जहां पेड़ नहीं हैं
वहाँ भी हैं - झाड़ियां
छुटपन में जब हम पेड़ पर चढ नहीं पाते थे
तब भी हम झाडियों से कुछ
टहनियां तोड़कर खेलते थे
और हमारी बकरी भी बहुत आसानी से
पिछली टांगों पर खड़ी होकर
पत्तियों का एक बड़ा हिस्सा खा जाया करती थी
और पेड़ों पर चढना तो हमेशा
असुरक्षित रहता था
पत्ते तोड़ते-तोड़ते गिरने का डर हमेशा
लेकिन झाडियों से
तीतर कई बार निकलकर
झुंडों में उड़ते देखे।
(ट्रेन, पटना से कानपुर, 28 फ़रवरी 1991 )
वहाँ भी हैं - झाड़ियां
छुटपन में जब हम पेड़ पर चढ नहीं पाते थे
तब भी हम झाडियों से कुछ
टहनियां तोड़कर खेलते थे
और हमारी बकरी भी बहुत आसानी से
पिछली टांगों पर खड़ी होकर
पत्तियों का एक बड़ा हिस्सा खा जाया करती थी
और पेड़ों पर चढना तो हमेशा
असुरक्षित रहता था
पत्ते तोड़ते-तोड़ते गिरने का डर हमेशा
लेकिन झाडियों से
तीतर कई बार निकलकर
झुंडों में उड़ते देखे।
(ट्रेन, पटना से कानपुर, 28 फ़रवरी 1991 )
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