दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Tuesday, February 12, 2008

इरफ़ानियत एक कविता है


मुलाक़ात

फिर तुमने
अपने
ठंडे पोरों से छुआ।

बुधवार था
और आसमान से
नमी की चादर
हमें ढँकने आई,

हम शोलों की तरह
दहक रहे थे
जहाँ हमारे बीच
सारी मान्यताएँ पिघल गईं

उस नीम ठंड में हम
सतह की हवा को हल्का बनाते रहे.
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पहल, 56 पृष्ठ 215

चंदा रे चंदा कुछ तू ही बता मेरा अफ़साना

1 comment:

Ravindra Singh Patwal said...

kahan kahan se gujar gaya? tera afsana nahi milta aajkal. Kis gurdware mein jaakar tu rota hai, kahan se khabar milegi teri?