Tuesday, April 29, 2008
पूर्वाधनाश्री ने अपने ब्लॉग की शुरुआत की
युवा भरतनाट्यम नृत्यांगना पूर्वाधनाश्री ने आज विश्व नृत्य दिवस पर अपने ब्लॉग की शुरुआत कर दी। पिछले साल अगस्त- सितंबर के आसपास उन्होंने यह ब्लॉग बनाया था और मैंने तब ही से अपने ब्लॉगरोल में उनका लिंक दे रखा है। आपमें से कई लोग उधर टहल कर भी आए लेकिन अपडेट न पाकर रेगुलर न रह सके. आजकल पूर्वा हैदराबाद में हैं और बाक़ी जानकारियाँ आपको यहाँ मिल ही जाएँगी.
उनकी जिग्यासा है कि जब आप शास्त्रीय नृत्य की कोई प्रस्तुति देखते हैं तो आपको कैसा अहसास होता है?
इच्छुक कलाप्रेमी पूर्वा ( जिसे हम प्यार से कुंजू कहते आये हैं) के ब्लॉग पर जाकर अपनी राय ज़ाहिर कर सकते हैं.
Friday, April 25, 2008
ऐसो पापी सावन आयो सावन आग लगाये रे...
ये है फ़रज़ाना के पसंदीदा गानों में से एक.
फ़िल्म: पत्थर और पायल (1974)
डायरेक्टर: हर्मेश मल्होत्रा
संगीत: कल्यानजी-आनंदजी
गीत: वर्मा मलिक
सितारे:धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, विनोद खन्ना, अजीत, जयश्री, राजेंद्र नाथ और इफ़्तेख़ार
फ़िल्म: पत्थर और पायल (1974)
डायरेक्टर: हर्मेश मल्होत्रा
संगीत: कल्यानजी-आनंदजी
गीत: वर्मा मलिक
सितारे:धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, विनोद खन्ना, अजीत, जयश्री, राजेंद्र नाथ और इफ़्तेख़ार
Wednesday, April 23, 2008
डायरी के कुछ पन्ने-3
रास्ते के किनारे के लिये कुछ छायादार गाछ-
1. शिरीष
2. छातिम
3. देशी झाऊ
4. जारुल
5. देबदारू
6. अर्जुन
7. शागबान
8. शिशु
9. कृष्णचूडा
आम की क़लम-
1. आलफ़ांस
2. किशनभोग
3. कोहित्तूर
4. चांपा(चंपा की सुगंध)
5. क्षीरसा पाती
6. गुलाब ख़ास
7. फ़ज़ली
8. बम्बई काला
9. लंगडा बनारस
10. सफेदा लखनऊ
11. मालदही
12. हिमसागर
13. बारहमासा
14. तोतापरी
द ग्लोब नर्सरी, कलकत्ता- (ताज़ा बीज)
1. बंद गोभी
2. शालगम
3. फूलगोभी
4. गाँठगोभी
5. चुकंदर
6. गाजर
7. लेटुस
8. मिरचा
9. मूली
10. बैंगन
11. प्याज़
12. तम्बाकू
13. मटर
14. बीन फ़्रेंच
15. टमाटर
16. ख़रबूज़
17. खेडो
18. तरबूज़
19. पामकीन
20. राई
21. पपीता
22. स्कोयास
23. सिलेरी
24. सेम
25. उच्छे
26. करेला
27. कोहडा
28. चिचीडा(परोरा)
29. लौकी
30. ककडी
31. खीरा
32. गुढमी(काचरा)
33. घीयातरोई
34. बरबटो (बोरो)
34. रामतरोई (भिंडी)
35. शकरकंद
36. पालक
37. पालक
38. काटवा डाटा
39. चौलाई
40. लाल साग
41. पुई साग
42. नीबू
43. लीची
44. अमरूद
45. आम
46. केला
47. जामुन
48. बेर
49. सपेटा(चीकू)
29.
1. शिरीष
2. छातिम
3. देशी झाऊ
4. जारुल
5. देबदारू
6. अर्जुन
7. शागबान
8. शिशु
9. कृष्णचूडा
आम की क़लम-
1. आलफ़ांस
2. किशनभोग
3. कोहित्तूर
4. चांपा(चंपा की सुगंध)
5. क्षीरसा पाती
6. गुलाब ख़ास
7. फ़ज़ली
8. बम्बई काला
9. लंगडा बनारस
10. सफेदा लखनऊ
11. मालदही
12. हिमसागर
13. बारहमासा
14. तोतापरी
द ग्लोब नर्सरी, कलकत्ता- (ताज़ा बीज)
1. बंद गोभी
2. शालगम
3. फूलगोभी
4. गाँठगोभी
5. चुकंदर
6. गाजर
7. लेटुस
8. मिरचा
9. मूली
10. बैंगन
11. प्याज़
12. तम्बाकू
13. मटर
14. बीन फ़्रेंच
15. टमाटर
16. ख़रबूज़
17. खेडो
18. तरबूज़
19. पामकीन
20. राई
21. पपीता
22. स्कोयास
23. सिलेरी
24. सेम
25. उच्छे
26. करेला
27. कोहडा
28. चिचीडा(परोरा)
29. लौकी
30. ककडी
31. खीरा
32. गुढमी(काचरा)
33. घीयातरोई
34. बरबटो (बोरो)
34. रामतरोई (भिंडी)
35. शकरकंद
36. पालक
37. पालक
38. काटवा डाटा
39. चौलाई
40. लाल साग
41. पुई साग
42. नीबू
43. लीची
44. अमरूद
45. आम
46. केला
47. जामुन
48. बेर
49. सपेटा(चीकू)
29.
Monday, April 21, 2008
एक टीवीकर्मी की रामकहानी !
टीवी में काम कर चुके हर किसी में ऐसा दम नहीं जो राहुल पंडिता ने दिखाया. यह ग्राफ़िक नॉवेल मैंने कोई ढाई साल पहले देखी थी, तभी से चाहता था कि इसे आपके साथ शेयर करूँ. तरीक़ा कई बार निकाला लेकिन नाकाम रहा. अब एक कोशिश और कर रहा हूँ. टेक्स्ट और काँसेप्ट राहुल का है. इलस्ट्रेशंस राहुल के जिगरी यार शरद शर्मा ने किये हैं. नीचे दिख रहे पेजेज़ डबल क्लिक करने से अलग विंडो में बडे होकर मस्त दिखाई देंगे इसलिये इनके छोटे आकार से घबराइयेगा नहीं. अगर बात आप तक पहुँचे तो ज़रा ज़ोर से ताली बजाइयेगा.
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राहुल का लिखा एक पीस यहाँ भी है. उनकी फ़ोटो भी यहीं से साभार ली गई है.
यह पुस्तक सराय से हासिल की जा सकती है.
एफ़एम के एक और लिसनर का पत्र
रेडियो FM निदेशक, नई दिल्ली
अपने रेडियो में समाचार बोलते समय मेरा नाम हर बार बोलें- श्री भगवान मिश्र, राज्यपाल.
मैं राज्य-पटना(बिहार) में राज्यपाल होऊँगा. समाचार दे दें. मैं भी राष्ट्रपति हूँ इसलिये मैं राज्यपाल होऊँगा. मैं ही आपके घर के भोलेबाबा का बेटा हूँ. शंकर भगवान ही भोलेबाबा एवं ईश्वर एवं God हैं.कलयुग में शंकर भगवान ने मुझे ही दर्शन देकर अंतर्धाण हो गए एवं अनेक भगवान एवं राम एवं सीता जी एवं सरस्वती जी एवं लक्ष्मीजी ने. मैं सत्य बात लिखता हूँ. मैं सत्य में ग्राम रोहाड हाथीवाले बडा जमींदार ब्राह्मण के बेटा हूँ. सत्य के जीत होगा. राक्षस सबने मुझे कायस्थ के प्रचार सब जगह करता है.आपने राक्षस सब के बात नहीं मानें. रेडियो में मेरा नाम श्रीविद्यानंद एवं श्री अक्षतानंद न बोलें. जब भी मेरा नाम बोलें जब भी मेरा नाम बोलें तो श्रीभगवान मिश्र राज्यपाल, राज्य पटना(बिहार) ही बोलें. मेरी पत्नी हैं- श्री अणुशमा ही श्रीमहालक्ष्मीजी, भगवान.मेरी माँ पार्वती हैं, भगवान हैं. मैं भगवान का प्रचारक हूँ. आप अच्छा आदमी हैं.
मेरा हस्ताक्षर
श्री भगवान मिश्र
अपने रेडियो में समाचार बोलते समय मेरा नाम हर बार बोलें- श्री भगवान मिश्र, राज्यपाल.
मैं राज्य-पटना(बिहार) में राज्यपाल होऊँगा. समाचार दे दें. मैं भी राष्ट्रपति हूँ इसलिये मैं राज्यपाल होऊँगा. मैं ही आपके घर के भोलेबाबा का बेटा हूँ. शंकर भगवान ही भोलेबाबा एवं ईश्वर एवं God हैं.कलयुग में शंकर भगवान ने मुझे ही दर्शन देकर अंतर्धाण हो गए एवं अनेक भगवान एवं राम एवं सीता जी एवं सरस्वती जी एवं लक्ष्मीजी ने. मैं सत्य बात लिखता हूँ. मैं सत्य में ग्राम रोहाड हाथीवाले बडा जमींदार ब्राह्मण के बेटा हूँ. सत्य के जीत होगा. राक्षस सबने मुझे कायस्थ के प्रचार सब जगह करता है.आपने राक्षस सब के बात नहीं मानें. रेडियो में मेरा नाम श्रीविद्यानंद एवं श्री अक्षतानंद न बोलें. जब भी मेरा नाम बोलें जब भी मेरा नाम बोलें तो श्रीभगवान मिश्र राज्यपाल, राज्य पटना(बिहार) ही बोलें. मेरी पत्नी हैं- श्री अणुशमा ही श्रीमहालक्ष्मीजी, भगवान.मेरी माँ पार्वती हैं, भगवान हैं. मैं भगवान का प्रचारक हूँ. आप अच्छा आदमी हैं.
मेरा हस्ताक्षर
श्री भगवान मिश्र
डायरी के कुछ पन्ने-2
इंडियन प्रेस, इलाहाबाद के मालिक बाबू गिरिजा कुमार घोष लाला पार्वती नंदन के नाम से लिखते रहे.
1901 से 1921 के बीच महिलाओं की कुछ पत्रिकाएँ: इंदु, स्त्री दर्पण, गृहलक्ष्मी और मर्यादा.
1951 से 1960 के बीच कुछ महिला लेखिकाएँ हिंदी की प्रचलित पत्रिकाओं में छपी हुई पाई गईं-
1. लीला अवस्थी
2. शोभा
3. शशि तिवारी
4. माया गुप्त
5. शचीरानी गुर्टू
6. इंदुमती
7. मदालसा अग्रवाल
8. सुप्तिमयी सिन्हा
9. कमलादेवी चौधरी
10. शीला शर्मा
--------------------------
मर्यादा: संपादक- कृष्णकांत मालवीय
प्रभा 1913 में खंडवा से शुरू हुई. संपादक: माखनलाल चतुर्वेदी
-------------------
मीर साहब रुला गये सबको
कल वो तशरीफ़ याँ भी लाए थे
न पूछो कुछ हमारे हिज्र की और वस्ल की बातें
चले थे ढूँढने जिसको सो वो ही आप हो बैठे
मैं किसी चीज़ का नहीं आदी
एक आदत है साँस लेने की
------------------------------------
रंग महलों से जसोदा का कन्हैया चल दिया
चाँदनी में मंज़िल-ए-इरफ़ाँ का ज़ोया चल दिया
(राष्ट्र भारती, 1956, सागर निज़ामी की गौतम बुद्ध नाम की नज़्म से)
-------------------
उच्चरित भाषा की विचित्रताएँ
---------------------
गया था करोलबाग़ के फर्नीचर मार्केट में बच्चों के लिये एक झूला ख़रीदने.झूलेवाले अरविंद ज़माने से ख़फ़ा थे और वो इन दिनों हिंदू धर्म का इतिहास पराजयों का इतिहास पढ रहे थे. उन्हों ने एक शेर सुनाया-
जवानी में अदम के वास्ते सामान कर ग़ाफिल
मुसाफ़िर शब से उठता है जो जाना दूर होता है
-इक़बाल
1901 से 1921 के बीच महिलाओं की कुछ पत्रिकाएँ: इंदु, स्त्री दर्पण, गृहलक्ष्मी और मर्यादा.
1951 से 1960 के बीच कुछ महिला लेखिकाएँ हिंदी की प्रचलित पत्रिकाओं में छपी हुई पाई गईं-
1. लीला अवस्थी
2. शोभा
3. शशि तिवारी
4. माया गुप्त
5. शचीरानी गुर्टू
6. इंदुमती
7. मदालसा अग्रवाल
8. सुप्तिमयी सिन्हा
9. कमलादेवी चौधरी
10. शीला शर्मा
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मर्यादा: संपादक- कृष्णकांत मालवीय
प्रभा 1913 में खंडवा से शुरू हुई. संपादक: माखनलाल चतुर्वेदी
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मीर साहब रुला गये सबको
कल वो तशरीफ़ याँ भी लाए थे
न पूछो कुछ हमारे हिज्र की और वस्ल की बातें
चले थे ढूँढने जिसको सो वो ही आप हो बैठे
मैं किसी चीज़ का नहीं आदी
एक आदत है साँस लेने की
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रंग महलों से जसोदा का कन्हैया चल दिया
चाँदनी में मंज़िल-ए-इरफ़ाँ का ज़ोया चल दिया
(राष्ट्र भारती, 1956, सागर निज़ामी की गौतम बुद्ध नाम की नज़्म से)
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उच्चरित भाषा की विचित्रताएँ
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गया था करोलबाग़ के फर्नीचर मार्केट में बच्चों के लिये एक झूला ख़रीदने.झूलेवाले अरविंद ज़माने से ख़फ़ा थे और वो इन दिनों हिंदू धर्म का इतिहास पराजयों का इतिहास पढ रहे थे. उन्हों ने एक शेर सुनाया-
जवानी में अदम के वास्ते सामान कर ग़ाफिल
मुसाफ़िर शब से उठता है जो जाना दूर होता है
-इक़बाल
Saturday, April 19, 2008
अज़ान: मानव-कंठ का संगीत
कल भाई अज़दक के ज़ख़ीरे से कुछ और संगीत सुन रहा था तो उसमें आज़ान का यह ट्रैक मिला. इसमें विवरण इस प्रकार लिखा है-
Turkey:The Sacred Quran
Azhan(Calling to Prayer)
Artist: Islamic chants of the Ottoman
Album title: Best world sounds 100 6CD-Box
Dur: 06:03
Friday, April 18, 2008
Thursday, April 17, 2008
Wednesday, April 16, 2008
दानिश इक़बाल का ताज़ा नाटक सारा शगुफ़्ता की ज़िंदगी पर
सारा शगुफ़्ता (यहाँ एक ब्लॉगर ने परवीन शाकिर की एक कविता, जो कि सारा शगुफ्ता के लिये है, जारी की है) पाकिस्तान की विलक्षण कवियत्री थीं. उनके जीवन और कर्म पर आधारित एक नाटक "सारा का सारा आसमान" लिखा है दानिश इक़बाल ने. यह नाटक इस तुच्छ के पास उन्होंने पढने को भेजा है. दिल्ली में नाटक और ब्रॉडकास्टिंग के साथ दिलकश इंसानों की जानकारी रखने वालों के लिये दानिश इक़बाल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. मुझे तो रश्क होता है कि कोई इंसान इतना हाज़िर-जवाब और हर वक़्त ज़िंदगी से लबरेज़ मुस्कुराता कैसे रहता है. शायद उनकी ज़िंदादिली के पीछे ज़माने की मुर्दादिली पर हँसने की उनकी ख़ास अदा हो.
बहरहाल. दानिश साहब के इस नाटक के कुछ हिस्से कपटकर आपके सामने रखता हूँ. यह नाटक अभी सिर्फ़ रीडिंग से गुज़र रहा है और इसका मंचन अभी शुरू नहीं हुआ है. स्त्री-स्वतंत्रता और मानवता की सीमाओं के प्रश्नों से जूझता यह नाटक कई अर्थों में एक बाग़ी पहलक़दमी है. अपने स्ट्रक्चर और भाषाई अभिव्यक्ति में इसे मैंने कवियत्री के जीवन जैसा ही जटिल और एक तरह से सरल पाया है. ज़्यादातर पंक्तियाँ सारा शगुफ़्ता की कविताओं से ही संवाद के रूप में गढी गई हैं और उनके समकालीनों और चर्चाओं से उनकी ज़िंदगी के सूत्रों को जोडा गया है.
नाटक से अंश-1
नाटक से अंश-2
नाटक से अंश-3
नाटक से अंश-4
नाटक से अंश-5
नाटक से अंश-6
Monday, April 14, 2008
Its a male-male world और बप्पी लहरी की लीद
दिल्ली के पंचशील कमर्शियल सेंटर में यूटीवी का डबिंग डिवीज़न है जहाँ नेशनल ज्योग्रफिक चैनेल, द हिस्ट्री चैनेल, हंगामा, बिंदास वग़ैरह चैनलों के लिये विदेशी भाषाओं से हिंदी में डबिंग होती है. काम जब तक मज़ेदार लगता है, यार लोग मज़े लेकर काम करते हैं और जब चटने लगते हैं तो बाहर ऐसी महफिलें जम उठती हैं. अब ये महफिलें रेयर हैं वरना डबिंग डायरेक्टर, साउंड इंजीनियर और वॉयस ओवर आर्टिस्ट्स समेत मैनेजर और दूसरे विभागों के लोग भी शामिल हो जाया करते थे. तीन साल पुरानी ये रिकॉर्डिंग ऐसी ही एक शाम की झलक देती है. तब राजदीप भी थे.
Sunday, April 13, 2008
कौने बाबा बाँस कटावल सखी री...
कौने बाबा...
मिथिला विवाह/ हल्दी/ मायारानी दास और सहेलियाँ/ संगीत: एच.वसंत
मिथिला विवाह/ हल्दी/ मायारानी दास और सहेलियाँ/ संगीत: एच.वसंत
Saturday, April 12, 2008
सुप्रकाश नाथ: एक अनसंग कलाकार
पिछले दिनों मयख़ानवी दिल्ली के आश्रम स्थित एक ऐसे इलाक़े में पहुँचे जहाँ कलाकारों की मंडी थी। वहाँ का माहौल देखकर उन्हें बडी हैरानी हुई. यह कला का एक अंडरवर्ड है जहाँ कमरों में लटकते जाँघिये, कोने में जलता स्टोव, मातीज़, रेंब्राँ, पिकासो और डाली की कलाकृतियों के संग्रह, अधबनी तस्वीरें और पॉलीथीन में लाई जा रही मदर डेयरी की थैलियाँ हैं. दिल्ली के कलाकर्म की बहुत सी हलचलें यहाँ परवान चढती हैं. बडे व्यवसाइयों के डिज़ाइन और एक्सपोर्ट के एसाइनमेंट यहाँ लाए जाते हैं जो पूरे होकर व्यवसाइयों के बैंक बैलेंस बनाते हैं और इन कलाकारों में बेचैनी की एक और मात्रा जोड जाते हैं.
इनमें से एक हैं सुप्रकाश नाथ। 33 वर्षीय सुप्रकाश पिछले पाँच साल से दिल्ली में हैं। वो बंगाल के 24 परगना में काँचरापाडा के रहने वाले हैं। कला की कोई औपचारिक शिक्षा उन्होंने नहीं ली है और वो उनमें से हैं जिन्हें सेल्फ़ टॉट कहा जाता है. सुप्रकाश रंगों और आकृतियों के माहिर खिलाडी हैं और दिल्ली आते ही उनकी इस एक्सपर्टीज़ को ब्रेक मिला एक बॉलीवुड के एक जाने-माने अभिनेता के दामाद द्वारा. सुप्रकाश को इन दामाद महोदय की जींस पर कलाकृतियाँ बनानी थीं और ये काम उन्हें उनके घर या वर्कशॉप पर ही करना था. इस काम को सुप्रकाश ने ऐसे जादुई ढंग से किया कि ये डिज़ाइनर जींसें टॉक ऑफ़ द टाउन बन गईं. सुप्रकाश का मन न तो तब इस काम में लगता था और न अब लगता है. उन्हें तो मौलिक अमूर्त चित्रों में अपनी दुनियाँ उकेरनी है और अब वो इस काम में जुट भी गये हैं. बहरहाल शुरुआती दिनों में एक्ज़िस्टेंस की लडाई में जो काम हाथ आया था उसने सुप्रकाश को इतनी ही मदद की कि उन्हें हारकर वापस बंगाल नहीं जाना पडा. भाषा आज भी उनके व्यावसायिक संघर्ष में बाधा है और वो ख़ुद को वैसे नहीं बेच पाते जैसे दिल्ली के औसत प्रतिभा वाले आंतर्प्रेन्योर्स बेचकर अँगूठा दिखाते हुए आगे बढते जाते हैं. इस बीच इतना ज़रूर हुआ है कि दामाद के साथ डिज़ाइनर जींस बनाने का जो काम शुरू हुआ था उसे शोहरत मिली है और उपरोक्त दामाद का कोई मित्र इस काम को एक एंटरप्राइज़ के तौर पर शुरू कर चुका है. पीनट्स ही सही इन लोगों को मिल जाते हैं जिनसे घर ख़र्च चलता रहता है और मौलिक करने की इच्छाएँ कोई रुकावट नहीं देखतीं. हाल ही में दिल्ली के ब्रिटानिया चौक पर सुप्रकाश और साथियों को म्यूरल्स और सजावट का दूसरा ठेका भी मिला जिसकी झलक अन्य तस्वीरों के साथ यहाँ पेश की जा रही है.ध्यान रहे कि तस्वीरों को सुप्रकाश अपनी प्रतिनिधि छवियाँ नहीं कहते.
इनमें से एक हैं सुप्रकाश नाथ। 33 वर्षीय सुप्रकाश पिछले पाँच साल से दिल्ली में हैं। वो बंगाल के 24 परगना में काँचरापाडा के रहने वाले हैं। कला की कोई औपचारिक शिक्षा उन्होंने नहीं ली है और वो उनमें से हैं जिन्हें सेल्फ़ टॉट कहा जाता है. सुप्रकाश रंगों और आकृतियों के माहिर खिलाडी हैं और दिल्ली आते ही उनकी इस एक्सपर्टीज़ को ब्रेक मिला एक बॉलीवुड के एक जाने-माने अभिनेता के दामाद द्वारा. सुप्रकाश को इन दामाद महोदय की जींस पर कलाकृतियाँ बनानी थीं और ये काम उन्हें उनके घर या वर्कशॉप पर ही करना था. इस काम को सुप्रकाश ने ऐसे जादुई ढंग से किया कि ये डिज़ाइनर जींसें टॉक ऑफ़ द टाउन बन गईं. सुप्रकाश का मन न तो तब इस काम में लगता था और न अब लगता है. उन्हें तो मौलिक अमूर्त चित्रों में अपनी दुनियाँ उकेरनी है और अब वो इस काम में जुट भी गये हैं. बहरहाल शुरुआती दिनों में एक्ज़िस्टेंस की लडाई में जो काम हाथ आया था उसने सुप्रकाश को इतनी ही मदद की कि उन्हें हारकर वापस बंगाल नहीं जाना पडा. भाषा आज भी उनके व्यावसायिक संघर्ष में बाधा है और वो ख़ुद को वैसे नहीं बेच पाते जैसे दिल्ली के औसत प्रतिभा वाले आंतर्प्रेन्योर्स बेचकर अँगूठा दिखाते हुए आगे बढते जाते हैं. इस बीच इतना ज़रूर हुआ है कि दामाद के साथ डिज़ाइनर जींस बनाने का जो काम शुरू हुआ था उसे शोहरत मिली है और उपरोक्त दामाद का कोई मित्र इस काम को एक एंटरप्राइज़ के तौर पर शुरू कर चुका है. पीनट्स ही सही इन लोगों को मिल जाते हैं जिनसे घर ख़र्च चलता रहता है और मौलिक करने की इच्छाएँ कोई रुकावट नहीं देखतीं. हाल ही में दिल्ली के ब्रिटानिया चौक पर सुप्रकाश और साथियों को म्यूरल्स और सजावट का दूसरा ठेका भी मिला जिसकी झलक अन्य तस्वीरों के साथ यहाँ पेश की जा रही है.ध्यान रहे कि तस्वीरों को सुप्रकाश अपनी प्रतिनिधि छवियाँ नहीं कहते.
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