दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, April 13, 2008

कौने बाबा बाँस कटावल सखी री...

कौने बाबा...

मिथिला विवाह/ हल्दी/ मायारानी दास और सहेलियाँ/ संगीत: एच.वसंत

5 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

धन्यवाद। अच्छे गीत के लिए।

डॉ. अजीत कुमार said...

एक उम्दा लोकगीत.
मुझे लोकसंगीत हमेशा से पसंद रहे हैं.

siddheshwar singh said...

ए दद्दा बहुतै नीमन गीत. गवनिहार क नांव पता चल जाए त ठीक, नहीं तब्बो ठीक!

'दील खूस हो गयल भाय'

मीनाक्षी said...

सुनने में जितना मधुर है...समझने में थोडा कठिन है लेकिन मिठास बहुत है... शुक्रिया..

दीपक said...

मजा आया सुनकर !! आप का कलेक्शन काबिले तारिफ़ है " नाट औपचारीक बट कंप्लीटली हार्दीक बधाई """