दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Saturday, January 18, 2014

सागरिका सिन्हा: एक अकथ दुख

आजकल हम लोग जहां रह रहे हैं, वो शहर का बाहरी हिस्सा है. संजय गांधी जैविक उद्यान (चिडियाघर) यहां से नज़दीक है.
कल शाम जब मैं और अनिल यहां पहुंचे तो मुन्नी के साथ एक युवती भी बैठी मिली. इसके बारे में पूछ्ने पर पता चला कि उसका नाम सागरिका सिन्हा है. कोई छः दिन पहले उसे उसकी सास ने घर से निकाल दिया है. रहनेवाली कलकत्ता की है. कहां जायेगी यह सोचकर वह मां के पास कलकत्ता चली गयी. वहां उसने अपनी मां पर ज़ाहिर नहीं किया. शादी को कोई चार बरस पूरे हो चुके हैं. दो साल की बच्ची ही इन लोगों की एकमात्र संतान है. कलकत्ता से काफ़ी निराश लौटी. चारों तरफ़ नाउम्मीदी थी. कोई रास्ता न देखकर वह महात्मा गांधी सेतु से कूदकर आत्महत्या करने पहुंची. लेकिन बच्ची का चेहरा यादकर और आत्महत्या की तकलीफ़ भांपकर लौट आई. सीधे कोर्ट गयी. वहां किसी महिला मामलों की वकील को तलाशा. संयोग से किसी ने उसे कमलेश जैन तक पहुंचा दिया. कमलेश जैन बोलीं कि उसे मीना से मिलना चाहिये. इस तरह वह मीना के साथ आते-आते यहां आ गयी. अभी उसे फ़ौरन अपनी बच्ची चाहिये.
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सागरिका की मां भी इस तरह के मामले का शिकार है. जब सागरिका कोई ढाई-तीन साल की थी तभी इसके पिता ने मां छोड़ दिया. मां अभी मामा लोगों के साथ रह रही है. सागरिका की पढाई लिखाई बंबई में मामा के यहां हुई. अभी वह इंटरमीडियेट में ही थी कि सीवान में उसे टीचिंग की एक नौकरी मिल गयी. वहीं उसकी शशांक नाम के एक सुंदर युवक से मुलाकात हुई, प्रेम हुआ और शादी भी. जिस स्कूल में वो पढा रही थी उसके मालिक शशांक के चाचा हैं. शादी तो हुई लेकिन लड़का भूमिहार और लड़की बंगाली, इसे कैसे पचाया जाता? शशांक के पिता (हरिशंकर शरण) यहां पटना के बड़े नामी ऑर्थोपीडिक सर्जन हैं और मां (शारदा सिन्हा) यहीं पटना वीमेंस कॉलेज में पॉलिटिकल सायंस की प्रोफ़ेसर. घर में शादी को कभी स्वीकृति नहीं मिल सकी. जात के अलावा एक वजह ये भी थी कि लड़की अपने साथ भारी-भरकम दहेज भी नहीं ला सकी थी.
शशांक शादी से पहले भी नशे का आदी था और अब भी है.
सागरिका ने सोचा था कि शादी के बाद वो 'इनकी' नशे की आदत छुड़वाने में कामयाब हो जायेगी. लेकिन ये हो नहीं पाया. ख़ुद वो नौकरियां करती रही. एक हाउज़िंग स्कीम में भी नौकरी की, जिसे अभी दस दिन पहले छोड़कर एक नयी नौकरी ज्वॉएन करने ही वाली थी कि इस लफ़ड़े ने इस नौकरी को भी अधर में लटका दिया है.
शशांक को लेकर अब भी उसके मन में एक सॉफ़्ट कॉर्नर है. उसका मानना है कि घर से हमेशा ही नेग्लेक्ट किये जाने की वजह से ही शशांक नशे का लती है. आज वो इन्जेक्शन्स से नशीली दवाएं लेता है और उसका हिल चुका आत्मविश्वास उसे कुछ करने नहीं देता. घर में शशांक की कोई गिनती ही नहीं होती. आमतौर पर खुशहाल दिखनेवाले परिवार के भीतर हमेशा एक कलह का माहौल रहता है. पिछले पंद्रह साल में शायद ही उसकी सास और ससुर के बीच बनी-पटी हो.
उस दिन झगड़ा काफ़ी बढ गया और सास का आदेश हुआ कि सागरिका को घर से तुरंत चले जाना चाहिये. पति ने बताया कि उन दोनों का अब साथ में रहना संभव नहीं हो पाएगा. बच्ची (सुग्गी) को वह अपने पास ही रखेगा. ज़रूरत हुई तो बच्ची को लालन-पालन के लिये अपने भाई के पास भेज देगा. पति ने ये भी बताया कि पापा वगैरह तलाक़ के काग़ज़ात भी तैयार कर चुके हैं.
सागरिका के सामने बेटी की चिंता है. यहां आज उसका पांचवां दिन है और कोई ऐसा दिन नहीं गुज़रता जब वो अकेले में आंसू रोकती न दिखाई दे. धीरे-धीरे मिक्स-अप तो हो चली है लेकिन आगे क्या होगा, की चिंता उसे हमेशा खाए जाती है. तलाक़ वो चाहती नहीं है.
लेकिन फिर वही नशेड़ची पति, क्या होगा?

(शास्त्रीनगर, पटना, 7 अप्रेल, 1992)



1 comment:

मीनाक्षी said...

सागरिका अगर अपने पैरों पर खड़ी है तो उसे रोना बन्द करना चाहिए...अपने पति और बेटी के लिए अपनी ममता पर भी काबू पाले तो अच्छा है...जिस दिन औरत दिखाएगी कि उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, पति और परिवार ठिठक कर एक पल रुक जाएँग़े...कोई भी कदम उठाने से पहले सोचेंगे..