दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Tuesday, February 19, 2008

शील, अश्लील और पतनशील: कुछ टिप्स


ऐ नेक ग़रीब भोली हिन्दनियों, इन ख़ुद मतलबियों के कहने को हर्गिज़ न मानो. तुमको पतिव्रता महात्म्य सुनाते हैं और तुम्हारे ख़ाविंदों को को कोकशास्त्र, नायिकाभेद और बहार ऐश और लज़्ज़तुलनिसा की पोथियाँ सुनाकर कहते हैं - इस दुनिया में जिसने दो-चार दस-बीस कन्याओं से संग न किया, उसका पैदा होना ही निष्फल है.

बस अब तुम इस धर्म को छोड दो. ऐसी पति सेवा से स्वर्ग नहीं मिलेगा...नर्क में तुम्हें भी जाना पडेगा.

यह किसी बडे महात्मा का वाक्य है- "जो किसी को बद काम में मदद करता है या उसे मना नहीं करता, वह उसके आधे पाप का भागी हो जाता है."
बस, तुम्हारे इस धर्म करने से तुम्हारे पति अधर्म करते हैं, जब वे किसी ग़ैर स्त्री के पास जाते हैं, तुम उस वक़्त इस धर्म के बाइस बोल नहीं सकतीं क्योंकि ख़ाविंद के बरख़िलाफ़ न बोलना ही धर्म है. बस, वे इस काम में दिलेर हो जाते हैं. ग़रज़, उस वक़्त तुम्हारा कुछ न कहना आइंदा के लिये उन्हें अधर्मी बना देता है. ज्यों-ज्यों तुम इस धर्म में दृढ होती जाती हो, त्यों-त्यों वे अधर्म में ज़्यादा हो जाते हैं. फिर यक़ीन नहीं होता कि तुम्हारे दिल पर कुछ सदमा न होता हो. बस, अपने ही दिल पर सहारती हो. जब नहीं सहारा जाता तो आप ही मर जाती हो. गोया, तुम्हारा यह धर्म, उनका अधर्म, तुम्हारी जान लेनेवाला है. तुम्हारा मतलब इस धर्म के करने से ये था कि वे तुम पर ऐतबार रखें. उलटा तुम ही जेलख़ाने में डाली गयी और शक तुम पर किया गया.सच्चे दिल से धर्म तभी किया जा सकता है जब तुम्हारे ख़ाविंद तुम्हरा ख़याल करें. वह ख़यल तभी कर सकते हैं जब वे ज़नाकारी से बाज़ आएं.

उनको ज़नाकारी से रोकने की यह अच्छी तज़बीज़ है- जब वे किसी औरत के पास जावें, तुम कहो हम भी दूसरे मर्द के पास जावेंगी. अगर किसी रंडी, लौंडे को घर में लाएँ तो तुम फ़ौरन शादी तोड दो.फिर आदि वेद में लिखा भी है-"तैने कीती रामजनी, मैंने कीता रामजना."
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सीमंतिनी उपदेश, लेखक: एक अज्ञात हिंदू औरत, पृष्ठ-99-100

9 comments:

चंद्रभूषण said...

ये उद्धरण कहां से है भाई साहब? अगर आपका ही है तो मेरी नजर में आज से आपकी जगह चार बांस चौबीस गज और आठ अंगुल ऊंची हो गई।

azdak said...

ये इलस्‍ट्रेशन तो बड़ा ज्ञानपरक है! मेरे लिए खौफ़परक भी है!

इरफ़ान said...

Chandrabhushanji, aur baatein to chhodiye...bura lagaa hai ki aapkee nazaron mein meree jagah "oonchee" huee.Hum to neechee{read Patansheel} dishaa mein badh rahe hain. Uddharan kaa srot kal bataaoongaa kyonki Baat ka asar rahanaa chaahiye, baat ke srot ke baare mein apanee raay se uska asar kam na keejiye.
Pramod Bhai aapko kisee baat kaa khauf ho, yah naee baat hai.Patansheelataa ko theek se gale lagaaiye laabh(read Gyaan) milegaa.

Priyankar said...

श्री श्री १०८ पण्डित इरफ़ानाचार्य का प्रवचन बड़ा मारक-सुधारक टाइप है . रामजनी-रामजना वाला 'टिट फ़ॉर टैट' धांसू रहा .

सुजाता said...

? !!

दिनेशराय द्विवेदी said...

इरफान भाई हम तो आप की इस पोस्ट को पढ़ कर आप के कायल हो गए। बात ऐसे की जाती है। उद्धरणों में क्या रखा है। अगर माँ की गाली वेद में लिखी होती तो क्या ब्रह्मवाक्य मान कर सिर पर लगा लेते क्या?
आप ने बात भी कही और भाषा का भी निर्वाह किया।
आप को बहुत बहुत बधाई।

Neelima said...

इरफान ददा ये क्या हुआ आपको ? इतने गर्तवान पातालगामी पतनशीलता के टिप्स ! और जाने दीजिए ये भाव विस्तारपरक चित्र कहां से मार लाए ? ये कुरुचिपूर्ण स्त्री विमर्श है या आपका आंतरिक भय या कि फिर आपका जेंडर ग्यान हाइपर हो गया है ????

मुनीश ( munish ) said...

HINDI BLOGGING COMES OF AGE FINALLY!!
GO AHEAD AND RULE THE BLOGOSPHERE!

स्वप्नदर्शी said...

अगर औरते सर्वजनिक जीवन मे एक इंसान के बतौर सम्मान की मांग करे तो आपके जैसे वाम पंथियो को भी इस तरह के भय सताते है?

अम्रता की एक कविता से

ज़ूते और कमीज़ की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढे पर रख दे
कोई खास बात नही-
अपने-अपने देश का रिवाज़ है.

उसके बात सहज ढंग से अगर एक इंसान की दूसरे से बात हो सकती है, तो बात करनी है, नही तो नही ही सही..........