दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Saturday, April 12, 2008

सुप्रकाश नाथ: एक अनसंग कलाकार

पिछले दिनों मयख़ानवी दिल्ली के आश्रम स्थित एक ऐसे इलाक़े में पहुँचे जहाँ कलाकारों की मंडी थी। वहाँ का माहौल देखकर उन्हें बडी हैरानी हुई. यह कला का एक अंडरवर्ड है जहाँ कमरों में लटकते जाँघिये, कोने में जलता स्टोव, मातीज़, रेंब्राँ, पिकासो और डाली की कलाकृतियों के संग्रह, अधबनी तस्वीरें और पॉलीथीन में लाई जा रही मदर डेयरी की थैलियाँ हैं. दिल्ली के कलाकर्म की बहुत सी हलचलें यहाँ परवान चढती हैं. बडे व्यवसाइयों के डिज़ाइन और एक्सपोर्ट के एसाइनमेंट यहाँ लाए जाते हैं जो पूरे होकर व्यवसाइयों के बैंक बैलेंस बनाते हैं और इन कलाकारों में बेचैनी की एक और मात्रा जोड जाते हैं.
इनमें से एक हैं सुप्रकाश नाथ। 33 वर्षीय सुप्रकाश पिछले पाँच साल से दिल्ली में हैं। वो बंगाल के 24 परगना में काँचरापाडा के रहने वाले हैं। कला की कोई औपचारिक शिक्षा उन्होंने नहीं ली है और वो उनमें से हैं जिन्हें सेल्फ़ टॉट कहा जाता है. सुप्रकाश रंगों और आकृतियों के माहिर खिलाडी हैं और दिल्ली आते ही उनकी इस एक्सपर्टीज़ को ब्रेक मिला एक बॉलीवुड के एक जाने-माने अभिनेता के दामाद द्वारा. सुप्रकाश को इन दामाद महोदय की जींस पर कलाकृतियाँ बनानी थीं और ये काम उन्हें उनके घर या वर्कशॉप पर ही करना था. इस काम को सुप्रकाश ने ऐसे जादुई ढंग से किया कि ये डिज़ाइनर जींसें टॉक ऑफ़ द टाउन बन गईं. सुप्रकाश का मन न तो तब इस काम में लगता था और न अब लगता है. उन्हें तो मौलिक अमूर्त चित्रों में अपनी दुनियाँ उकेरनी है और अब वो इस काम में जुट भी गये हैं. बहरहाल शुरुआती दिनों में एक्ज़िस्टेंस की लडाई में जो काम हाथ आया था उसने सुप्रकाश को इतनी ही मदद की कि उन्हें हारकर वापस बंगाल नहीं जाना पडा. भाषा आज भी उनके व्यावसायिक संघर्ष में बाधा है और वो ख़ुद को वैसे नहीं बेच पाते जैसे दिल्ली के औसत प्रतिभा वाले आंतर्प्रेन्योर्स बेचकर अँगूठा दिखाते हुए आगे बढते जाते हैं. इस बीच इतना ज़रूर हुआ है कि दामाद के साथ डिज़ाइनर जींस बनाने का जो काम शुरू हुआ था उसे शोहरत मिली है और उपरोक्त दामाद का कोई मित्र इस काम को एक एंटरप्राइज़ के तौर पर शुरू कर चुका है. पीनट्स ही सही इन लोगों को मिल जाते हैं जिनसे घर ख़र्च चलता रहता है और मौलिक करने की इच्छाएँ कोई रुकावट नहीं देखतीं. हाल ही में दिल्ली के ब्रिटानिया चौक पर सुप्रकाश और साथियों को म्यूरल्स और सजावट का दूसरा ठेका भी मिला जिसकी झलक अन्य तस्वीरों के साथ यहाँ पेश की जा रही है.ध्यान रहे कि तस्वीरों को सुप्रकाश अपनी प्रतिनिधि छवियाँ नहीं कहते.


















8 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

इरफान भाई! बहुत, बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आप का व्यक्तिगत रुप से सुप्रकाश से परिचित कराने के लिए। ऐसी हजारों प्रतिभाएं देश और दुनियाँ मे बिखरी पड़ी हैं। सुप्रकाश भाग्यशाली हैं कि उन्हें जीन्स पर चित्रांकन का अवसर मिला और इन से उन का कलाकर्म सुरक्षित रुप से आगे बढ़ने लगा। जमाने का धर्म यही है कि कला के साथ कुछ व्यवसायिक कर्म भी हो जिस से कलाजीवन भी आगे बढ़े।

Ashok Pande said...

गागू के अब्बू! आप आज फिर से अच्छा माल ले के आए हैं. शुक्रिया क़ुबूल कीजिए साब.

चंद्रभूषण said...

नीचे वाली तीनों तस्वीरें तो सुप्रकाश की कृतियां नहीं लगतीं।

चंद्रभूषण said...

सॉरी, दूसरी बार देखने पर ध्यान आया कि उनमें म्यूरल्स भी हैं।

इरफ़ान said...

@Chandrabhushan
Neeche vaalee teenon kritiyaan Suprakash kee hee hain.

मुनीश ( munish ) said...

the business tycoon here referred to is none other than the brother of Escorts fame Nanda whose son is married to shweta Bachchan .

Chandrabhushan ji Irfan is right.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

सुप्रकाश से परिचित कराने के लिए साधुवाद.

अजित वडनेरकर said...

भई, दिल खुश हो गया । बेहतरीन पोस्ट। ब्लागिंग का यही तो काम है शानदार । डायरी या डायरीनुमा चीज़ों को पकड़ना ही ब्लागिंग नहीं है । समाज का आईना बनना, पहरुआ बनना भी कुछ मानी रखता है। इरफ़ान भाई शुक्रिया कुबूल फ़र्माएं....