ढूँढ उजडे हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढता है शराबें जो शराबों में मिलें
अब न वो मैं हूँ, न तू है न वो माज़ी है फ़राज़
जैसे दो साये तमन्ना के सराबों में मिलें
-अहमद फ़राज़
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अब सुलगती ज़िंदगी के नाम अंगारे लिखो
दोस्तो आओ सडक पर और कुछ नारे लिखो
बाग़ में अपने उगाना चाहते हो गर गुलाब
सुर्ख़ स्याही से किसी मौसम को ख़त सारे लिखो
नागरिक सडकों पे यूँ बेकार ही फिरते नहीं
इस कहानी में इन्हें तुम सिर्फ़ बंजारे लिखो
-नामालूम
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लोग अपने लिये औरों में वफ़ा ढूँढते हैं
इन वफ़ा ढूँढने वालों पे हँसी आती है
देखने वालो तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हें तो देखनेवालों पे हँसी आती है
-सुदर्शन फ़ाक़िर
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हाथ दिया उसने मेरे हाथ में
मैं तो वली बन गया इक रात में
इश्क़ करोगे तो कमाओगे नाम
तोहमतें बँटती नही ख़ैरात में
हाथ में काग़ज़ की लिये छतरियाँ
घर से न निकला करो बरसात में
इश्क़ बुरी शै सही पर दोस्तो
दख़्ल न दो तुम मेरी हर बात में
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नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का
मस्ती से हर निगाह तेरे रुख़ पे बिखर गई
मारा ज़माने ने असदुल्ला ख़ाँ तुम्हें
वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई
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हिमाचली लोक गाथाएँ
वर्षा कटोच (Nagma Music)
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ज़िंदगी कुछ भी नहीं फिर भी जिये जाते हैं
तुझपे ऐ वक़्त हम एहसान किये जाते हैं
कुछ तो हालात ने मुजरिम हमें ठहराया है
और कुछ आप भी इल्ज़ाम दिये जाते हैं
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मैंने एक आशियाँ बनाया था
अब भी शायद वो जल रहा होगा
तिनके सब ख़ाक हो चुके होंगे
एक धुआँ सा निकल रहा होगा
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आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब,
उम्र भर आपकी इस बात ने रोने न दिया.
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धर्मेंद्र सिंह पटेल
366/700 सिविल लाइन
कचहरी के पास
मस्जिद से उत्तर
फ़तेहपुर-212601
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6 comments:
पिछले सफर की गर्द को दामन से झाड़ दो
आवाज़ दे रही है कोई सूनी राह फिर
--शायर शायद शहरयार
हमारी डायरी के एक पन्ने से ।
आपकी डायरी के और पन्नों का इंतज़ार ।
अहमद फराज साहब की गजल का पहला शेर तो आपने लिखा ही नहीं,
अब के हम बिछडे तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले |
बढ़िया अशआर पढ़वाने के लिए धन्यवाद
लोग अपने लिये औरों में वफ़ा ढूँढते हैं
इन वफ़ा ढूँढने वालों पे हँसी आती है
देखने वालो तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हें तो देखनेवालों पे हँसी आती है
ahha..khub
हमने भी अपनी डायरी के पन्ने पलटने शुरु कर दिए.
इश्क़ बुरी शै सही पर दोस्तो
दख़्ल न दो तुम मेरी हर बात में
-- यह शेर तो हमारा हुआ...वैसे है किसका ?
aaj subah hi ahmad faraj saheb ki kitab hath aayi....aor is sher se rubaru hue ki aapki post par najar padi..duniya ggol hai bhai..
"आज खुदा की इबादत करने को दील करता है
चलो किसी रोते को हँसाए "आप के ये शेर कुछ दोस्तो को भेज रहा हु इस आशा से कि आप नही नही कहेंगे
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