
शब्दकोश के पन्नों को एक-एक कर डुबाने का
उपक्रम चला रहे हैं
उसके दल के लोग

ये लड़की अपने पति के लिये बनाए रुमाल
पर कढाई आधी छोड़कर चली आई

यहाँ अटल गहराइयों पर डर का दामन छोड़
मेहदी हसन की ग़ज़ल में डूब उतरा रहे हैं ये बीस जन

तट पर खड़े तुम नहीं जान पाओगे
इन बीस जन के मन की बात.

(पटना, 10  अप्रेल, 1992 )

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