दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Saturday, January 18, 2014

झाड़ियां- 4

एक दिन अचानक
ऐसा भी हुआ
कि जब मैं आईने के सामने
आया तो देखा
बाल सफ़ेद हो चुके हैं
और सांसों में घरघराहट है

दिन ऐसे गुज़रने लगे जब
किसी ख़त का कोई इंतेज़ार भी नहीं

शुक्र है कि
झाडियां पास हैं हवाओं को
संगीत देती हुई.

(ट्रेन, पटना से कानपुर, 28 फ़रवरी, 1991 )