वकील ने देख लिया था कि उनकी कमीज़ का कॉलर गंदा है और आज सुबह भी उन्होंने दही-चूडा खाया था. पहले तो वो बहुत देर तक मोबाइल पर बात करने का नाटक करता रहा लेकिन पिंड छूटता न देखकर उन्हें बाहर अरबिंद की चाय की दुकान पर ले आया. चाय को मजबूरी में सुडकते हुए वकील ने उन्हें बताया कि इस मामले में कुछ नहीं हो सकता है. अगर कुछ होना ही है तो बहुत पैसा खर्च होगा और टाइम भी बहुत लगेगा. पैसे की बात सुनकर वो उस तरफ़ देखने लगे थे जिधर लिखा था- अठारह वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को सिगरेट, तम्बाकू, पान-मसाला आदि बेचना दंडनीय अपराध है.
कई दिनों की दौडभाग के बाद उनके बेटे ने इस वकील से मुलाक़ात करवाई थी जिसे अग्रवाल समाज में बडी इज़्ज़त हासिल थी और लेखकों के साथ शराब पीने से उसमें लेखकीय लचक आ गई थी. कॉपीराइट को अब उसने अपनी रुचि का नया अड्डा बना लिया था लेकिन रोना यही था कि लेखक कंगला होता है उसके पास खरचने उतना भी नहीं होता कि....
उनकी एक कहानी, जिसने नई कहानी आंदोलन के दौर में उन्हें रातों-रात शिखर पर पहुंचा दिया था, को एक अमरीकी प्रकाशन ने अपनी एंथोलोजी में अंग्रेज़ी में अनुवाद करके छाप लिया था और अब तक इस एंथोलोजी के तीन संस्करण हो चुके थे. उन्होंने कई बार सोचा कि अगर छापना ही था तो मुझसे पूछ लेते...फिर यह सोच कर संतोष कर लिया कि मुझसे पूछते कैसे? पिछले कई साल से मेरा कोई स्थाई पता भी नहीं रहा...कभी बडे बेटे-बहू के साथ, कभी छोटे अनिमेष के साथ...कभी बेटी से मिलने चले गये तो कभी बिसनाथ के ऑरोवेलवाले आश्रम में नेचर क्योर में पडे हैं...जब घर पर भी हुए तो कभी डाकिया बाहर बैठे हारूनघडीसाज़ को चिट्ठी दे गया तो कभी बाहर डिब्बे में डाल गया और लौंडे उससे जहाज बनाकर उडा गये....
4 comments:
इरफान भाई। आप ने एक आम व्यावसायिक वकील और एक कहानी से मिली प्रतिष्ठा को आगे काय़म नहीं रख पाने वाले लेखक का बहुत अच्छा शब्द चित्र प्रस्तुत किया है।
कॉपीराइट को लेकर कल आपने जो लिखा है। उस प्रश्न का उत्तर आप को तीसरा खंबा की कॉपीराइट कानून संबंधी अंक माला में आगे मिल जाएगा। इतना कह दूँ कि मामला उतना जटिल नहीं है जितना समझा जा रहा है। इस अंकमाला के बाद शायद अधिक अच्छे तरीके से कृतिकार सांस ले सकेंगे।
इरफ़ानजी,आपने तो पोस्ट लिख कर हड़का ही दिया,और दिनेशजी, ने भी तफ़्सील से इसके बारे में लिखा भी है....जो हम कर रहे है वो चोरी तो है ही ,पर इससे बचने का उपाय तो होगा ही क्या हम किसी तरह का डिस्क्लेमर नहीं दे सकते जिसमें कुछ ऐसी बात हो कि साँप भी मर जाय और लाठी भी ना टूटे।
aji hum kya kisi ki bhains khol rahe the. sahitya ki chori buri baat hai par sangeet to sabke liye hai usse churana paap nahin.ab mujhe sangeet sunna hai ...bye.
ye amantrit blog hi apne ap me kaafi had tak samasya hal kar dega. itz gudd device . i think u just activated it.
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