कल मैंने हसीन का ख़त जारी किया तो यारों को बहुत हँसी आई. मुझे भी आती है. फिर लगता है कि कहीं हम ख़ुद के बारे में किसी ख़ुशफ़हमी के शिकार तो नहीं हैं! हम सभी के अंदर एक हसीन रहता है या हसीना रहती है. हमारा ग़ुस्सा और हमारे वीयर्ड थॉट्स कभी इस और कभी उस फ़ॉर्म में सामने आते हैं. फ़र्क़ ये है कि हमने उन्हें छुपाना(पढें रचनात्मक बनाना)सीख लिया है/सीख रहे हैं और हसीन उस आर्ट को साध नहीं पाया है. दिखाने से ज़्यादा छुपाने के जिस खेल में हम हैं, हसीन अभी उससे दूर है शायद, इसीलिये हम हँसते हैं और उसे दुर्दांत कहते हैं. हसीन का ख़त कल से आगे पढिये, इस ख़त का ये आख़िरी हिस्सा है.
...मैनें ग़ज़ाला को हमेशा के लिये छोड दिया है और मेरी ज़िंदगी में उसकी जगह सुकिया की लडकी ने ले ली है. सुकिया, जो हमारे मोहल्ले में रहता था, कुछ हफ़्तों पहले उसकी मौत हो गई.सुकिया की वो लडकी जो कल राशन की दुकान पर गई थी, मिट्टी का तेल लेने, जब मैंने उसे देखा था, उसने ग़ज़ाला की जगह ले ली है. यानी अब मेरी शादी ग़ज़ाला के बजाय उससे होगी. लेकिन सुकिया की उस लडकी को काला रंग नहीं मिला है बल्कि मैंने उसे हरा रंग दिया है. चौंको नहीं! मेरे पास हरे रंग की दो शर्ट हैं. एक पुरानी हरे रंग की शर्ट मेरे पास थी, जो मैंने इस वक़्त पहन रखी है.
रहमान को जान से नहीं मारा/मरवाया जाएगा और न ही मैं रहमान को किसी तरह की सज़ा देना/दिलवाना चाहता हूँ.
लेकिन रहमान की बीवी और मेरी बहन राशिदा को सज़ा मिलेगी.राशिदा के लडके सोनू को सज़ा मिलेगी. रहबर और क़ैसर को सज़ा मिलेगी.राशिदा के सास-ससुर को सज़ा मिलेगी, मुदस्सिर को सज़ा मिलेगी.
इन सब की सज़ा ये है कि इनकी ख़ुशियाँ हमेशा के लिये ख़त्म हो जाएँगी. ये चाहे जो भी करें इनकी ज़िंदगी में कभी ख़ुशी न हो.इनका सुख चैन हमेशा के लिये खो जाए और इनकी ज़िंदगी में किसी तरह की कोई तरक़्क़ी न हो. जो कुँवारे हैं वो हमेशा के लिये कुँवारे रहें. और हाँ ग़ज़ाला, गुलिस्ताँ और अर्शी को भी सज़ा मिलेगी. उनकी सज़ा भी वही है जो राशिदा, सोनू, रहबर आदि की है और वे भी हमेशा कुँवारी रहें.
(22) हमारे मुहल्ले में रहनेवाले रियाज़(मुंकीवाले)को और उसके लडके शहज़ाद को सज़ा मिलेगी. रियाज़ की सज़ा ये है कि वो किसी लायक़ भी न रहे. बिरादरी में रिश्तेदारी में कोई भी आदमी उसकी इज़्ज़त न करे, उससे सलाम दुआ भी न करे और न उसके पास उठे-बैठे और न उसे अपने पास बुलाए-बिठाए. रियाज़ पूरी तरह से बेकार और बदनाम हो जाए.जब भी कहीं कोई ब्याह शादी हो, किसी भी तरह का कोई फ़ंक्शन हो, तो वो/वे ब्याह-शादी करने/करवाने वाला/वाले कभी भी रियाज़ को ब्याह-शादी या/और किसी तरह के फ़ंक्शन में न बुलाए, उसे कोई आमंत्रण/ इनवीटेशन न भेजे.
और रियाज़ के लडके शहज़ाद की सज़ा ये है कि वो बदमाश और आवारा लडके की तरह रहेगा, जैसा कि वो अब है और अपने बदमाशी भरे कामों से और अपनी आवारगी से वो अपने माँ-बाप का सिर नीचा करवाए और फिर एक दिन ऐसा हो कि वो पुलिस की गोली से मारा जाए. कोई उसका अंतिम संस्कार करने/करवाने वाला भी न हो जैसा कि Encounter: The Killing फ़िल्म में हुआ था.
(23) एक लडका और है धोबी का, उसका दादा अभी एक दो साल पहले मरा.वो बहुत बुड्ढा आदमी था, बहुत उम्र का था. शायद उस लडके का नाम मोहित है. उसका नाम जो कुछ भी है,मैं उसे जानता हूँ.उसका चेहरा पहचानता हूँ. उसने एक बार मुझ पर हमला किया था- अकारण. कोई वजह नहीं थी.उसका घर फ़ारूख़ खरसैलों के बराबर में है. वो लडका मरेगा. उसे मैं मारूँगा या मरवाऊँगा. और उसे मारने का तरीक़ा क्या होगा, ये मैं उसी वक़्त बताऊँगा, जब उसे मारने का वक़्त आएगा. उसे जान से मारने/मरवाने का तरीक़ा उसी वक़्त मैं निर्धारित करूँगा.जब उसे जान से मारने/मरवाने का वक़्त आएगा.
रेडियो मिर्ची के RJ देव को जान से मारने/मरवाने का तरीक़ा ये है कि उसे कंक्रीट की दीवार से टकरा कर और कंक्रीट के फ़र्श पर पटककर मारा जाए ठीक उसी तरह जैसे धोबी धोबीघाट पर पटक-पटककर कपडे धोता है.
अब आई अनु की बारी. रेडियो मिर्ची की अनु को जान से मारने/मरवाने का तरीक़ा ये है कि अनु को संगीत की धुनों से मारा जाए. तरीक़ा ये है कि बहुत बडे-बडे स्पीकर वाला हेडफ़ोन उसके कानों पर लगाया जाए फिर कोई कान फाड देनेवाली धुन उस पर बजाई जाए लेकिन आवाज़ का वॉल्यूम इतना ज़्यादा होना चाहिये कि अनु के कान और दिमाग़ की नसें फट जाएँ. ऐसा करने से पहले अनु को एक कुर्सी पर बिठा कर बाँधा जाएगा और वो संगीत कम से कम पंद्रह मिनट बजाया जाएगा. और अगर वो तब भी नहीं मरी तो उसके हाथ पैर काटकर उसे मारा जाएगा.
मैं सोच रहा हूँ कि अनंत के साथ सौरभ को भी मार दूँ.क्योंकि रेडियो मिर्ची का Rj सौरभ भी क़ुसूरवार है.वो भी उतना ही क़ुसूरवार है जितना कि देव.
अनंत को उसके सीने में गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया जाए और सौरभ को उसकी गरदन काट/कटवाकर मारा/मरवाया जाए.
(24) मुझे अपने अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स के द्वारा उन लोगों से पाँच करोड रुपए चाहिये जिन्होंने मुझपर Homosexual होने का इल्ज़ाम लगाया था. जिन्होंने यह जानने की कोशिश की थी कि मैं Homosexual हूँ या नहीं. उनकी उस बात से मुझे बहुत दुख हुआ था और मुझे उनसे compensation में पाँच करोड रुपये चाहिये. इन पाँच करोड रुपयों के अलावा मुझे सरकार से और पोस्ट ऑफिस/पोस्टल डिपार्टमेंट से दस लाख रुपये चाहिये, मेरे बिना एड्रेस के पत्र मेलबॉक्स से निकाल कर सडक पर फेंकने के इलज़ाम और Compensation में. क्योंकि इस बात से भी मुझे बहुत आघात पहुँचा था.
हमारे कारख़ाने के सामने "बॉबी ब्यूटी पार्लर" के सामने जो जंगलियोंवालों के निज़ाम की जूही नाम की कढाई आदि की दुकान है, ये दुकान यहाँ से ख़त्म हो जाए.
अगर इनमें से कोई ऐसी बात जो लिखने से रह गई है, जो मैंने पहले लिखी/कही थी लेकिन इस बार अगर नहीं लिख पाया क्योंकि वो बात मेरी याद में , मेरे दिमाग़ में इस वक़्त नहीं आई तो वो बात, वो काम भी इन बातों में शामिल कर लिया जाए.
जब ये काम होंगे सिर्फ़ तभी नेहा से मेरी शादी मिलन संभव है, वरना नहीं. अगर इनमें से एक भी काम न हुआ या अगर ये सारे काम न हुए तो फिर किसी भी हालत में, किसी भी क़ीमत पर, कभी भी नेहा से मेरी शादी नहीं होगी, उससे मेरा मिलन नहीं होगा और फिर उसे और रिंकी को जीवन भर उसी तरह तन्हाई में रहना पडेगा,जिस तरह मैंने लिखकर बताया था.
-हसीन
8 comments:
भाई को स्वास्थ्य लाभ की सख्त ज़रूरत है..जो सबके प्रति मन में ऐसा गहरा क्लेश पाले हुए हैं.. आप ने ठीक कहा है हम सब ऐसा करते हैं पर भाई एक हद तक चले गए हैं..
नाइंसाफ़ियां सब के साथ होती हैं पर हसीन भाई को वो इस क़दर काट गई हैं कि खुद इंसाफ़ करने बैठ गए हैं मानो क़यामत हो गई हो और सबके हिसाब-किताब का ज़िम्मा इन्ही को मिल गया हो..
मेरी सहानुभूति इन लापता भाई और उनके लापता जानने वालों के साथ हैं..
भाई म्यां ये जो रेडियो का काम है ना इसमें लिस्नरों के जोरदार खत मिलते हैं । कुछ साल पहले चेन्नई की कोई लिस्नर अपनी खत सीरिज में ये साबित करने पर तुल गयी थी कि मैं उसके बचपन का प्यार हूं । उससे शादी रचा कर भाग खड़ा हुआ हूं और जीसस मुझे कभी माफ नहीं करेंगे । मैं लिफाफे की राइटिंग देखकर मुसीबत को पहचान लेता था और जी धक से रह जाता था ।
@अभय: धन्यवाद.
@ यूनुस: भाई, हम सभी जो एक्स्टेंसिवली इंटरेक्टिव ब्रॉडकास्टिंग से जुडे हैं, ऐसे अनुभवों से रोज़ दो-चार होते हैं. एक श्रोता तो एक दिन ये सिद्ध् करने में जुट गये कि मैं उनको रुलाता हूँ और उनका जीना हराम किये हुए हूँ. उनका कहना था कि वो जहाँ भी जाते हैं मैं उनके पीछे-पीछे आता हूँ. यहाँ तक कि वो जब किसी काम से बाहर या बाज़ार वग़ैरह जाते हैं तो भी मैं उनका पीछा नहीं छोडता.
तब उनसे यही कहना पडा था कि आप अपना रेडियो रिसीवर साथ लेकर मत जाया कीजिये...आपका जीना हराम नहीं होगा. आदि.
फ़र्क़ ये है कि हमने उन्हें छुपाना(पढें रचनात्मक बनाना)सीख लिया है ----- शुक्र है कि हमने रचनात्मक बनाना सीख लिया है गर सभी हसीन या हसीना हो जाएँ तो कयामत आ जाए. :)
हसीन मियां ने अपनी शादी के लिए शर्तें बड़ी विकट रख दी हैं, फिर भी एक-एक करके इन्हें पूरा करने में उनकी पूरी मदद की जानी चाहिए। क्या-क्या रतन जुटाके रक्खे हैं इरफान! एडगर एलन पो का बिल्कुल ठेठ देसी करैक्टर है ये बंदा।
हसीन का सारा क्रोध मुझे वैसा ही लग रहा है जो महंगाई से त्रस्त भारतीय जनता का है.
बस ये है कि अगर असल पब्लिक लिखे तो फ़ुरक़ान, हसीब, अनस और रूमान ... आदि-आदि की जगह कुछ माननीयों के नाम होंगे.
अच्छा जी!
इरफ़ान - ईमान से अगर हसीन मियाँ अंग्रेज़ी में लिखते तो सीक्रेट डायरी ऑफ़ एड्रियन मोल जैसा बेस्टसेलर हो चुका होता - सीरिअसली - आगे पीछे देख कर यकीं है कि आपके पास एक "गुमनाम चिट्ठे (?) " जैसे नाम के प्रोग्राम / किताब (खासकर किताब) का तमाम सामान है, जिसे बड़े सभी सुन/ पढ़ कर महसूस कर सकें - और लहिजा भी है - देखें पिछले में यूनुस ने जो लिखा है हँसते ही पर सच में गहरा है - (@चंदू भाई ने उसमें एक और नाम जोड़ा) इसपर इरफ़ान से ही सोचें - कौम का ऐसा अपना बयान आप तारीख़ में किसे तरह दर्ज़ करेंगे कि दीमकों के हवाले बरसातियों को सुपुर्द करेंगे - इत्मीनान से सोचें - सादर - मनीष [ और हड़काएं न ]
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