दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Monday, December 3, 2007

दिल ने फिर याद किया : एफएम गोल्ड का ऐतिहासिक प्रोग्राम

जब कोई चार महीने पहले ये प्रोग्राम मुझे मिला तो मेरी बाँछें खिल गईं. वैसे भी एफ़एम गोल्ड, यानी दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो का 106.4 मैगा हर्ट्ज़ पर गोल्डेन इरा के म्यूज़िक का ख़ास चैनल, सुनने वालों के लिये एक अलग आकर्षण रखता है क्योंकि किसी भी घंटे में अगर आपको सन 50-60 का सुरीला-मधुर संगीत सुनना हो तो ये चैनेल आपको निराश नहीं करता. फिर पुराने दौर की फिल्मों और फिल्मी हस्तियों को बडे ही रोचक ढंग से यहाँ याद भी किया जाता है. ज़्यादातर प्रज़ेटर्स 25-30 साल के आयु वर्ग के हैं लेकिन अपने पैशन और चैनल की ज़रूरतों के मुताबिक़ हर क्षण कुछ नया जोड रहे होते हैं. इस तरह वर्तमान को अतीत की हलचलों से समृद्ध करने की एक सतत कार्रवाही यहां जारी है.

मेरे लिये इस चैनल पर प्रोग्राम करना हमेशा ही इसलिये भी एक्साइटिंग रहा है कि एक तो यहां कहने के लिये कुछ स्पेस है और दूसरे यहां प्ले किया जाने वाला म्यूज़िक मेरे निजी संग्रह से मेल भी खाता है. संगीत को लेकर मेरे दीवानेपन की अनेक कहानियाँ कही जाती हैं जिनमें कई अतिरंजना से भरी हुई हैं. मैं जब सचमुच संगीत प्रेमियों और संगीत संग्राहकों से अपने शो के दौरान बात करता हूं तो अहसास होता है कि मैं अपनी रुचियों और संग्रह की सीमाओं में किस क़दर क़ैद हूं.

बहरहाल जो भी टूटा-फूटा और सीमित संग्रह मैं कर सका हूं और कर रहा हूं उसका मज़ेदार पहलू यह है कि मेरे पास यह रोचक प्रोग्राम है जिसका नाम है दिल ने फिर याद किया. प्रोग्राम का संकल्प है कि इसमें फिल्म संगीत और फिल्म इतिहास के बीते दौर की यादें ताज़ा की जाएंगी. यहां तक तो ठीक है कि फिल्मों के इतिहास और व्यक्तियों के एनेक्डोटल इंस्टैंसेज़ किताबों और पत्र-पत्रिकाओं मे कुछ हद तक ढूंढे से मिल जाते हैं लेकिन इस तरह के शोज़ कोरैबोरेटिव गानों के बग़ैर क्या हो सकते हैं.
एक ख़ुशफ़हमी ये भी है कि कैसा भी फिल्म संगीत ऑल इंडिया रेडियो की रिकॉर्ड लायब्रेरी में तो होगा ही जबकि सच्चाई ये है कि यहां कुछ भी नहीं है. अगर हम मूक फिल्मों के दौर के फौरन बाद के कोई बीस बरसों के गाने तलाशें तो सिवाय निराशा के कुछ हाथ नहीं लगेगा. अपनी सघन यात्राओं के दौरान रिकॉर्ड बेचने की पुरानी दुकानों की खाक छानने और अपने पिता के संग्रह को सीने से लगाए घूमने का जुनून अब लगता है कि निरर्थक नहीं रहा. याद करूं तो हर गाने और हर कैसेट के पीछे एक मुख्तसर कहानी जुडी हुई है जो अब मेरे लिये एक दुर्लभ ऐतिहासिक महत्व की चीज़ है.

तो ख़ैर ... कल के दिल ने फिर याद किया शो में मैंने तक़दीर(1943), तानसेन(1943), सिंगार(1949),पगली(1950),ज़ीनत(1945),पुनर्मिलन(1940),शुक्रिया (1944), पृथ्वीवल्लभ(1943), विद्यापति(1937)और मुक़ाबला(1942) के कुछ गाने सुनाते हुए इन फिल्मों से जुडे कुछ नामों और फिल्मों का ज़िक्र किया तो सुनने वालों के फोन इस बात को रेखांकित करते रहे कि इन गानों से वो 60-65 साल पीछे छूट गये अपने बचपन और जवानी के दिनों में पहुँच गये. मेरठ के एक श्रोता संपूरण सिंह का कहना था कि पेशावर में उनकी क्लास का एक लडका बहुत चंचल था और दो पीरियड्स के बीच वो अक्सर बंसरी(1943) का यह गाना ज़ोर-ज़ोर से गाया पाया जाता था और लडके बडे मज़े से उसे सुनते थे. हाजी नूर मोहम्मद चार्ली उस ज़माने के बडे नामची न कॉमेडियन थे और साइलेंट इरा से लेकर बोलती-गाती फिल्मों के शुरुआती दौर तक फिल्मों में अपनी कॉमेडी के जौहर दिखाते रहे. वो अपने गाने खुद लिखते थे, खुद ऐक़्टिंग करते हुए उन्हें गाते थे और कई बार इन गानों को ख़ुद कंपोज़ भी करते थे. आप भी सुनिये बंसरी का वह गाना जिसे सुन कर संपूरण सिंह अपने पेशावर के दिनों की यादों में खो गये.
क्या आपको किशोर कुमार की याद आई?

आया करो इधर भी मेरी जाँ कभऊ-कभऊ...

5 comments:

annapurna said...

कार्यक्रम तो यहां हैद्राबाद में सुन नहीं पाते है लेकिन लेख पढ कर लगा कि कार्यक्रम बहुत रोचक है।

Anonymous said...

कार्यक्रम तो हैद्राबाद में सुन नहीं पाए पर लेख पढ कर लगा कि कार्यक्रम रोचक होगा।

अन्नपूर्णा

मुनीश ( munish ) said...

is prog. ke ansh bhi yaha daale ja sakte hain. bahut badhiya lekh hai.

Uday Prakash said...

कमाल है। ग्रेट ! मज़ा आया ...! आप बहुत ही बडा काम कर रहे है, बिना बोले ...!

PC said...

Irfan ji, Namaskar!
Aaj ye apka blog pehli baar padh kar aapke 4 saal purane 'Dil ne phir yaad kiya' ke khoobsoorat pal yaad ho uthe...Aapse yeh saajha kar raha hoon ki main kal ek bade dilchasp vyakti se mila jo purane gaane collect bhi karte hain aur hairat huee ki sab yaad bhi rakhte hain...maine yoon hi thitholi karte hue unse Karan Diwan ke us geet (jo mera bahut priye hai) "Duniya humare pyaar kee, yon hi jawan rahe..." ke baare mein pooch daala, aur unhone sab kuch is gaane ke baare mein bata dala...aap shayad aur bhi is terah ke vilakshan logon ko jaante honge, par main pehle kisi aise vyakti se mil bhav-vibhor ho utha...unse aapka zikr kiya toh pata chala woh aapko hi meri terah, sabse behtar presenter aante hain...aapke programme ke liye ya anyatha hi agar aapki utsukta unke bare mein ho, toh kahiyega, main avashya aapko unse milwana chahoonga...aapka shbhchintak...PC