ख़ुशियों और चिडियों की
बड़ी गड्डमड्ड होती छवियां हैं
मेरे मन में
वो जो कुछ मर रहा है
मेरे भीतर
ऑर्केस्ट्रा में सिंथेसाइज़र बजाते छोकरे की
जड़ छायाएं हैं
यहां चिडियों के परों को झुलसा देने वाली
घर रहने आई हैं चिडियां
उन्हें संगीत और हथेलियों के शोर से
बचाना है.
(पटना, दिसंबर 1991)
बड़ी गड्डमड्ड होती छवियां हैं
मेरे मन में
वो जो कुछ मर रहा है
मेरे भीतर
ऑर्केस्ट्रा में सिंथेसाइज़र बजाते छोकरे की
जड़ छायाएं हैं
यहां चिडियों के परों को झुलसा देने वाली
घर रहने आई हैं चिडियां
उन्हें संगीत और हथेलियों के शोर से
बचाना है.
(पटना, दिसंबर 1991)
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