तुम उनके बारे में
जानते हो?
जो तुम्हारे बारे में जानते हैं
सुनसान काली रातों में
जाग जाग कर
रास्ते तलाश करते हैं
सुनहरी चटख़ धूप में
सूरज को सिर पर लिये
बांट-बांट लेना चाहते हैं
ठिठुरती सुबह
जो निकल पड़ते हैं
बंद किताबों के वर्क़ पलटने
जिनकी आंखों में से झांकती हैं
कई कई आंखें एक साथ
जिनके हाथों में कई-कई हाथों की
ताक़त समा गयी है
जिनके दिलों में कई गुनाह उत्साह है
जिनके लिये तुम्हे विचारवान बनाना
तुम्हे दिन को दिन कहने की हिम्मत बख्शना
रेत के महल बनाने जैसा नहीं लगता
तुम उनके बारे में जानते हो
जो तुम्हारे बारे में
जानते हैं?
जैसे कपड़ों को दर्ज़ी, बालों को नाई
मिट्टी को कुम्हार
या
नदी को किनारे
और भूखे को रोटी की
ज़रूरत है
वैसे ही फ़िलहाल
तुम्हें इनकी ज़रूरत है
तुम्हारे पास तुम्हारे लिये वक़्त नहीं है
तो क्या?
तुम्हें काली आंधियों से
बचाने के लिये
ये व्यूह रचना कर रहे हैं
तुम उनके बारो में जानो
जो तुम्हारे बारे में
जान रहे हैं.
(गुरमा, 11 अप्रेल 1988)
जानते हो?
जो तुम्हारे बारे में जानते हैं
सुनसान काली रातों में
जाग जाग कर
रास्ते तलाश करते हैं
सुनहरी चटख़ धूप में
सूरज को सिर पर लिये
बांट-बांट लेना चाहते हैं
ठिठुरती सुबह
जो निकल पड़ते हैं
बंद किताबों के वर्क़ पलटने
जिनकी आंखों में से झांकती हैं
कई कई आंखें एक साथ
जिनके हाथों में कई-कई हाथों की
ताक़त समा गयी है
जिनके दिलों में कई गुनाह उत्साह है
जिनके लिये तुम्हे विचारवान बनाना
तुम्हे दिन को दिन कहने की हिम्मत बख्शना
रेत के महल बनाने जैसा नहीं लगता
तुम उनके बारे में जानते हो
जो तुम्हारे बारे में
जानते हैं?
जैसे कपड़ों को दर्ज़ी, बालों को नाई
मिट्टी को कुम्हार
या
नदी को किनारे
और भूखे को रोटी की
ज़रूरत है
वैसे ही फ़िलहाल
तुम्हें इनकी ज़रूरत है
तुम्हारे पास तुम्हारे लिये वक़्त नहीं है
तो क्या?
तुम्हें काली आंधियों से
बचाने के लिये
ये व्यूह रचना कर रहे हैं
तुम उनके बारो में जानो
जो तुम्हारे बारे में
जान रहे हैं.
(गुरमा, 11 अप्रेल 1988)
No comments:
Post a Comment