अगर आपको इस बात पर बहस करना है कि अटल बिहारी वाजपेयी युग के इतने बडे कवि हैं जिनकी रचना को गाना लता मंगेशकर के लिये बेहद ज़रूरी था तो आइये. वरना ये बताइये कि क्या पाश, वरवर राव, गोरख पांडेय, मुनव्वर राणा, आदि की रचनाएँ इतनी ग़ैरमाक़ूल हैं जिन्हें युग की महान गायिका गाना पसंद नहीं करती?
गीत नया गाता हूँ...
7 comments:
सुबह सुबह स्वाद बिगाड़ दिया आपने ये पिलाट्टिक की पेंपें सुना कर. लता मंगेशकर से वरवर राव या गोरख पांडे की रचनाओं की उम्मीद न कभी की गई थी न की ही जाएगी. हां लालू यादव या सोनिया गांधी या नरेन्दर भाई कल कोई महाकाव्य लिख बैठे तो यही राष्ट्रगायक / गायिकाएं तिरंगा पहन कर भोंपूभोंपूचेंचेंपींपीं ... में चालू हो जाएंगे. गाते रहो सालो गीत नया-पुराना. अब और गुस्सा न दिलाओ यार!
नींव की ईंटें कहाँ दिखती हैं .... सबकी नज़र कँगूरों पर ही जाती है.
बहस की बात तो अलग है लेकिन गीत अच्छा लगा.
यह बकवास रचना सुनवाने की क्या ज़रूरत थी? वैसे यह ज़रूरी नहीं कि लता ने सारे ही गीत अच्छे या अच्छे कवि-शायरों के लिखे ही गाये हों. गाना उनका धन्धा है और इस धन्धे के लिहाज़ से जो भी फयदेमन्द लगे, करना उनका धर्म है. हमें इस बात पर शोकाकुल नहीं होना चाहिए कि उन्होंने किसी अटलबिहारी की लिखी पंक्तियां क्यों गाईं (जगजीत ने भी गाई थी) और न यह पूछना चाहिए कि वे पाश, गोरख पाण्डेय वगैरह को क्यों नहीं गातीं. उन्हें धन्धे के लिहाज़ से यह काम फायदे का नहीं लगता, इसलिए इन्हें नहीं गाती.
वैसे, क्या कभी भी लता के गाए स्मरणीय गीतों की किसी भी सूची में कहीं भी यह रचना होगी? नहीं, ना!
भाई साहब जे क्या बात हुई, इत्ती नाराजगी क्यों? भई ये तो कलाकार हैं कल को चार्ल्स शोबराज पैसा देंगे तो उनके लिखे को भी गा देंगे!
इनके लिये क्या अटलजी, क्या वरवर राव क्या चार्ल्स... इन्हें पैसों से मतलब है बस।
dhan pandit dhan raja hai ,
ye ek adbhut baaja hai ,
jo chaho so taan baje,
dhan se sakal jahaan baje !!
--om prakaash aditya.
यहाँ लोगों को सिर्फ़ नाराजगी इसी बात है कि लता जी ने अटल जी की रचना गायी है, और कुछ नहीं.
मैने ये रचना पहली बार सुनी और यकीन मानिये जिस प्रकार मैंने जगजीत जी को उनके एलबम " संवेदना" के लिये सराहा था कुछ वैसी ही वाह लता जी के लिये भी निकल रही है.
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